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पापा ने गाय बेच किट दिलाई, मार्क्स के लिए थामी हॉकी, कहानी भारत को लगातार दो ओलंपिक्स मेडल जिताने वाले श्रीजेश की

PR Sreejesh इंडियन हॉकी का चेहरा बन चुके हैं. लगातार दो ओलंपिक्स मेडल जीतने के बाद हॉकी को अलविदा कहने वाले Sreejesh बचपन के दिनों में हॉकी नहीं खेलना चाहते थे. लेकिन ग्रेस मार्क्स के चक्कर ने उनका जीवन बदल दिया.

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पीआर श्रीजेश के हॉकी स्टार बनने की कहानी काफी मजेदार है (फोटो:PTI/@16Sreejesh)
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रविराज भारद्वाज
8 अगस्त 2024 (Updated: 8 अगस्त 2024, 23:30 IST)
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तारीख, 5 अगस्त 2021. इंडियन हॉकी टीम (Indian Hockey Team) 41 साल के लंबे इंतजार को खत्म कर चुकी थी. वो इंतज़ार था, ओलंपिक्स मेडल जीतने का. ब्रॉन्ज़ मेडल मैच में 1-3 से पिछड़ने के बाद इंडियन हॉकी टीम ने शानदार वापसी की और मैच को 5-4 से अपने नाम कर लिया. मैच के बाद कई तस्वीरें आईं, जिसे देख इंडियन फ़ैन्स की आंखों में आंसू आ गए. इसी दिन एक और तस्वीर सामने आई. हॉकी गोल पोस्ट की छत पर बैठे एक प्लेयर की. सॉरी प्लेयर नहीं, तब तक सुपरस्टार बन चुके एक प्लेयर की. नाम है पीआर श्रीजेश (PR Sreejesh). उनकी ये तस्वीर Iconic हो चुकी थी. क्रिकेट को पूजने वाले देश के कई घरों में आपको इसके पोस्टर दिख जाएंगे.

लेकिन तस्वीर सिर्फ एक नहीं थी. इस मैच और पूरे टूर्नामेंट में श्रीजेश की कई ऐसी तस्वीरें थी, जिनको फ्रेम करवा के रखा जा सकता था. और उस पोस्टर में अब एक और नया अपडेट आ चुका है. श्रीजेश फिर से वैसे ही गोलपोस्ट पर बैठे दिखे हैं. तारीख है 8 अगस्त 2024. मौका इस बार भी ओलंपिक्स का ही. ब्रॉन्ज़ मेडल मैच का ही. और हीरो भी इस बार वही थे, पीआर श्रीजेश. स्पेन के खिलाफ ब्रॉन्ज़ मेडल मुकाबले में श्रीजेश गोलपोस्ट के आगे ऐसा डटे कि स्पैनिश अटैकर्स की तमाम कोशिशें धरी रह गईं. वो श्रीजेश नाम की 'दीवार' को नहीं भेद पाए.

36 साल के गोलकीपर ने बाकी मैचेज़ की तरह, इस मैच में भी ऐसे-ऐसे बचाव किए, जिनकी हाइलाइट्स आप रिपीट मोड पर देखना चाहेंगे. इसी टूर्नामेंट में ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ क्वॉर्टर मैच में श्रीजेश ने ऐसा कमाल दिखाया था कि उनके प्रदर्शन को देखकर दिग्गज हॉकी खिलाड़ी धनराज पिल्लै बोल पड़े, 'उनके जैसा प्लेयर जेनरेशन में एक बार आता है'. वहीं दिलीप टिर्की ने पीआर श्रीजेश को 'भारतीय हॉकी का भगवान' करार दिया. एथलेटिक्स से करियर की शुरुआत करने वाले और बोर्ड परीक्षा में पास होने के लोभ से हॉकी स्टिक पकड़ने वाले 'द वॉल ऑफ इंडियन हॉकी' के यहां तक पहुंचने का सफर कैसा रहा, आइये जानते हैं.

ये भी पढ़ें: ‘ये आखिरी मैच…’ मैच के दौरान खुद से क्या बोल 'बेस्ट हॉकी' खेल गए पीआर श्रीजेश?

कौन हैं पीआर श्रीजेश?

श्रीजेश का जन्म 8 मई 1988 को हुआ. केरल के एर्नाकुलम जिले के एक किसान परिवार में. प्राइमरी स्कूलिंग सेंट एंटनी से हुई जबकि हाई स्कूल के लिए सेंट जोसेफ स्कूल के हॉस्टल में चले गए. पढ़ाई में अच्छे होने के साथ-साथ श्रीजेश शुरू से ही स्पोर्ट्स में काफी एक्टिव थे. वो स्प्रिंट के अलावा लंबी कूद और वॉलीबॉल जैसे गेम्स में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करते थे. लेकिन फिर एक सीनियर की सलाह मान उन्होंने हॉकी स्टिक पकड़ी. और फिर अपने आलसपन के चलते गोलकीपर बन गए. इनके गोलकीपर बनने की कहानी मजेदार है. श्रीजेश ने इस बारे में टीम इंडिया के पूर्व विकेटकीपर दिनेश कार्तिक से कहा था,

‘केरल में, जब आप अंडर-17 या अंडर-14 टीम के लिए खेलते हैं. तो आपको बोर्ड एग़्जाम में ग्रेस मार्क मिलता है. हॉकी आसान नहीं थी. क्योंकि यहां आपको झुकना पड़ता है, खेलना पड़ता है. और इसके बाद आपको भागना भी पड़ता है. मेरे लिए यह बहुत मुश्किल था. मैं एक मोटा बंदा था. मुझे दौड़ना एकदम पसंद नहीं था. तो मैंने गोलकीपर्स को देखा. फुल गियर के साथ, जाहिर तौर पर आज जितने नहीं. लेकिन फिर भी, बहुत सारे गियर्स के साथ.

एक कोने में खड़े होकर गेंद को किक कर रहे थे. मैंने सोचा, वाह ये तो काफी मजेदार है. क्योंकि वो दौड़ नहीं रहे थे. बस पैड पहनकर गेंद को किक कर रहे थे. तो मैंने सोचा कि मेरे लिए यही सही पोजिशन है. क्योंकि आपको भागने की जरूरत नहीं है. आप हॉकी टीम का हिस्सा हैं. और आपको ग्रेस मार्क मिलेगा. इस तरह मैंने गोलकीपर बनना चुना.’

लेकिन इससे पहले भी बहुत कुछ हुआ था. क्या था वो, बताते हैं. श्रीजेश के पेरेंट्स काफी स्ट्रिक्ट थे. खासकर पिता पीवी रवींद्रन. ऐसे में 11-12 साल की उम्र में ही अपने पैरेंट्स से जिद करके वो सेंट जोसेफ स्कूल के हॉस्टल में चले गए. जो घर से दूर था. हॉस्टल जाने का कारण एक और था. उन्होंने फिल्मों में हॉस्टल की लैविश लाइफस्टाइल देखी थी. फिल्में देखना, क्लास बंक करना, दोस्तों के साथ घूमना...

श्रीजेश को लगा कि हॉस्टल लाइफ बिल्कुल ऐसी मजेदार होगी. लेकिन हुआ इसका उल्टा. वहां जाने के बाद श्रीजेश को पता चला कि कपड़े खुद धोने और इस्त्री करने पड़ते थे, बर्तन भी खुद ही साफ करने पड़ते थे. यहां तक कि होमवर्क में भी हेल्प करने वाला कोई नहीं था. फिर श्रीजेश को अपने फैसले पर पछतावा होने लगा. लेकिन हॉस्टल खुद जिद करके गए थे, तो वहां से घर वापस जाने का ऑप्शन भी नहीं बचा था. ये सारी बातें श्रीजेश ने इंडियन एक्सप्रेस के प्रोग्राम 'आइडिया एक्सचेंज' में बताई.

इसी हॉस्टल में श्रीजेश की मुलाकात अपने एक सीनियर से हुई. जिसने श्रीजेश को हॉकी खेलने की सलाह दी. सीनियर के मुताबिक केरल के लिए हॉकी खेलना आसान था. ऊपर से श्रीजेश को एक और लोभ दिखा. केरल में स्टेट लेवल तक खेलने वाले स्पोर्ट्स पर्सन को बोर्ड में 60 नंबर एक्स्ट्रा दिए जाते थे. बस यहीं से शुरुआत हुई एथलीट श्रीजेश के हॉकी सुपरस्टार बनने की.

# गोलकीपर क्यों बने?

अब श्रीजेश ने हॉकी स्टिक तो थाम ली, लेकिन पता चला कि इक्विपमेंट खुद से खरीदने होंगे. क्योंकि स्कूल में अच्छे इक्विपमेंट्स नहीं थे. और ये सब उस जमाने में 3000-4000 रुपये में आता था. श्रीजेश ने ये बात अपने पिता को बताई. पिता ने बेटे का जुनून देख उन्हें इक्विपमेंट्स दिला दिए. भले इसके लिए उन्हें अपनी गाय बेचनी पड़ी. श्रीजेश ने इसके बाद से हॉकी के खेल को सीरियस लेना शुरू कर दिया.

# करियर का टर्निंग पॉइंट

GV राजा स्पोर्ट्स स्कूल में दाखिला लिया. शुरुआती दिनों से ही श्रीजेश ने अच्छा खेल दिखाना शुरू कर दिया. उनके शुरुआती कोच जयकुमार और रमेश कोलप्पा ने बहुत जल्दी ही उनके टैलेंट को पहचान लिया था. और इसे निखारने का फैसला किया. श्रीजेश ने यहां से पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 2004 में उन्होंने नेशनल जूनियर टीम में डेब्यू किया. साल 2008 में भारत ने जूनियर एशिया कप का खिताब जीता. श्रीजेश बेस्ट गोलकीपर चुने गए. श्रीजेश ने साल 2006 में सीनियर टीम के लिए डेब्यू तो कर लिया लेकिन साल 2011 तक वो अपनी जगह पक्की नहीं कर पाए.

उनके करियर में टर्निंग पॉइंट आया साल 2011 के एशियन चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में. जहां पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल मुकाबले में श्रीजेश ने दो पेनल्टी स्ट्रोक बचाई और टीम के हीरो बन गए.

वो साल 2012 के लंदन ओलंपिक्स में भी भारतीय टीम का हिस्सा रहे. हालांकि इंडियन टीम का प्रदर्शन इस ओलंपिक्स में बेहद ही खराब रहा और हम अंतिम स्थान पर रहे. यहां से भारतीय हॉकी में फिर से बदलाव का दौर शुरू हुआ. कई सीनियर प्लेयर्स टीम से बाहर किए गए. और फिर टीम के प्रदर्शन में काफी सुधार भी आया. साल 2013 के एशिया कप में टीम फाइनल तक पहुंची. जबकि साल 2014 के एशियन गेम्स में इंडियन हॉकी टीम ने 16 साल के लंबे इंतजार के बाद गोल्ड मेडल जीता. फाइनल मुकाबला पाकिस्तान के खिलाफ था. यहां भी श्रीजेश ने कमाल किया और फाइनल मैच में दो पेनल्टी स्ट्रोक बचाए.

यहां से श्रीजेश इंडियन हॉकी का प्रमुख चेहरा बन चुके थे. साल 2014 के चैंपियंस ट्रॉफी हॉकी टूर्नामेंट में वो 'बेस्ट गोलकीपर' चुने गए. साल 2016 में श्रीजेश को सरदार सिंह की जगह इंडियन हॉकी टीम का कप्तान बनाया गया. उनकी कप्तानी में हॉकी टीम ने साल 2016 के ओलंपिक्स के क्वॉर्टर-फाइनल तक का सफर पूरा किया. उन्हीं की कप्तानी में इंडियन टीम 2016 के चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल तक पहुंची. जबकि 2018 के चैंपियंस ट्रॉफी में भी वो बेस्ट गोलकीपर बने.

# ओलंपिक्स मेडल और जर्मनी के खिलाफ 'वो' सेव

श्रीजेश वैसे तो लगातार शानदार प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन उनका बेस्ट आया टोक्यो ओलंपिक्स में. जहां पूरे टूर्नामेंट के दौरान उन्होंने कुल 40 शॉट सेव किए. इसमें सबसे महत्वपूर्ण बचाव साबित हुआ जर्मनी के खिलाफ ब्रॉन्ज़ मेडल मैच के आखिरी कुछ सेकंड का वो सेव. फाइनल हूटर बचने से सात सेकेंड पहले जर्मन टीम को पेनल्टी कॉर्नर मिला. जर्मन ड्रैग फ्लिकर लुकास विंड फेडर ने इंडियन डिफेंडर्स को पूरी तरह छकाते हुए शानदार शॉट लगाया. लेकिन यहां श्रीजेश दीवार बनकर खड़े रहे और उन्होंने इस शॉट का बचाव का करते हुए इंडिया को 41 साल बाद ओलंपिक मेडल दिला दिया.

यहां से श्रीजेश हीरो बन चुके थे. हर तरफ उनका नाम गूंजने लगा. श्रीजेश को साल 2021 में देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार 'खेल रत्न अवॉर्ड' से नवाजा गया. श्रीजेश को साल 2015 में अर्जुन पुरस्कार और 2017 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया. 2022 एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल और 2023 एशियन चैंपियंस ट्रॉफी जीतने वाली टीम में भी श्रीजेश ने अहम भूमिका निभाई.

# पेरिस ओलंपिक्स में 'दादा' की भूमिका

फिर बारी आई पेरिस ओलंपिक्स की. टूर्नामेंट शुरू होने से पहले 36 साल के हो चुके श्रीजेश को लेकर तमाम सवाल उठाए गए. लेकिन लेजेंडरी गोलकीपर ने हर सवाल का अपने प्रदर्शन से करारा जवाब दिया है. चाहे वो ऑस्ट्रेलिया हो या फिर बेल्जियम या फिर ग्रेट ब्रिटेन. श्रीजेश ने सभी मुकाबलों में शानदार खेल दिखाया है. खासकर ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ मुकाबले में श्रीजेश का प्रदर्शन जिस तरीके का रहा है, उसे देख धनराज पिल्लै और दिलीप टिर्की बात बिल्कुल सही नजर आ रही है. और फिर ब्रॉन्ज़ मेडल मैच में उन्होंने एक बार फिर से कमाल किया. और भारत को लगातार दूसरा ओलंपिक्स मेडल दिलाया

वीडियो: पीआर श्रीजेश की तारीफ में पूर्व प्लेयर और हॉकी इंडिया के प्रेसिडेंट दिलीप टिर्की को सुना?

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