'मदर्स डे' है आज, ऐसा लोग कहते हैं. पर कोई क्या खाकर मां के लिए कोई दिन मुक़र्ररकरेगा. वह सब दिन की है. सब घंटों की है. उसने तब से हमारी परवरिश की है, जब इसआसमान के नीचे हमने आंख भी नहीं खोली थी. डॉ. कुमार विश्वास की एक बात याद आती है.वह कहते हैं कि कभी सड़क पर जा रहे हों और सामने से आता हुआ एक ट्रक बेहद करीबदिखाई दे जाए तो सारी चेतना सिमटकर नाभि पर आ जाती है. वह दिल पर भी नहीं आती, छातीपर भी नहीं आती. नाभि पर आ जाती है. क्योंकि मां ने 9 महीने जहां से प्राण पिलाएहैं, वह चेतना वहीं से वापस जाएगी. मां पर किसने क्या नहीं लिखा. दुनिया लिख डाली.उर्दू ग़ज़ल में मां पर सबसे ज़्यादा मुनव्वर राना ने लिखा है. उनसे पहले ग़ज़ल मेंसब कुछ था. माशूक़, महबूब, हुस्न, साक़ी सब. तरक़्क़ीपसंद अदब और बग़ावत भी. पर मांनहीं थी. इसलिए उन्होंने कहा भी है कि, मामूली एक कलम से कहां तक घसीट लाए हम इसग़ज़ल को कोठे से मां तक घसीट लाए तो पढ़िए, मां के मुक़द्दस रिश्ते पर सबसे अज़ीमशेर, मुनव्वर राना की कलम से.--------------------------------------------------------------------------------1दावर-ए-हश्र तुझे मेरी इबादत की कसम ये मेरा नाम-ए-आमाल इज़ाफी होगा नेकियां गिननेकी नौबत ही नहीं आएगी मैंने जो मां पर लिक्खा है, वही काफी होगा--------------------------------------------------------------------------------2मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना--------------------------------------------------------------------------------3लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती--------------------------------------------------------------------------------4मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है--------------------------------------------------------------------------------5जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा--------------------------------------------------------------------------------6किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्सेमें माँ आई--------------------------------------------------------------------------------7ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया--------------------------------------------------------------------------------8इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है--------------------------------------------------------------------------------9मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चाहो जाऊँ--------------------------------------------------------------------------------10हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे--------------------------------------------------------------------------------11ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे--------------------------------------------------------------------------------12जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई--------------------------------------------------------------------------------13यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा--------------------------------------------------------------------------------14अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भीसाथ चलती है--------------------------------------------------------------------------------15कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी--------------------------------------------------------------------------------16दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलताहै--------------------------------------------------------------------------------17दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा--------------------------------------------------------------------------------18बहन का प्यार माँ की ममता दो चीखती आँखें यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर यादकरता था--------------------------------------------------------------------------------19बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है--------------------------------------------------------------------------------20खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही--------------------------------------------------------------------------------21मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है किसी बच्चे का जब पहला सिपाराख़त्म होता है--------------------------------------------------------------------------------22मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दीं सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खालफ़्ज़—ए—माँ रहने दिया--------------------------------------------------------------------------------23माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती--------------------------------------------------------------------------------24मुझे कढ़े हुए तकिये की क्या ज़रूरत है किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है--------------------------------------------------------------------------------25बुज़ुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घरनहीं जाता--------------------------------------------------------------------------------26मेरे चेहरे पे ममता की फ़रावानी चमकती है मैं बूढ़ा हो रहा हूँ फिर भी पेशानी चमकतीहै--------------------------------------------------------------------------------27आँखों से माँगने लगे पानी वज़ू का हम काग़ज़ पे जब भी देख लिया माँ लिखा हुआ--------------------------------------------------------------------------------28ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता, मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँसज़दे में रहती है--------------------------------------------------------------------------------29चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है--------------------------------------------------------------------------------30जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है