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जब इम्तियाज़ अली और इरशाद कामिल को पुलिसवाले पकड़कर ले गए

बॉलीवुड के गीतों में सूफिज्म की मटरगश्ती करते हैं इरशाद कामिल.

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इरशाद कामिल और इम्तियाज़ अली मुफलिसी के दौर के दोस्त हैं.
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मुबारक
7 अक्तूबर 2017 (Updated: 9 अक्तूबर 2017, 06:38 IST)
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"शहर में हूं मैं तेरे, आ के मुझे मिल तो ले"
शहर में आए थे बॉलीवुड के गानों में सूफीज्म बिखेरने वाले शहद से मीठे गीतकार इरशाद कामिल. लल्लनटॉप के सरपंच सौरभ द्विवेदी ने उनसे तसल्ली से और तसल्लीबख्श गुफ्तगू की. चप्पलें घिसने के दौर से लेकर 'दी इरशाद कामिल' बनने तक का जो सफ़र हमारे साथ साझा हुआ, उसे आप लोगों के लिए ले आए हैं. देखिए क्या-क्या बोले हैं इरशाद कामिल. 22331095_1336547333140220_1522883938_n1. लिखने की शुरूआती घड़ी बताइए. जब किसी ने कहा होगा कि तुम उम्दा लिखते हो और आपको भी लगा, हां यार मैं लिख सकता हूं! # अब तक मैं अपने कॉलेज से पास आउट ही नहीं हुआ हूं. दिमागी तौर पर वहीं हूं. दोस्तों का ग्रुप था. 4-5 लोग. को एजुकेशन में पहली बार साथ गए. सबको दो-दो, चार-चार बार प्यार हो गया. मेरी हैंड राइटिंग अच्छी थी, तो सब लव लेटर मेरे से ही लिखवाते थे. हर हफ्ते यहीं करना होता था. मैं इन ख़तों में अच्छे शायरों की पंक्तियां लिखा करता था. धीरे-धीरे मुझे लगा कि औरों के चुराए क्यों लिखूं? अपने क्यों न लिखूं? लिखने लगा तो एहसास हुआ कि शायद लिखने के इस हुनर की सिंचाई करनी चाहिए. अच्छे लेखक बनने की राह पर चला जा सकता है. 2. ट्रिब्यून के लिए इंटरव्यू देने गए दोस्त की जगह आप कैसे पत्रकार बन गए?  # हॉस्टल में रहता था. गर्मी भरे एक दिन दोस्त ने कहा ट्रिब्यून में इंटरव्यू है, छोड़ दो. जब छोड़ने गया, तो वो बोला कि आधे घंटे में खतम होगा तो वापस भी छोड़ देना. मैंने सोचा मैं भी टेस्ट दे लूं. मैंने दिया. वो रह गया, मैं पास हो गया. एक साल तक जॉब की. उसके बाद ऊबने लगा. डेस्क पर बैठ कर पत्रकारिता करने में मज़ा नहीं आया. 22290593_1336547349806885_2133984350_n3. जब वी मेट और उसके किस्से ये 'सोचा न था' के बाद की बात है. अचानक एक दिन इम्तियाज़ ने कहा 'तुझे मेरी वो ट्रेन वाली पिक्चर याद है?' 'जब वी मेट' का टाइटल पहले ट्रेन था. वो पिक्चर ऑन हो गई है. इस वार्तालाप और फिल्म की शूट की डेट के बीच सिर्फ 27 दिन थे. इसी में सब प्री प्रोडक्शन का काम करना था. गाने लिखने भी थे, रिकॉर्ड भी करने थे और लोगों पहुंचाने भी थे. मैं लिखता था और मनाली गए इम्तियाज़ को भेजता था. इसका एक और मजेदार किस्सा है. एक गाने की सिटिंग के लिए इम्तियाज़ ने प्रीतम और मुझे मनाली बुला लिया. मैं 8 बजे की फ्लाइट लेकर दिल्ली पहुंच गया. प्रीतम नहीं आए थे. मैंने बोर्डिंग पास ले लिया. 10 बज गए. 11, 12 और 1 भी बज गए. प्रीतम आए ही नहीं. डेढ़ बजे उनका मैसेज आया कि मनाली को जाने वाला प्लेन छोटा होता है. पहाड़ियों से टकराने की संभावना होती है.  मैं अपनी शादी से पहले मरना नहीं चाहता, इसलिए नहीं आऊंगा मैं. मैं वापस मुंबई चला गया. इस फिल्म के नगाड़ा-नगाड़ा गाने का भी एक किस्सा है. ये गाना न प्रीतम को पसंद था, न इम्तियाज़ को. लेकिन मुझे पसंद था. वो गाना कितना हिट हुआ वो सब जानते हैं. 4. इम्तियाज़ और इरशाद की दोस्ती हम उन दिनों के दोस्त हैं जब ना वो इम्तियाज़ अली थे, ना मैं इरशाद कामिल. हम मुफलिसी के दौर के दोस्त हैं. एक कटिंग चाय के भी पैसे नहीं हुआ करते थे. एक किस्सा है. 'सोचा न था' पर काम चल रहा था. टाइटल सॉंग लिखा था. इम्तियाज़ ने इसे बकवास बताया. हम वर्सोवा बीच पर टहलने लगे. रात के ढाई बज रहे थे. पुलिस वाले आ गए. उन्होंने पूछा क्या कर रहे हो? हमने कहा गाना डिस्कस. रात के ढाई बजे? वर्सोवा पुलिस स्टेशन ले गए. रास्ते में भी हम डिस्कस करते रहे. उनके लिए चाय आई तो वो उन्होंने हमें भी पिला दी. इम्तियाज़ से पूछा,
"क्या करते हो?""जी, डायरेक्टर हूं.""कौन सी फिल्म डायरेक्ट की है?"" की नहीं है, अभी करूंगा."
मुझसे पूछा तुम क्या करते हो, मैंने कहा गाने लिखता हूं. कौन सा गाना? जी अभी आया नहीं है. उन्होंने हमें 40 मिनट तक बिठा के रखा. फिर भेज दिया. जब ऐसे किस्से आप शेयर करते हैं, तो शायद दोस्ती गहरी हो जाती है. 5. फिर से उड़ चला हुआ ये कि 'रॉकस्टार' के इस गाने के लिए रहमान ने हंस ध्वनि राग पर कम्पोजीशन बनाई. इम्तियाज़ को पसंद भी आ गई. अगर इस धुन ध्यान से सुने तो वो चलती जाती है. पूरा राग एक स्ट्रक्चर है. उसे सुन के तो मैं डर गया. सिरा ही समझ में नहीं आ रहा था. मैंने पूरी बेईमानी दिखाई. उस कम्पोजीशन के खिलाफ इम्तियाज़ को भड़काने की की कोशिश की. इम्तियाज़ ने बोला कि उन्हें यही चाहिए. उसे समझने के लिए दो दिन तक मैं, इम्तियाज़ और मोहित चौहान डिस्कस करते रहे. जब उसे समझा, तब लिखना शुरू किया. दो-दो लाइन लिख के इम्तियाज़ को देता था. मोहित गा के देखता था. ऐसे बना ये गाना. 22385021_1336547363140217_1635493256_n6. कैसा ये रिस्क है! कुछ बातें बड़े सहज तरीके से निकलती हैं. जब आप गीतकार या कवि या कुछ भी नहीं होते हैं. ये इश्क और रिस्क की कहानी है. अली अब्बास ज़फर की फिल्म थी ये. हम डिस्कस कर रहे थे. फिल्म में ये गाना अचानक आता है. मैंने कहा कि अचानक गाना कैसे चल पड़ेगा? कोई रीज़न भी तो होना चाहिए. अली ने कहा प्यार होने ही वाला है.मैंने कल्पना की. रेडियो टंगा हुआ है. उसपर फरमाइश चलती है. बातचीत में ये काफिया भी मिला. 7. इरशाद कामिल का इश्क  मेरी एक किताब है एक 'महीना नज़्मों का'. उसके प्रीफेक्स में लिखा है कि मैं उस गली का आशिक हूं, जिसमें कोई खूबसूरत रहता है. मैं ही रांझा था. मैं ही महिवाल हूं. मुझे ही जूलिएट में मार दिया था. मैं ही प्रेम करता आ रहा हूं. मैं ही धोखा खा रहा हूं. धोखे से दोबारा प्रेम जन्मता है. असगर वजाहत का नाटक 'जिन लाहौर नहीं वेख्या' चल रहा था यूनिवर्सिटी में. एक लड़का था. एक लड़की थी. दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे. फुटबॉल ग्राउंड की सीढ़ियों पर बैठकर चाय पीने लगे. फिर लड़का बॉम्बे चला गया. जब उसे लगा कि ठीकठाक कमाने लगा है तो दोनों ने शादी कर ली. 8. पहला हिट गाना, 'भागे रे मन' ये मेरी पहली फिल्म थी. हालांकि साइन पहले 'सोचा न था' की थी. संदेश शांडिल्य के साथ उसमें काम कर चुका था. 'चमेली' के लिए उन्होंने डायरेक्टर से कहा इन्हीं से लिखवा लेते हैं. कम्पोजीशन हुई, गाने लिखने शुरू किए. ये गाना मुझसे लिखा ही नहीं गया. एक बिल्डिंग में 20 वे फ्लोर पर संदेश का स्टूडियो था. उन्होंने कहा ऐसे नहीं चलेगा. कुछ तो लाओ जिससे प्रोड्यूसर बोले वाह. लिफ्ट में एक लड़की थी और कुत्ता था. लड़की मुझे, मैं कुत्ते को घूरते रहे. मैं लिफ्ट के घटते नंबर देख रहा था. लगा इन्हीं की तरह मेरा विश्वास घटता जा रहा है.  मैं घूमता रहा. क्यों नहीं समझ आ रहा कुछ? सुबह 4 बजे घर पहुंचकर 10 अंतरे लिखे. उन्हें संदेश के पास ले गया. बोला, जो छांटने है छांट लो. 22290395_1336547386473548_1858588831_n9. 'जब हैरी मेट सेजल' का सफ़र "जबसे गांव से मैं शहर हुआ, इतना कड़वा हो गया कि ज़हर हुआ" ये पहला गाना था जिसका अटेम्प्ट किया. ये हम सबकी कहानी है. कैसे एक कडवाहट हमारे अंदर भरती जाती है. कैसे ये अनचीन्हा ज़हर हम महसूस करते हैं. वो सारी बात इस गाने में है. ये गाना मैंने एक पैराग्राफ की तरह लिखा था. 10. तुम साथ हो या न हो रोमांस हमेशा गुलाबी नहीं होता, उसे कभी सच के धरातल पर भी उतरना पड़ता है. जितना वो उतरेगा, उतना उसके कामयाब होने के आसार ज़्यादा होते हैं. जो पसंद है वो है. अगर तुम उसके साथ रहना चाहते हो, तो बता दो कि उसकी कौन सी चीज़ें  अच्छी नहीं लगती. 11. मेरी हर होशियारी बस तुम तक 'तुम तक' मेरे दिल के बहुत करीब है. आनंद एल राय ने मुझे सीन बताया था. ए आर रहमान, आनंद राय और मैं बैठे हुए थे. इस गाने की सिटिंग के लिए. रहमान हमेशा तैयार रहते हैं. मैंने कुछ नहीं किया था. उन्होंने बोला इरशाद, हैव यू डन? मैंने कहा, यस. उन्होंने कहा सुनाओ. मैंने बोला 'तुम तक'. उन्होंने कुछ सेकण्ड का पॉज लिया. फिर बोले, 'देन'? मैंने कहा 'बस'. उन्होंने तीन मिनट का और पॉज ले लिया. फिर बोला ब्यूटीफुल. रहमान मेरी बात समझ गए. आनंद भी मेरी बात समझ गए. 22330714_1336547409806879_1161098711_n12. इम्तियाज़ अपनी कलम में स्याही की जगह शहद डालते हैं क्या? ये जो शाहरुख़, सलमान, रणवीर हैं, ये बाद में गाते हैं. मैं अपने टेबल पर बैठकर पहले ही गा लेता हूं. जब आप सीन में उतरते हैं तो पूरा सीन आपकी आंखों के सामने होता है. दीपिका, कटरीना जैसी किसी नाज़ुक लड़की का तसव्वुर हो तो अपने आप मीठा बन जाता है सब. कुछ कम्पोजीशन भी होती है मीठी. 13. रब्बा मैं तो मर गया ओये मैं मिलन लुथरिया के लिए प्रीतम के साथ 'पी लूं' की सिटिंग कर के निकला था. साथ में प्रीतम थे. उन्होंने कहा ये गाना बनना है. गाड़ी में 45 मिनट का रास्ता था. उतने ही वक़्त में लिखा ये मुखड़ा. ये गाना बढ़ने में कम्पोजीशन का बहुत बड़ा हाथ है. ये थी ही इतनी मीठी. 14. लल्लनटॉप के बारे में क्या सोचते हैं? लल्लनटॉप वाकई लल्लनटॉप चीज़ है यार. कंटेंट आपको ऐसे दिया जाता है कि वो कुनैन की गोली नहीं लगती. लगता है बचपन में मिलने वाली मीठी गोली है. इसी तरह सोच परोसता है. मैं बहुत दिल से बधाई देता हूं. तरक्की की दुआएं देता हूं. मेरे घर में सब पूछते हैं सारा टाइम यहीं खराब करते हो? मैं बहुत पढता हूं लल्लनटॉप.
देखिए लल्लनटॉप शो में इरशाद की पूरी बातचीत:

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