एक कविता रोज़ में आज विनय सुल्तान की एक कविता-मछलियांसभ्यताएं नदियों के किनारे बसी इतिहास की किताब में दर्ज है लेकिन किसी ने नहींदर्ज की मछलियां सिवाय कक्षा एक की पोथी के जिसमें लिखा था मछली जल की रानी हैदरअसल वो मछलियां ही थीं जिन्होंने पुरखों का पेट भरा कई पीढ़ियों तक क्यों कि धानउपजाने का शऊर हासिल करने में खप गई कई पीढियांवो मछलियां ही थीं जिसने बोए नाव के बीज इंसान के दिमाग में पुरखों ने बनाई काठ कीमछलियां और जीत ली सारी जमीनवो मछलियां ही थी जिनके कांटे बने पहली सुई और इंसान ने मौसम से लड़ना सीखाये मछलियां ही थी जिनकी आंखों से कवियों ने की मोहब्बत और खोजते रहे उन आंखों कोअपनी प्रेमिका मेंअगर मछलियां नहीं होती तो बेहद एकाकी हो जाता पानी वो प्यास बुझाने की बाजाए आगलगाताये मछलियां ही थी कि आदमी, आदमी बन पाया और पानी-पानी रह पाया हर शाम सूरज निगलनेके बावजूदलेकिन हम नाशुक्री नस्ल मछली को कोसते रहे उसके कांटो के लिए...--------------------------------------------------------------------------------वीडियो- एक कविता रोज: सीलमपुर की लड़कियां