'दुनिया रोती-धोती रहती, जिसको जाना है, जाता है'
एक कविता रोज़ में आज हरिवंश राय बच्चन की कविता पढ़िए.
छायावादी कवि डॉ. हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ आज भी अमेज़न की बेस्टसेलर लिस्ट में टॉप टेन में रहती है. उमर खय्याम की रुबाइयों से प्रेरित ‘मधुशाला’ के अलावा बच्चन ने बहुत कुछ और विभिन्न आयामों में लिखा है. ‘इस पार प्रिये मधु है तुम हो’, ‘जो बीत गई सो बात गई’, ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’, ‘कोई गाता मैं सो जाता’ जैसी कविताएं तो शायद उन्होंने भी सुनी होंगी, जिन्हें साहित्य और कविताओं से कभी कोई ख़ास लगाव नहीं रहा.
ये ग़लत है या सही नहीं पता, लेकिन मेरे अनुभव से देश का आम जन यदि गद्य को 'प्रेमचंद' और 'गोदान' से जानता है तो कविता में उसकी रूचि आज भी डॉ. हरिवंश राय 'बच्चन' और 'मधुशाला' ही है.
अब तो ये हाल है कि यदि किसी को अपनी कविता फेसबुक, वॉट्सऐप वगैरह में वायरल करनी होती है तो कविता से पहले यह जोड़ देता है कि 'हरिवंश राय बच्चन जी ने क्या कमाल की बात कही है..!’
ये रही मधुशाला की 'दो एक पंक्तियां' सदी के महानायक की आवाज़ में:
और आइये अब पढ़वाते हैं उनकी एक प्रसिद्ध कविता ‘इस पार प्रिये मधु है तुम हो’-
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!यह चांद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरा-लहरा यह शाखाएं कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झाने वाली कलियां हंसकर कहती हैं मगन रहो, बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का, तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो, उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!जग में रस की नदियां बहती, रसना दो बूंदें पाती है, जीवन की झिलमिल सी झांकी नयनों के आगे आती है, स्वरतालमयी वीणा बजती, मिलती है बस झंकार मुझे, मेरे सुमनों की गंध कहीं यह वायु उड़ा ले जाती है! ऐसा सुनता, उस पार, प्रिये, ये साधन भी छिन जाएंगे, तब मानव की चेतनता का आधार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!प्याला है पर पी पाएंगे, है ज्ञात नहीं इतना हमको, इस पार नियति ने भेजा है, असमर्थ बना कितना हमको, कहने वाले, पर कहते है, हम कर्मों में स्वाधीन सदा, करने वालों की परवशता है ज्ञात किसे, जितनी हमको? कह तो सकते हैं, कहकर ही कुछ दिल हलका कर लेते हैं, उस पार अभागे मानव का अधिकार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!कुछ भी न किया था जब उसका, उसने पथ में कांटे बोये, वे भार दिए धर कंधों पर, जो रो रोकर हमने ढोए, महलों के सपनों के भीतर जर्जर खंडहर का सत्य भरा! उर में ऐसी हलचल भर दी, दो रात न हम सुख से सोए! अब तो हम अपने जीवन भर उस क्रूर कठिन को कोस चुके, उस पार नियति का मानव से व्यवहार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!संसृति के जीवन में, सुभगे! ऐसी भी घड़ियां आऐंगी, जब दिनकर की तमहर किरणे तम के अन्दर छिप जाएंगी, जब निज प्रियतम का शव रजनी तम की चादर से ढक देगी, तब रवि-शशि-पोषित यह पृथ्वी कितने दिन खैर मनाएगी! जब इस लंबे-चौड़े जग का अस्तित्व न रहने पाएगा, तब तेरा मेरा नन्हा सा संसार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!ऐसा चिर पतझड़ आएगा, कोयल न कुहुक फिर पाएगी, बुलबुल न अंधेरे में गा-गा जीवन की ज्योति जगाएगी, अगणित मृदु-नव पल्लव के स्वर 'मरमर' न सुने जाएंगे, अलि-अवली कलि-दल पर गुंजन करने के हेतु न आएगी, जब इतनी रसमय ध्वनियों का अवसान, प्रिय हो जाएगा, तब शुष्क हमारे कंठों का उद्गार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!सुन काल प्रबल का गुरु गर्जन निर्झरिणी भूलेगी नर्तन, निर्झर भूलेगा निज 'टलमल', सरिता अपना 'कलकल' गायन, वह गायक-नायक सिन्धु कहीं, चुप हो छिप जाना चाहेगा! मुंह खोल खड़े रह जाएंगे गंधर्व, अप्सरा, किन्नरगण! संगीत सजीव हुआ जिनमें, जब मौन वही हो जाएंगे, तब, प्राण, तुम्हारी तंत्री का, जड़ तार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!उतरे इन आखों के आगे जो हार चमेली ने पहने, वह छीन रहा देखो माली, सुकुमार लताओं के गहने, दो दिन में खींची जाएगी ऊषा की साड़ी सिन्दूरी पट इन्द्रधनुष का सतरंगा पाएगा कितने दिन रहने! जब मूर्ति-मती सत्ताओं की शोभा-सुषमा लुट जाएगी, तब कवि के कल्पित स्वप्नों का, श्रृंगार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!दृग देख जहां तक पाते हैं, तम का सागर लहराता है, फिर भी उस पार खड़ा कोई हम सब को खींच बुलाता है! मैं आज चला तुम आओगी, कल, परसों, सब संगी-साथी, दुनिया रोती-धोती रहती, जिसको जाना है, जाता है। मेरा तो होता मन डगडग मग, तट पर ही के हलकोरों से! जब मैं एकाकी पहुंचूंगा, मंझधार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!कुछ और कविताएं यहां पढ़िए:
‘ठोकर दे कह युग – चलता चल, युग के सर चढ़ तू चलता चल’
‘जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख'
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