साल 2018 में एकता कपूर के स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म ऑल्ट बालाजी पर एक क्राइम सीरीज़आई थी. जिसका नाम था अपहरण. इसका दूसरा सीज़न आया है अब. इसे कलर्स के वूट ऐप परदेखा जा सकता है. कुल 11 एपिसोड्स की सीरीज़ है. जो हिंदी फिल्मों के गानों सेलबालब भरी है. हमने देख ली है. पिछले सीज़न से ये नया वाला कैसे अलग है, क्या नयाहै इसमें और क्या घिसा-पिटा, आइए बताते हैं.ये हैं इंस्पेक्टर रुद्र श्रीवास्तव. जिनकी लाइफ ट्रेजडियों से पटी पड़ी हैं.इस बार भी कहानी, ईमानदार पुलिस ऑफिसर रुद्र श्रीवास्तव की है. वही रुद्र, जो पिछलेसीज़न, अपनी ईमानदारी के चक्कर में कई लफड़ों में पड़ा. मगर इस बार मुसीबत का कारणउसकी बीवी रंजना बनती है. रूद्र की शादीशुदा ज़िंदगी में वैसे भी कुछ ठीक नहीं होरहा होता. उधर उसके ऑफिस वाले रुद्र को रॉ का एजेंट बनाकर सर्बिया भेज देते हैं. एकखूफिया मिशन पर. रॉ की नाक में दम कर रहे क्रिमिनल बिक्रम बहादुर शाह यानी बीबीएसको किडनैप करने के मिशन पर. अब रुद्र वहां कैसे पहुंचता है, बीबीएस को कैसे मारताहै, क्या-क्या ट्विस्ट एंड टर्न होते हैं इसके लिए आपको देखनी होगी अपहरण-2.#कितने दमदार निकले कलाकार?शुरू से शुरू करें तो सबसे पहले बात एक्टिंग की. इस सीज़न में भी रुद्र की वाइफरंजना यानी निधी सिंह सारा अटेंशन ले गईं. हालांकि इस बार उन्हें स्क्रीन टाइम कममिला. लेकिन जितना मिला, उसमें उन्होंने जी-जान लगा दी. नशे में धुत्त होकर गानागाने का सीन हो, या रुद्र की सच्चाई जानकर भय वाला दृश्य. निधि की स्क्रीन टाइमिंगबढ़िया है.ये हैं रुद्र श्रीवास्तव की पत्नी रंजना. जिन्हें लगता है कि लता मंगेशकर कोउन्होंने गाना सिखाया है.रॉ ऑफिसर भंडारी बने एक्टर उज्ज्वल चोपड़ा का काम बस काम चलाऊ ही है. उनके कैरेक्टरकी जो डिमांड इस सीरीज़ में थी, वो पावर स्क्रीन पर जनरेट नहीं कर पाए. कहीं-कहींतो वो बिल्कुल ढीले से पड़ते दिखते हैं. दूबे और गिल्लौरी यानी सानन्द वर्मा औरस्नेहिल दीक्षित मेहरा ने अपने रोल्स में अच्छा काम किया है. इंटेंस सीन औरखून-खराबे के बीच कॉमेडी को बैलेंस करने के लिए दोनों का रोल ज़रूरी है. स्नेहिलदीक्षित उभरती हुई यू-ट्यूबर हैं. जिन्हें आप स्क्रीन पर और देखना चाहते हैं. मगरअफसोस ऐसा नहीं होता. लास्ट एपिसोड में एक्टर जितेन्द्र का छोटा सा रोल अहम भी हैऔर दमदार भी.सीरीज़ का ट्रेलर अगर आपने देखा होगा तो उसमें स्नेहिल दीक्षित एक लाइन कहती हैं,'ए जी ई गाली दे रहे हैं.'बस पूरी सीरीज़ में इनसे सिर्फ गालियों को लेकर ही चर्चाहोती है. इन्हें बस फिलर के जैसे दिखाया गया है. जबकि आप इससे कुछ ज़्यादा कीउम्मीद रखते हैं.पूरे सीरीज़ के सूत्रधार यानी इंस्पेक्टर रुद्र का कैरेक्टर निभाने वाले अरुणोदय नेइस सीज़न मेहनत तो की है. पिछले सीज़न का मेन प्रोटैगनिस्ट अपने ही किरदार में उलझाहुआ था. मगर इस बार अरुणोदय ने ग्रे शेड को पर्दे पर बखूबी उतारा है. मगर उनकीएक्टिंग दमदार होने के बावजूद सीरीज़ बहुत प्रेडिक्टबल लगती है. कई सीन्स देखकर येफील होता है.सीरीज़ देखते हुए कई बार आप ऐसा बोलने वाले हैं.#सबसे कमज़ोर कड़ी साबित होती है राइटिंगइसमें पूरी तरह एक्टर्स की गलती नहीं. बड़ा हाथ स्टोरी लिखने वाले राइटर सिद्धार्थसेनगुप्ता और उनकी टीम का भी है. सिद्धार्थ बालिका वधू के डायरेक्टर रह चुके हैं औरपिछले साल ही इनकी लिखी सीरीज़ अनदेखी भी आई थी. जो एक क्राइम सीरीज़ थी.नेटफ्लिक्स पर आई ये काली-काली आंखें के डायरेक्टर भी रह चुके हैं. ऐसा लगता है किअपहरण 2 को लिखने की उन्हें बहुत जल्दी थी इसलिए बस किसी भी तरह टीप-टाप के कामखत्म कर दिया. क्योंकि इस सीरीज़ में राइटिंग बहुत कमज़ोर कड़ी साबित होती है.स्टोरीटेलिंग भी आपको बांधे नहीं रख पाती.कहानी में ट्विस्ट तो है मगर वो 90 के दशक में आई फिल्मों की याद दिलाता है. मेनकैरेक्टर रुद्र को आधी सीरीज़ के बाद अचानक से कमज़ोर बना दिया जाता है. उसे कुछयाद नहीं रहता, वो बीबीएस के ही चंगुल में फंस जाता है.इस सीज़न में डायलॉग्स भी हैं मगर इतने वल्गर हैं कि आप इन्हें कोट नहीं कर सकते.हर पंचलाइन की शुरुआत और अंत गाली से होती है. पिछले सीज़न में भी बार-बार गालियोंके इस्तेमाल से शिकायत थी. इस बार भी मेकर्स ने वही गलती की है. क्राइम जॉनर हैसोचकर गालियों को स्क्रिप्ट का ज़रूरी हिस्सा मान लिया. राइटर्स ये क्यों नहींसमझते कि सिर्फ गालियां भर देने से 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' नहीं बन जाया करते.#डायरेक्टर साहब नहीं कर पाए आपके अटेंशन का 'अपहरण'खैर, संतोष कुमार का डायरेक्शन दिल नहीं जीत पाता. लगता है जैसे सीरीज़ में कईफिल्मों के सीन्स को चुराकर डाला गया है. यहां दो सीन्स का ज़िक्र करना चाहेंगे.शुरुआती एक सीन में नफीसा यानी सुखमनी, बार गर्ल को छत से लटकाकर उसे जला देती है.ये सीन देखकर आपको रेड नोटिस की गैल गैडोट की याद आ जाएगी. ऐसा ही एक सीन (फनी वेमें) मुन्नाभाई एमबीबीएस में भी इस्तेमाल किया गया है.एक सीन 'अपहरण 2' का है और दूसरा फिल्म 'रेड नोटिस' का.वहीं लास्ट सीन में रूद्र और विलेन बीबीएस के चेहरे पर रंग लग जाता है. इसे देखकरभी शाहरुख खान की फिल्म 'डुप्लीकेट' का क्लाइमैक्स सीन याद आता है. ऐसे भी कई एक्शनसीन्स हैं, जो पॉपुलर फिल्म्स से चुराए हुए लगते हैं.#सीन की गंभीरता को ले डूबता है बैकग्राउंड म्यूज़िकसीरीज़ का बैकग्राउंड स्कोर लाउड है. कई जगहों पर ये इतना लाउड हो जाता है कि सीनकी वैल्यू ही कम कर देता है. कैमरा मूवमेंट अच्छा है. जिससे कुछ सीन्स देखने मेंअच्छे लगते हैं. लेकिन सीरीज़ की भाषा और बीच-बीच में गैर ज़रूरी रूप से इस्तेमालकिए हुए अश्लील शब्द, आपका मन भटका देंगे. क्राइम सीरीज़ में वैसे सिनेमैट्रोग्राफीका स्कोप कम ही होता है. इसमें भी ज़्यादातर सीन्स डार्क लाइट में शूट किए गए हैं.कुल जमा बात ये है कि इस अपहरण-2 पर साढ़े पांच घंटे लगाना कोई विन-विन सिचुएशननहीं है. इसे ना भी देखा जाए, तो कोई बहुत अच्छी चीज़ मिस नहीं करेंगे. बाकी रिव्यूआपके हवाले रहा. आप अपनी मर्ज़ी और अपने समय के खुद मालिक हैं.