साल था 2007. पंजाब के अमृतसर जिले में एक गांव है हरसा चीना. गांव के एक रिटायर्डफौजी जगबीर सिंह अपनी आर्थिक तंगी से परेशान थे. जगबीर अपनी जवानी में खिलाड़ी बननाचाहते थे, लेकिन हाथ में पैसा नहीं था. 2007 में उनके छोटे बेटे ने गेम खेलने कीइच्छा जाहिर की. घर में पैसे की तंगी जरूर थी लेकिन जगबीर पैसे की कमी के आगे बेटेकी इच्छा का गला नहीं घोंटना चाहते थे. उस बच्चे को लेकर वो जालंधर स्पोर्ट्स स्कूलपहुंचे और यहां दाखिला करवा दिया. यहां लड़के ने ट्रिपल जम्प में अपना दमदिखाया. थोड़े ही समय में लड़का निखरने लगा. अगले साल लड़के ने स्टेट और नेशनल लेवल परमेडल जीतकर अपने पिता को ये यकीन दिला दिया कि वो जरूर बड़ा नाम करेगा.साल 2014. 7 साल बीत चुके थे और ये लड़का 22 साल का हो चुका था. वो इसी गेम मेंस्कॉटलैंड के ग्लास्गो में कॉमनवेल्थ गेम्स खेलने पहुंचा था. उसके लिए इस तरह का येपहला बड़ा इवेंट था. लड़के ने ब्रॉन्ज मेडल जीता. उसे उम्मीद थी कि मेडल जीता है तोपंजाब सरकार से ज्यादा आर्थिक मदद नहीं मिली. नौजवान के पिता घर की माली हालत सेपरेशान जरूर थे, मगर किसी भी हालत में बेटे का खेल नहीं छुड़वाना चाहते थे. बेटे कीप्रैक्टिस जारी रखवाने के लिए जगबीर सिंह ने जमीन को गिरवी रख क़र्ज़ ले लिया. क़र्ज़बढ़ते-बढ़ते 5 लाख हो गया था. जैसे तैसे जगबीर ने कर्ज चुका दिया. लेकिन असल क़र्ज़ तोबेटे ने चुकाया है 29 अगस्त 2018 को. मेडल जीतकर. वो भी गोल्ड. इस बेटे का नाम हैअरपिंदर सिंह है जिसने इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में हो रहे 18वें एशियन गेम्समें ये गोल्ड मेडल जीता है.एशियन गेम्स में मेडल जीतने के बाद फोटो खिंचवाते हुए अरपिंदर.भारत के लिए ट्रिपल जम्प में 25 साल के अरपिंदर ने ऐसी छलांग लगाई कि कोई उसकेआसपास नहीं पहुंच सका. ये दूरी थी 16.77 मीटर की. चुनौती देने चीन और कजाकिस्तान केलड़के जरूर आए, मगर अरपिंदर के आगे नहीं निकल पाए. उज्बेकिस्तान के रसलान कुरबानोवने 16.62 मीटर छलांग लगाकर सिल्वर और चीन के शुओ काओ ने 16.56 मीटर छलांग लगाकरब्रॉन्ज मेडल जीता है. इसी इवेंट में भारत के सुरेश बाबू भी भाग ले रहे थे लेकिन वोमेडल जीतने में असफल रहे.भारत ने एशियन गेम्स के ट्रिपल जंप में 48 साल बाद गोल्ड जीता है. अरपिंदर से पहलेपंजाब के ही महिंदर सिंह ने 1970 के एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता था. जब 2014 कॉमनवेल्थ में कांसा जीता तो पंजाब सरकार ने अरपिंदर की कोई ख़ास मदद नहींकी. उनके एक हरयाणवी रिश्तेदार ने उन्हें हरियाणा से खेलने की सलाह दी. जिसके बादएथलीट अरपिंदर ने खेल को जारी रखने के लिए पंजाब छोड़कर हरियाणा के सोनीपत में रहनाशुरू कर दिया. अरपिंदर ने हरियाणा की ओर से खेलते हुए 2015 में नेशनल गेम्स मेंगोल्ड मेडल के साथ-साथ बेस्ट एथलीट का खिताब भी अपने नाम किया था. सोनीपत में उनकेसाथ रह रहे उनके रिश्तेदार विकास ने लल्लनटॉप को बताया, "अरपिंदर को पंजाब सरकार सेकोई ख़ास सहायता नहीं मिल रही थी जिसके कारण वह हमारे पास यहां सोनीपत आकर रहने लगाथा. अरपिंदर ने तो हरियाणा का राशन कार्ड और वोटर कार्ड तक बनवा लिया है. 2018 केकॉमनवेल्थ गेम्स में चोट के कारण मेडल नहीं जीत पाए थे. फिर भी उसने अपने ऊपर भरोसानहीं छोड़ा और इस बार का एशियन गेम्स में मेडल जीतकर खुद को साबित कर दियाहै." अरपिंदर अब तक 14 नेशनल और 4 इंटरनेशनल मेडल जीत चुके हैं. इतना ही नहीं वोट्रिपल जम्प के नेशनल रिकॉर्डधारी भी हैं. उन्होंने 2014 में नेशनल रिकॉर्ड 17.17मीटर कूदकर बनाया था. अपने एक इंटरव्यू में अरपिंदर ने कहा है-मैंने बहुत हार्डवर्क किया था, इसलिए पूरा यकीन था कि गोल्ड मैं ही जीतूंगा.मैंने 2007 से ही ट्रिपल जंप में मेडल जीतने शुरू कर दिए थे. 2011 नेशनल गेम्स केबाद से ही मैं लगातार गोल्ड जीत रहा हूं. मुझे अभी तक बस एक बार 2015 में सरकार नेकरीब 6 लाख दिए थे, लेकिन मुझे आजतक पता नहीं चला कि वो पैसे किस इवेंट में जीतनेके लिए दिए थे? अभी तक पंजाब सरकार के पास कोई स्पोर्ट्स पॉलिसी नहीं है, जिसकी वजहसे खिलाड़ी जो कुछ थोड़ा बहुत जीत पा रहे हैं, वो खुद की मेहनत से जीत पा रहे हैं.मुझे अभी भी पंजाब सरकार से कोई ख़ास उम्मीद नहीं है क्योंकि सरकार ने पहले भी कुछनहीं किया था तो अब क्या करेगी? 2012 के एक इवेंट में जंप लगाते हुए अरपिंदर. अरपिंदर की शिकायत जायज है क्योंकि उन्हें अपना गेम जारी रखने के लिए पंजाब छोड़करहरियाणा शिफ्ट जो होना पड़ा. उनको उनकी मेहनत का फल मिल गया है. अब एशिया के इस नएचैंपियन को हमारी तरफ से झोला भर बधाई.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ें:जानिए 16 साल के उस छोरे को जो एशियन गेम्स में गोल्ड ले आया हैइंडोनेशिया को जिस मैच में 17-0 से हराया, उसमें पाकिस्तान का एकाधिकार भी ख़त्मकियाजानिए बजरंग पुनिया के गोल्ड अलावा भारत को क्या मिला है एशियाड मेंफोगाट परिवार एक बार फिर कह रहा है- म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के?जब घर में खाना न हो, कुश्ती लड़कर पैसे कमाने पड़ें, तब जाकर कोई बजरंग पूनियाबनता हैवीडियो भी देखें: क्रिकेट के इतिहास में एक गेंद में सबसे ज्यादा रन बनने की कहानी