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चांद पर पानी तो है नहीं तो फिर वहां की धूल इतनी चिपकती क्यों है?

इसके पीछे वही फिनामिना है, जिसकी वजह से धुलाई और इस्त्री के बाद, पतले कपड़े आपकी त्वचा से चिपक जाते हैं. जैसे बचपन में बच्चे प्लास्टिक की स्केल को बालों में घिसकर उससे कागज के छोटे टुकड़े उठा लेते हैं. वैसा ही कुछ मामला चांद की धूल का भी है.

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इस चिपकू मिट्टी को धोने का जुगाड़ भी निकाला जा रहा है. (Image: NASA)
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राजविक्रम
15 अक्तूबर 2024 (Published: 12:10 IST)
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जुलाई, 1969 में चांद पर इंसानों ने जब पहली बार कदम रखा (moon landing), तो धूल पर पैरों के निशान पड़े. बताया जाता है, ये निशान आज भी वहां मौजूद हैं. क्योंकि वहां ना तो हवा चलती है, ना ही धूल उड़ती है. और चांद पर जब अमेरिका ने अपना झंडा फहराया, तो वो हवा में उड़ता नजर आ रहा था. इसे लेकर कई कॉन्सपिरेसी थ्योरी भी लोग चलाते हैं, कि चांद पर हवा नहीं है तो झंडा फहर कैसे रहा है? यानी, चांद पर लैंडिंग हुई ही नहीं. खैर, वो अलग मसला है. लेकिन एक बात जो हमें पता है कि चांद की धूल एस्ट्रोनॉट्स के सूट पर चिपकती बहुत है. 

बीबीसी की खबर के मुताबिक, जैसे नदी किनारे रेत आपके ऊपर चिपक जाती है, और झाड़े नहीं झड़ती है. बताया जाता है कि चांद की धूल इससे कई-कई ज्यादा गुना ‘चिपचिपी’ होती है.

और इसके पीछे वही फिनामिना है, जिसकी वजह से धुलाई और इस्त्री के बाद, पतले कपड़े आपकी त्वचा से चिपक जाते हैं. जैसे बचपन में बच्चे प्लास्टिक की स्केल को बालों में घिसकर, उससे कागज के छोटे टुकड़े उठा लेते थे. वैसा ही कुछ मामला चांद की धूल का भी है. इसे टेक्निकल भाषा में कहते हैं स्टैटिक क्लिंग, यानी स्टैटिक इलेक्ट्रिसिटी की वजह से हल्की चीजों का चिपकना. 

दरअसल, सभी चीजों में इलेक्ट्रॉन होते हैं. जिनमें नेगेटिव चार्ज होता है. अब ये इलेक्ट्रॉन जिस चीज में जाते हैं, उसमें भी नेगेटिव चार्ज आ जाता है. और जिस चीज से निकलकर जाते हैं, उसमें पॉजिटिव चार्ज आ जाता है. 

ऐसा ही कुछ स्टैटिक इलेक्ट्रिसिटी के मामले में होता है. जब किसी मटेरियल की सतह में इलेक्ट्रिक चार्ज का बैलेंस बिगड़ जाता है. और वो कुछ समय के लिए पॉजिटिव या नेगेटिव चार्ज ले लेती है. और अपने से विपरीत चार्ज वाली चीज को अपनी तरफ खींचती है.

चांद की धूल में ऐसा क्या है?

अब होता ये है कि जब भी पूरा चांद होता है, तो ये धरती के मैगनेटोटेल से होकर गुरता है. अब ये मैगनेटोटेल क्या बला है? दरअसल, सूरज की तरफ से कई तरह के चार्ज पार्टिकल निकलते हैं. जिनको सोलर विंड कहा जाता है. ये सोलर विंड जब धरती के चुंबकीय क्षेत्र से टकराते हैं, तो एक लंबी पूंछ सी बनाते हैं. जिसमें चार्ज्ड पार्टिकल की लहर होती है, इसे ही मैगनेटोटेल कहा जाता है. 

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और जब भी चांद इससे होकर गुजरता है. तो इसमें इलेक्ट्रान्स की बमबारी होती है. और चांद की धूल में भी चार्ज आ जाता है. जिसकी वजह से ये आपसे में तो एक दूसरे को दूर भेजते हैं. लेकिन किसी दूसरी सतह जैसे कि एस्ट्रोनॉट्स पर चिपक जाते हैं.

अब इसी का एक समाधान नासा अपने आर्टिमिस मिशन के लिए निकाल रही है. ताकि ये धूल साफ की जा सके. और इसकी धुलाई के लिए तरल नाइट्रोजन को एक जरिया माना जा रहा है. खैर ये धुलाई कैसे होगी ये तो शायद जब इंसान अगली बार चांद पर पहुंचे तब ही पता चल पाए. 

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