सुपरमून-ब्लू मून तो खूब देख लिया, ये 'शिकारी चांद' क्या है जिसका इंतजार आज हर कोई कर रहा है?
Hunter's Moon: जब चांद धरती से सबसे पास होता है, तो इस पोजीशन को कहते हैं, पेरिजी (perigee). वहीं जब ये सबसे ज्यादा दूर होता है तो इसे कहते हैं- एपोजी (apogee). बताया जाता है कि जब ये सबसे पास होता है, तो करीब 12 फीसद ज्यादा करीब होता है, कहें तो कुछ 43 हजार किलोमीटर ज्यादा. पर इस सब का Hunter's moon से क्या लेना देना है.
‘शिकारियों के चांद’ यानी हंटर्स मून (Hunters moon) की चर्चा आगे करेंगे. पहले अक्टूबर के इस खुशनुमा मौसम में इब्न-ए-इंशा का ये शेर पढ़िए,
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा,
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
चौदहवीं की रात, कहें तो जिस रात चांद पूरा होता है. कवियों ने चांद की तुलना, प्रेमिकाओं से कर दी. किसी ने इसे कभी ब्लू मून कह डाला, तो किसी ने इसे सुपर मून कह डाला. ये सब तो फिर भी समझ आता कि चांद की तारीफ में कहे गए होंगे, लेकिन अब चर्चा में है ‘शिकारियों का चांद’. भला ये नाम देने की बेरहमी चांद के साथ क्यो की जा रही है?
सुपर मून का टंटाआगे का मामला समझने से पहले एक बार हल्के से सुपर मून का टंटा समझ लेते हैं. दरअसल, जैसा कि हम जानते हैं कि चांद धरती का चक्कर कुछ अंडाकार पथ पर लगाता है. तो जाहिर सी बात है कि कभी ये धरती के पास होगा कभी दूर.
जब चांद धरती के सबसे पास होता है तो इस पोजीशन को कहते हैं, पेरिजी (perigee). वहीं जब ये सबसे ज्यादा दूर होता है, तो इसे कहते हैं- एपोजी (apogee). बताया जाता है कि जब ये सबसे पास होता है, तो करीब 12 फीसद ज्यादा करीब होता है, कहें तो कुछ 43 हजार किलोमीटर ज्यादा निकट.
अब ज्यादा पास होगा, तब जाहिर तौर पर ज्यादा बड़ा या चमकीला सा भी लगेगा. एपोजी के मुकाबले पेरिजी पोजीशन में चांद करीब 25 फीसद तक ज्यादा चमकीला हो सकता है. इसे ही सुपरमून की संज्ञा दी जाती है.
यह नाम सुझाया था, एस्ट्रोलॉजर रिचर्ड नोल्ले (astrologer Richard Nolle) ने साल 1979 में. हालांकि, इसकी परिभाषा पहले के मुकाबले बदलती भी रही है. क्योंकि नोल्ले का ये भी मानना था कि सुपर मून के साथ भूकंप और खराब मौसम भी दस्तक देता है. हालांकि, इनके बीच कोई संबंध नहीं निकल पाया है. इसलिए अब चांद की पोजीशन के मुताबिक ही सुपर मून तय किया जाता है.
शिकारियों का चांदअब ये तो हो गया सुपर मून का मामला, लेकिन इस महीने का जो पूरा चांद है, उसे एक और नाम दिया जा रहा है ‘हंटर्स मून (Hunter's Moon)’ जो इस महीने का बद्र या पूरा चांद है.
अब इस चांद का नाम तो खूंखार टाइप सुनाई देता है- ‘शिकारियों का चांद’. लेकिन इसके साथ जो मौसम आता है, उसमें हवा में खुशबू बहती है. स्वेटर निकलने ही वाले होते हैं. पेड़ों की हरियाली में विविधता नजर आने लगती है.
सफेद, लाल हो या पीला हरी पत्तियों के संग, ये फूल आलिंगन करते नजर आते हैं. पत्तियां भी मानों फूलों को गले लगाने के बाद, उनका रंग खुद में घोल रही हों, हरी से कुछ पीली-नारंगी सी हो जा रही होती हैं. (बस मेरे अंदर का कवि इतना ही बाहर निकल पाया है) अब बात करते हैं इसका नाम कैसे पड़ा?
हम साल में चार सुपर मून देख सकते हैं. यह साल का तीसरा सुपर मून है. लेकिन ये कहीं ज्यादा चमकीला होगा. क्योंकि ये ‘हंटर्स मून’ साल के चारों सुपर मून से ज्यादा बड़ा लगेगा. लाइव साइंस के मुताबिक यह चांद निकलेगा इसी 17 अक्टूबर की रात.
कैसे पड़ा ये नाम?जैसा कि हम जानते हैं. अलग-अलग संस्कृतियां मौसम और महीनों के आधार पर भी चांद को अलग नाम देते हैं. जैसे हमारे यहां शरद पूर्णिमा नाम दिया जाता है.
वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, इस चांद को शिकारियों का चांद कहने के पीछे भी ऐसी ही कुछ वजह है. दरअसल, इस वक्त लोग ठंड के महीनों के लिए, खाना जमा करने का काम करते थे. खासकर इसलिए क्योंकि इस वक्त तक शिकार किए जाने वाले, खरगोश- हिरन वगैरह गर्मियों भर खा-पीकर तगड़े हो जाते थे.
इस वक्त तक फसलें भी कट जाती थीं. तो चरने निकले शिकार आसानी से नजर आ जाते थे.
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के एक लेख के मुताबिक, हंटर्स मून का पहला लिखित सबूत ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में साल 1710 में मिलता है.
कई दूसरी सभ्यताओं में अक्टूबर के चांद को ‘फॉलिंग लीव्स मून’ (falling leaves moon) या झड़ते पत्तों का चांद भी कहा जाता है. वैसे तो आमतौर पर ‘हंटर्स मून’ भी अक्टूबर के महीने में पड़ता है. लेकिन ये भी बताया जाता है कि हर चार साल बाद ये नवंबर में भी दस्तक देता है.
वहीं जब पहली बार पूरे चांद के नेटिव अमेरिकी नाम छापे गए, तब से यह नाम लोगों में प्रचलित होने लगे.
वैसे इस चांद को सिर्फ यही एक नाम नहीं दिया गया है. अलग-अलग सभ्यताओं में इसे ट्रैवेल मून (Travel Moon), डाइंग ग्रास मून (Dying grass moon), ब्लड मून (Blood Moon) वगैरह-वगैरह नाम भी दिए जाते हैं. बताइए चांद एक और नाम इतने, और शेक्सपियर बाबू कहते हैं, नाम में क्या रखा है?
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