कहानी उस कीड़े की, जिसने चार बार वैज्ञानिकों को Nobel Prize दिलवाया
इस एक मिलीलीटर के जीव ने पहले भी एक खोज में साइंटिस्ट्स की मदद की थी जिसके लिए साल 2002 का नोबेल पुरस्कार दिया गया था. दरअसल, वैज्ञानिकों ने बताया था कि सेहतमंद कोशिकाएं कैसे खुद को मारती हैं. और दूसरी तरफ ये प्रोसेस एड्स, स्ट्रोक या दूसरी बीमारियों में कैसे अलग काम करता है.
साल 2024 के नोबेल पुरस्कारों की घोषणाएं हो चुकी हैं. इस सम्मान को पाने वाले वैज्ञानिक आम तौर पर अपने साथियों, माता-पिता, दोस्त या किसी और खास शख्स का शुक्रिया अदा करते हैं. लेकिन क्या हो अगर कोई अपनी स्पीच में एक कीड़े का जिक्र भी करे. द न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर के मुताबिक, इस साल मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार लेते वक्त मॉल्यिकुलर बायोलॉजिस्ट गैरी रुवकुन (Gary Ruvkun) ने कुछ मिनट एक छोटे से कीड़े को भी समर्पित किए. कैनोरहैबडिटिस एलेगन्स (Caenorhabditis elegans) या सी एलेगन्स नाम के इस छोटे से वर्म को गैरी ने ‘धाकड़’ (Badass) कह डाला.
एक न्यूज कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने इस बारे में बात भी की. कहा,
"किसी ने इस कीड़े के लिए ये शब्द इस्तेमाल करने की सोची भी ना होगी."
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब इस कीड़े ने इंटरनेशनल लेवल की सुर्खियां बंटोरी हों. ना ही यह पहली बार होगा जब सी एलेगन्स वर्म को किसी पुरस्कार को जिताने के लिए नामजद किया गया हो. और ना ही यह पहली बार है, जब नोबेल पुरस्कार के साथ इस छोटू से कीड़े का नाम जुड़ा हो. मिट्टी में रहने वाले इस छोटे से निमेटोड या कृमि के लिए यह चौथी बार होगा, जब इसने बिना किसी निजी फायदे के नोबेल पुरस्कार जिता दिया हो.
इस एक मिलीलीटर के जीव ने पहले भी एक खोज में साइंटिस्ट्स की मदद की थी जिसके लिए साल 2002 का नोबेल पुरस्कार दिया गया था. दरअसल, वैज्ञानिकों ने बताया था कि सेहतमंद कोशिकाएं कैसे खुद को मारती हैं. और दूसरी तरफ ये प्रोसेस एड्स, स्ट्रोक या दूसरी बीमारियों में कैसे अलग काम करता है.
साल 2006 में जीन साइलेंसिंग को नोबल कमिटी ने रेकगनॉइज किया, यानी वो प्रोसेस जिससे जीन के एक्रसप्रेशन को कंट्रोल किया जाता है. इसका संबंध इस बात से है कि कोशिका के भीतर कब कौन सा जीन काम को अंजाम देगा.
इसके दो साल बाद केमिस्ट्री का पुरस्कार भी इस निमेटोड पर हुए एक रिसर्च के लिए दिया गया. इसमें 'सेल्युलर लैंटर्स’, अपनी भाषा में कहें तो ‘कोशिकीय लालटेन’ खोजी गई थीं. जिनकी मदद से बायोलॉजिस्ट कोशिका के भीतर के काम-काज को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं.
बताया जाता है कि हर बार पुरस्कार पाने के बाद साइंटिस्ट्स अपनी खोज में इस कीड़े का शुक्रिया अदा करना नहीं भूले. और शायद सबसे फेमस सिडनी ब्रेन्नर की कही बात होगी. उन्हें पहली बार इसकी मदद से साल 2002 में दो लोगों के साथ साझा नोबेल पुरस्कार मिला था. स्टॉकहोम में अपनी स्पीच के दौरान उन्होंने कहा था,
क्यों है ये कीड़ा अहम?“बेशक, इस साल का चौथा नोबेल पुरस्कार जीतने वाला,कैनोरहैबडिटिस एलेगन्स है. यह पूरे सम्मान का हकदार है, हालांकि यह हमारे साथ जीत की रकम नहीं बांट पाएगा.”
बताते हैं इस निमेटोड में 959 कोशिकाएं ही होती हैं. यानी हम इंसानों के मुकाबले इस पर शोध करना आसान होता है. क्योंकि हममें होती हैं- अरबों कोशिकाएं. जिनके काम-काज को जन्म से मृत्यु तक देखना कठिन काम है. वहीं इस निमेडोड की कोशिकाओं को पैदा होने से से लेकर मरने तक साइंटिस्ट्स ने ट्रेस किया है.
इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के निमेटोलॉजिस्ट द न्यूयॉर्क टाइम्स से बताते हैं,
"यह शायद अब तक सबसे ज्यादा समझा गया बहुकोशिकीय जीव होगा."
दरअसल रिसर्च के मामले में कुछ जीव या आर्गैनिज्म सटीक बैठते हैं. जैसे आपने मेंडल और मटर के पौधे बारे में पढ़ा होगा. जिन पर आनुवांशिकी के प्रयोग किए गए थे. यानी कोई ‘जानकारी’ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक कैसे पहुंचती है.
वहीं जीवों में ऐसे शोध फ्रूट फ्लाई या फलों पर लगने वाली छोटी मक्खी पर किए जाते हैं, क्योंकि इनका जीवन काल तुलनात्मक तौर पर कम होता है. और इनकी कई पीढ़ियों को एक साथ समझा जा सकता है.
ऐसे ही ये छोटू सा निमेटोड भी कई प्रयोगों के लिए एक आदर्श जीव है. क्योंकि यह लाइट माइक्रोस्कोप के नीचे रखने पर कुछ पारदर्शी से हो जाते हैं. और इसके जीवन के विकास का पूरा चक्र करीब तीन दिन का होता है. माने इसका बचपन, जवानी और बुढ़ापा सब तीन दिनों में ही समझा जा सकता है.
यह पहला ऐसा निमेटोड भी बना, जिसका जीनोम पूरी तरह समझा गया था, वो भी साल 1998 में. माने इसके बारे में काफी जानकारी पहले से मौजूद थी.
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