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मच्छर तो सबको एक ही तरह से काटते हैं, फिर कुछ लोगों को कम और कुछ को ज्यादा खुजली क्यों होती है?

Mosquito bite science: लाल, नारंगी और काला, ऐसे रंग मच्छरों को ज्यादा भाते हैं. लोगों के शरीर की गंध वगैरा भी कुछ बड़ी वजहों में आते हैं, जो मच्छरों को खींचती हैं. लेकिन काटने के बाद कुछ लोगों को खुजली ज्यादा, तो कुछ कम क्यों होती है? ये भेद-भाव क्यों?

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mosquito bite science why some people attract more mosquitos and itch more
लाल, नारंगी और काला रंग मच्छरों ज्यादा भाते हैं.
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राजविक्रम
10 सितंबर 2024 (Updated: 10 सितंबर 2024, 12:50 IST)
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कुछ लोगों को खुजली होती है. कुछ लोगों को बहुत खुजली होती है. लेकिन मच्छर तो सबको एक बराबर काटते हैं. काटते हैं ना? नहीं! रिसर्चर्स बताते हैं कि मच्छर कुछ लोगों की तरफ दूसरों के मुकाबले, ज्यादा खिंचे आते हैं. हालांकि, एक्सपर्ट्स किसी एक वजह पर सहमत तो नहीं हो पाए हैं. फिर भी कई वजहें बताई जाती हैं, जो कुछ लोगों को मच्छरों का शिकार ज्यादा बनाती हैं (science of mosquito bite explained).

बताया जाता है कि लोगों की त्वचा पर मौजूद बैक्टीरिया, उनकी सांसों से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड, यहां तक कि कुछ के कपड़ों का रंग तक, उन्हें मच्छरों की जद में ला सकता है.

लाल, नारंगी और काला, ऐसे रंग मच्छरों को ज्यादा भाते हैं. लोगों के शरीर की गंध वगैरा भी कुछ बड़ी वजहों में आते हैं, जो मच्छरों को उनकी तरफ खींचती हैं.

अब वापस खुजली पर आते हैं. मच्छरों के काटने के बाद कुछ को ज्यादा खुजली होती है, कुछ को कम. कुछ खुजा-खुजा के नाखून गरम कर देते हैं. तो कुछ की नाक पर मच्छर बैठा रहे, फिर भी उनको खास फर्क नहीं पड़ता. ये भद-भाव क्यों?

यही समझने की कोशिश हाल में नेचर जर्नल में आई एक रिसर्च में की गई है. पूरा मामला एक-एक करके समझते हैं.

खुजली होती क्यों है?

लाइव साइंस के मुताबिक, हमारी त्वचा में तमाम तरह के सेंसरी न्यूरॉन्स भरे पड़े रहते हैं. जिनका काम होता है, शरीर के बाहर के माहौल की खबर रखना. त्वचा में गरम पानी पड़े, तो ये दिमाग को बता देते हैं कि माहौल में गर्मी है.

ऐसे ही कुछ बाहरी चीजें होती हैं, एलर्जन (allergen). यानी ऐसी चीजें जो शरीर में एलर्जी वाला रिएक्शन पैदा करती हैं. जैसे कीड़े-मकौड़े, धूल के कण, दवाएं वगैरा… 

या फिर मच्छरों की लार, ये भी एक तरह का एलर्जन है. मच्छर जब अपना डंक घुसाते हैं, तो इनकी लार खून तक पहुंचती है. इस लार को कुछ लोगों के न्यूरॉन्स लपक के डिटेक्ट कर लेते हैं. और एक प्रतिक्रिया देते हैं, जिससे शरीर में खुजली होती है.

काटने की जगह के पास की इम्यून सेल्स भी इनकी मदद से एक्टीवेट होती हैं. जिनकी वजह से त्वचा में सूजन और लाल करने वाली रिएक्शन होती हैं. ‘इम्यून सेल्स’ यानी वो कोशिकाएं जो बाहरी तत्वों से लड़ने में शरीर की मदद करती हैं.

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फिर ये भेद-भाव क्यों?

नेचर में छपी इस रिसर्च से जुड़े हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के डॉ कैरोलाइन सोकोल लाइव साइंस को बताते हैं,

हम सभी में संवेदनशील न्यूरॉन्स होते हैं, इसलिए हम सब खुजली फील कर सकते हैं. लेकिन हम सभी को आसपास मौजूद एलर्जन्स से एक जैसी एलर्जी नहीं होती है. 

फिर ये किस चीज से तय होता है कि न्यूरॉन्स, एलर्जन्स के संपर्क में आते ही ‘फायर’ होंगे? या कहें- कुछ लोगों में ही ऐसा क्यों होता है, उन्हीं में खुजली ज्यादा क्यों होती है?

यही पता लगाने के लिए सोकोल और उनके साथियों ने चूहों पर ये रिसर्च की. इस रिसर्च में इन्होंने चूहों को पॉपेन(papain) नाम के केमिकल के संपर्क में डाला. दरअसल, होता ये है कि इस केमिकल की वजह से चूहे अपनी त्वचा को खुजाते हैं. 

लेकिन सभी चूहे इस केमिकल के संपर्क में आने पर एक जैसा नहीं खुजा रहे थे. कुछ कम तो कुछ ज्यादा खुजा रहे थे.

क्या अंतर पता चला…

रिसर्च में बताया गया कि जिन चूहों में एक खास तरह की टी-सेल (T- cell) नहीं थीं, वो पॉपेन के संपर्क में आने पर कम खुजा रहे थे. 

दरअसल, टी-सेल्स एक तरह की वॉइट ब्लड सेल्स (white blood cell) होती हैं. हम जानते हैं, हमारे खून में मौजूद कोशिकाओं को मेनली दो हिस्सों में रखा जा सकता है. एक हैं, वॉइट ब्लड सेल्स और दूसरी हैं रेड ब्लड सेल्स. हिन्दी में कहें- लाल रक्त कोशिकाएं और सफेद रक्त कोशिकाएं. 

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इनके रंग अलग-अलग हैं. इनका नाम अलग है. तो इनका काम भी थोड़ा अलग होना ही है. वैसे इनमें कई अंतर हैं, लेकिन मेन अंतर है- रेड ब्लड सेल्स खून में ऑक्सीजन इधर से उधर पहुंचाने का काम करती हैं. वहीं व्हाइट ब्लड सेल्स इनफेक्शन वगैरा से लड़ने में मदद करती हैं.

इन्हीं वॉइट ब्लड सेल्स का एक टाइप है, टी-सेल्स (T- cells), जिनका काम भी इनफेक्शन वगैरा से निपटना है. अब इसमें भी कई टाइप होते हैं. रिसर्च में जिसका नाम आया उसे GD3 कहा गया.

रिसर्च में देखा गया कि GD3 सेल्स कुछ तो ऐसा रिलीज करती हैं, जिससे नर्वस या तंत्रिकाओं की वजह से होने वाली खुजली बढ़ जाती है. यानी जब ये मौजूद नहीं थीं, तब चूहे कम खुजा रहे थे. जब मौजूद थीं, तब बाकियों से ज्यादा.

खैर, इस रिसर्च से इंसानों में मच्छरों की वजह से होने वाली खुजली समझने में और मदद मिल सकती है. बाकी कुछ अपडेट आएगा तो हम तो आपको बताएंगे ही.

जाते-जाते बताते जाइए कि आप किन लोगों में से हैं- जिनको ज्यादा खुजली होती है या कम?

वीडियो: कुछ लोगों को मच्छर ज़्यादा क्यों काटते हैं? 'मीठा खून' नहीं, ये है वजह

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