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AQI 300 पार; 'जहरीली' हवा से बचने के लिए किस मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं आप, पहले N95 का मतलब जान लीजिए

Diwali के आने से पहले ही दिल्ली में AQI आए दिन 300 के पार जा रहा है. ये भी बता दें कि PM 2.5 यानी प्रदूषित हवा में मौजूद बेहद महीन कणों में क्लोरीन, लेड जैसे तत्व भी हो सकते हैं. जो सेहत को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं. ऐसे में सुविधा के लिए हमें जानना चाहिए कि कपड़े वाले मास्क और N95 में क्या फर्क है?

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pollution mask delhi AQI
N95 और N99 का क्या मतलब है (विकीमीडिया)
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राजविक्रम
30 अक्तूबर 2024 (Published: 09:20 IST)
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कभी हमारे बुजुर्गों ने सोचा होगा क्या कि आने वाले समय में पानी बोतलों में भरकर बेचा जायेगा. वो पानी जो नदियों और कुओं में फ्री में मिलता था. बोतलों में पहुंच गया है. अब पानी की जगह हवा को रखते हैं. क्या एक दौर ऐसा आ सकता है, जब बोतल बंद हवा बिकने लगे. या आ ही गया है, कुछ 10 साल पहले चीन में बेहद खराब हवा के चलते, एक स्टार्टअप ने हवा बेचना शुरू किया था, एक सांस के दस रुपये.

वहीं हमारे देश में हवा का हाल बताने की भी जरूरत नहीं है. साल 2024 का अक्टूबर महीना खत्म नहीं हुआ है. राजधानी में पारा 20 डिग्री के नीचे भी नहीं गिरा है, पर हवा की क्वालिटी (AQI) जरूर गिर गई है. 22-23 अक्टूबर के दरमियां दिल्ली के कई इलाकों में AQI 400 के पार चला गया. कहें तो severe - बेहद खराब. 

इस हवा में क्यों और क्या खतरनाक है? इसके बारे में आप यहां क्लिक करके ज्यादा जान कारी ले सकते हैं.

खैर, एक दौर था जब पहले विश्व युद्ध (1915) में हवा को हथियार बनाया गया था. जर्मन्स का गैस वारफेयर प्रोग्राम. जिसमें पहली बार क्लोरीन गैस का इस्तेमाल किया गया था.

इसके कुछ पांच साल बाद, 1920 के आस-पास दुनिया ने गाड़ियों के पेट्रोल में लेड (Pb) मिलाना शुरू किया. ताकि गाड़ियों के इंजन की आवाज कम हो, वो बेहतरी से काम कर सकें. बाद में लेड के सेहत पर पड़ने वाले असर के बारे में भी मालूम चला. इससे कैंसर, दिल की बीमारियों और दिमागी दौरे जैसी जानलेवा बीमारियों को जोड़ा गया. 

फिर 1990 से 2000 के बीच दुनियाभर के देशों में लेड वाले तेल को बैन करने की मुहिम चलीं. एक रिसर्च में तो ये दावा भी किया गया. कि साल 1996 से पहले पैदा हुए अमेरिकियों के IQ में लेड मिले तेल के चलते कमी हुई हो सकती है.  

अब ये भी बता दें कि PM 2.5 यानी प्रदूषित हवा में मौजूद बेहद महीन कणों में क्लोरीन, लेड जैसे तत्व भी हो सकते हैं. जो सेहत को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं.

जिस डाल पर बैठे उसी को काट रहा इंसान?

इन चंद उदाहरणों से ये समझना मुश्किल नहीं कि इंसान जिस डाल पर बैठे हैं, उसी की कटाई चल रही है. ऐसे में हवा को किसने और कब खराब करना शुरू किया इस बहस में पड़ने से बेहतर है.

फिलहाल इससे बचने के उपाय समझ लें. और जान लें कि बाजार में जो अलग-अलग तरह के मास्क मिल रहे हैं. वो काम कैसे करते हैं और इनमें फर्क क्या होता है? 

मोटे तौर पर हमें तीन तरह के मास्क देखने मिलते हैं. कपड़े का मास्क, सर्जिकल मास्क और रेस्पाइरेटर या वो वाले मास्क जिनमें N95 या N99 जैसी चीजें लिखी होती हैं. एक-एक करके इन पर बात करते हैं. 

N95 mask
प्रदूषण के लिए कौन सा मास्क सही? (विकीमीडिया)

पहले बात करते हैं कपड़े वाले मास्क की जिसके प्रदूषण से बचाने के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती है. कहें तो कपड़े के धागों के बीच का गैप इतना ज्यादा होता है कि यह बेहद छोटे धूल के कणों या PM 2.5 जैसे कणों को ठीक से रोक नहीं पाता है. 

खैर दूसरा मास्क जो हमें देखने मिलता है वो होता है सर्जिकल मास्क. ये अक्सर हरे या नीले रंग के आपने देखे होंगे. ये चेहरे में पहनने में कुछ ढीले से होते हैं. और इसका काम रहता है नाक और मुंह के बीच बाहरी वातावरण के संपर्क को कम करने का. 

जैसा कि नाम है इनका इस्तेमाल ज्यादार मेडिकल प्रोसीजर से जुड़ा रहता है. इनका मेन काम बताया जाता है कि यह लिक्विड्स को नाक-मुंह तक पहुंचने से रोकें. जैसे कि सांस या छींकने के साथ आने वाली छोटी बूंदें. 

अगर ये सही ढंग से पहने जाएं, तो तरल की बूंदों और इनके साथ आने वाले वायरस-बैक्टीरिया को भी रोक सकते हैं.  

अब बात करते हैं कि N95 मास्क की. 

n95 masks pollution
N95 मास्क कुछ ऐसे नजर आते हैं. (विकीमीडिया)

N95 एक तरह का स्टैंडर्ड है. जो कि अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑक्युपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ (NIOSH) से मान्यता प्राप्त और जांचे-परखे गए होते हैं.

दरअसल NIOSH के मानकों के मुताबिक, इनकी फिल्टर करने की क्षमता कम से कम 95% फीसद होती है. यानी ये धूल के कण, धुआं, वैक्टीरिया और वायरस वगैरह को रोकने में ये इतनी मदद कर सकते हैं. 

आम सर्जिकल मास्क के मुकाबले ये डिजाइन किए जाते हैं ताकि चेहरे में सटीक ढ़ंग से फिट हो सकें और बाहर की हवा अगल-बगल से घुसने की बजाय फिल्टर से ही भीतर आ पाए. 

दरअसल ये खास तरीके से बनाए गए पॉलीप्रोपाइलीन फाइबर से बने होते हैं. और ये मास्क बुनाई करके नहीं बनाए जाते हैं. ये खास इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रोसेस वगैरह से बनाए जाते हैं. दरअसल इस प्रोसेस में बुनाई के मुकाबले ज्यादा महीन फाइबर बनाए जा सकते हैं. जो कपड़े वाले मास्क के मुकाबले बेहतर प्रोटेक्शन देते हैं. 

हालांकि बाजार में कई तरह के मास्क या ऐसे रेपिरेटर उपलब्ध हैं. जिनमें स्टैंडर्ड के मुताबिक प्रदूषण से प्रोटेक्शन देने की बात कही जाती है.

ऐसे ही एक N99 स्टैंडर्ड भी है, जिसमें 99 फीसद हवा के गैर ऑयली कणों के अलग किया जा सकता है.

वीडियो: सेहतः ज़हरीली हवा से ज़िंदगी के कितने साल कम हो रहे?

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