कब्र से उठ ना सकें इसलिए छाती पर रख दिए गए थे पत्थर! खुदाई में कंकाल से क्या पता चला?
History and archeology: जर्मनी के क्वेडलिंबर्ग कस्बे में एक गैलोस के पास कुछ 16 कब्रें मौजूद थीं. जहां, 1660 से लेकर 19वीं सदी के बीच - कैदियों को फांसी दी जाती थी.
रेवेनेंट (Revenant), मतलब जो मौत के बाद फिर वापस आ जाए. यानी जिसे लेकर उम्मीद ये हो कि वो मर गया है, लेकिन कुछ वक्त बाद पता चले कि वो वापस आ गया. आज तो हम इस सबमें इतना नहीं मानते, शायद. पर सत्रहवीं सदी में मिला एक कंकाल कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है.
दरअसल, कुछ पुरातत्वविद जर्मनी में सत्रहवीं शताब्दी के आस-पास के गैलोस (Gallows) के पास खुदाई कर रहे थे. बता दें, गैलोस पहले के जमाने में लकड़ी की एक स्टेज सा होता था, जिसमें लोगों को मौत के घाट उतारा जाता था.
जर्मनी के क्वेडलिंबर्ग कस्बे में ऐसे ही एक गैलोस के पास कुछ 16 कब्रें मौजूद थीं. वहां, 1660 से लेकर 19वीं सदी के बीच - कैदियों को फांसी दी जाती थी.
मौत के बाद फिर वापसी का खौफ!लेकिन रेवेनेंट्स का खौफ 16-18वीं सदी के बीच यूरोप में बढ़ने लगा. क्योंकि लोगों को असमय मौत के घाट उतार दिया जाता था.
पुरातत्वविद मारिता गेनेसिस इस खुदाई और पड़ताल की अगुवाई कर रही थीं. वो लाइव साइंस को इस बारे में बताती हैं,
ताकि वापसी ना हो!“ये शायद वे लोग थे जो समय से पहले ही जान से हाथ धो बैठे. या बिना अपनी बात रखे इनकी मौत अचानक हुई. जिसके चलते यह भय रहा होगा कि ये हमारी दुनिया में वापस लौट सकते हैं. इसलिए मुर्दों को रोकने के लिए, कई तरीके अपनाए जाते रहे हैं.”
बकौल गेनेसिस इस सब के लिए कई तरीके अपनाए जाते थे. मसलन ‘पवित्र’ छिड़काव करके, लकड़ी के क्रॉस लगाकर, लाश के हाथ-पैर बांधकर या फिर उन्हें लकड़ी से कवर करके.
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लेकिन जर्मनी में मिले इस कंकाल को पीठ के बल दफनाया गया था. बिना किसी ताबूत के. और इसकी छाती पर बड़े पत्थर भी रखे गए थे. ताकि इन्हें रोका जा सके - जाहिर सी बात है, मौत के बाद वापस आने से रोकने के लिए. जैसा तब लोगों में मान्यता थी.
ये भी बताया जाता है कि दफनाए गए कंकाल में मौत की सजा के कोई सुराग नहीं मिले. लेकिन फांसी या डूबकर मरने के बाद, कंकाल में दिखने वाले कोई निशान नहीं रह जाते. हालांकि गेनेसिस का ये भी कहना है कि आगे की जांच से शायद ठीक-ठीक पता चल सके कि शख्स की मौत कैसे हुई थी.
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