The Lallantop
X
Advertisement

महिलाओं के कम वेतन को लेकर इस देश की प्रधानमंत्री खुद हड़ताल पर चली गईं

वेतन में असमानता और हिंसा के विरोध में महिलाएं 24 अक्टूबर को हड़ताल पर गईं. देश की महिलाओं का साथ देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वो भी काम नहीं करेंगी.

Advertisement
Iceland Prime Minister on strike
48 साल बाद पूरे एक दिन की हड़ताल (फाइल फोटो: AP)
pic
सुरभि गुप्ता
24 अक्तूबर 2023 (Updated: 24 अक्तूबर 2023, 21:34 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

लैंगिक समानता के मामले में दुनिया के सभी देशों को पछाड़ने वाले आइसलैंड की महिलाएं एक दिन की हड़ताल (Iceland women strike) पर चली गईं. एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, धरने पर गईं महिलाओं ने कहा कि वो घर या बाहर का कोई काम नहीं करेंगी. 24 अक्टूबर को इस हड़ताल में हिस्सा लेते हुए आइसलैंड की प्रधानमंत्री कैटरीन जैकब्सडॉटिर (Katrín Jakobsdótti) ने भी कहा है कि वो इस दिन काम नहीं करेंगी. आइसलैंड की महिलाओं की ये हड़ताल पुरुषों के बराबर सैलरी नहीं मिलने यानी वेतन में असमानता और लैंगिक हिंसा के विरोध में है.

ये भी पढ़ें- अर्थशास्त्र की नोबेल विजेता ने जो बताया, वो समझ गए तो अपनी मां की इज़्ज़त करना सीख जाएंगे

हड़ताल पर आइसलैंड की PM क्या बोलीं?

प्रधानमंत्री कैटरीन जैकब्सडॉटिर ने कहा कि वो महिलाओं की हड़ताल में हिस्सा लेते हुए घर पर ही रहेंगी. साथ ही उम्मीद जताई कि उनके मंत्रिमंडल की दूसरी महिलाएं भी ऐसा ही करेंगी. इस हड़ताल को मुख्य तौर पर आइसलैंड की ट्रेड यूनियनों ने शुरू किया है. 

महिलाओं से अपील की गई थी कि वो 24 अक्टूबर को घर के काम सहित पेड और अनपेड किसी भी तरह का काम ना करें. महिलाओं सहित ये अपील नॉन-बाइनरी लोगों से भी की गई थी. नॉन-बाइनरी लोग मतलब जो पुरुष या महिला, इन दो कैटेगरी में से किसी एक में नहीं आते हैं.

इस हड़ताल से आइसलैंड में एक तरह से बंदी के हालात हो गए. स्कूल बंद, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में देरी, अस्पतालों में कर्मचारियों की कमी, होटलों में स्टाफ की कमी. यहां तक कि न्यूज़ चैनलों पर पुरुष न्यूज प्रेजेंटर इसकी घोषणा करते दिखे. जिन क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है, जैसे हेल्थकेयर और शिक्षा, वो क्षेत्र इस हड़ताल से खासकर प्रभावित हुए हैं. 

इससे पहले 1975 में हुई थी ऐसी हड़ताल

बता दें कि आइसलैंड की महिलाओं ने ऐसी ही हड़ताल 48 साल पहले की थी. तारीख थी, 24 अक्टूबर, 1975. हड़ताल की वजह थी, वर्कप्लेस पर महिलाओं के साथ होने वाला भेदभाव. तब आइसलैंड की 90% महिलाओं ने काम करने, साफ-सफाई करने या बच्चों की देखभाल करने से इनकार कर दिया था. इसके अगले साल 1976 में यहां समान अधिकारों की गारंटी देने वाला एक कानून पारित किया गया.

तब से और भी हड़ताल हुए, लेकिन कभी इस तरह महिलाएं पूरे दिन की हड़ताल पर नहीं गई थीं. जैसा कि इस बार 24 अक्टूबर को किया गया है. 2018 में कई हड़तालें हुई, लेकिन वो ऐसी हड़तालें रहीं कि महिलाएं सिर्फ आधे दिन काम करतीं और दोपहर में ही काम से उठ जातीं. एक तरह से इस बात का प्रतीक कि जितनी तनख्वाह, उतना ही काम.

बता दें कि आइसलैंड वो देश है, जिसे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) ने लैंगिक समानता के मामले में लगातार 14 साल दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देश का दर्जा दिया है. हालांकि, लैंगिक समानता के मामले में किसी भी देश ने पूरी समानता हासिल नहीं की है. लैंगिक समानता के मामले में आइसलैंड को WEF ने 91.2% का स्कोर दिया. हालांकि आइसलैंड में भी वेतन में जेंडर गैप बना हुआ है.

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement