पूर्व AAP पार्षद निशा सिंह कौन हैं, जिन्हें हिंसा 'भड़काने' के लिए 7 साल की सजा हुई है?
2015 के केस में अदालत ने निशा सिंह को सात साल की सजा सुनाई है. निशा पर भीड़ को भड़काने आरोप है. जिसकी वजह से पेट्रोल पंप पर ब्लास्ट हुए थे
निशा सिंह. आम आदमी पार्टी की पूर्व पार्षद. गुरुग्राम की एक अदालत ने निशा को सात साल जेल की सज़ा सुनाई है. 2015 के एक केस में. निशा पर भीड़ को उकसाने का आरोप है. उस भीड़ को, जिसने सरकारी अधिकारियों पर पेट्रोल बम फेंके. पुलिस पर पथराव किया. इस हिंसा में कम से कम 15 पुलिसकर्मी घायल हुए थे.
पूर्व पार्षद को 16 और लोगों के साथ दोषी ठहराया गया है. इनमें 10 महिलाएं हैं. सभी को सात साल जेल की सज़ा सुनाई गई है. वहीं सात अन्य दोषियों को 10 साल कैद की सजा सुनाई गई है.
आरोपियों को IPC की अलग-अलग धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया है. धारा 148 (दंगा करना, घातक हथियारों के साथ), 186 (पब्लिक सर्वेंट के सार्वजनिक कामों में बाधा डालना), 325 (गंभीर चोट पहुंचाना), 332 (पब्लिक सर्वेंट को उसके काम से रोकने के लिए चोट पहुंचाना), 353 (पब्लिक सर्वेंट को उसके कर्तव्य से रोकने के लिए हमला करना) और 436 (ब्लास्ट करने के इरादे से एक्सप्लोज़िव्स का इस्तेमाल करना) शामिल है.
इसके अलावा निशा को धारा 114 (अपराध होने पर दुष्प्रेरक उपस्थित) के तहत भी दोषी ठहराया गया है. हालांकि, उन्हें धारा 307 (हत्या का प्रयास) के तहत दोषी नहीं पाया गया है.
क्या हुआ था?
हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (HUDA) (जिसे अब ‘हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण या HSVP कहते हैं). HUDA की एक टीम 15 मई, 2015 को पुलिसकर्मियों के साथ झारसा पहुंची. इससे पहले बस्ती के करीब 350 घरों को वहां से हटाया गया था. कारण बताया गया था अनरजिस्टर्ड घरों का अतिक्रमणक. अतिक्रमणक हटाने के बाद मलबा हटाया जाना था.
केस डायरी के मुताबिक़, जब अथॉरिटी के अधिकारी मौक़े पर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि निशा सिंह कथित अतिक्रमणकारियों की भीड़ को उकसा रही थीं. अधिकारियों ने बयान दिया है कि भीड़ ने उनपर और पुलिस अधिकारियों पर हमला करने की धमकी दी. फिर पथराव शुरू कर दिया.
पब्लिक प्रॉज़्यूक्यूटर ने कोर्ट में दावा किया है कि भीड़ ने पुलिस और HUDA के अधिकारियों पर पेट्रोल बम और सिलेंडर भी फेंके, जिससे आग लग गई. इस दौरान ड्यूटी मजिस्ट्रेट और 15 पुलिस अधिकारी घायल हो गए.
अभियोग पक्ष ने 33 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से छह मुक़दमे के दौरान मुकर गए. एक पुलिस अधिकारी ने दावा किया कि निशा लगातार भीड़ को प्रशासन पर हमला करने के लिए उकसा कर रही थीं. एक दूसरे गवाह ने दावा किया कि निशा की सब-इंस्पेक्टर रानी देवी के साथ हाथापाई हो गई थी, जिससे रानी देवी की उंगली तक टूट गई.
निशा के वकीलों ने दलील दी कि जब भीड़ ने कथित तौर पर अधिकारियों पर पत्थर फेंकना शुरू किया, तब निशा वहां थीं ही नहीं. वो तो आधे घंटे बाद ही मौके़ पर पहुंची थीं. वकीलों की तरफ़ से ये भी दावा किया गया कि उनका मोबाइल फोन छीन लिया गया था और पुलिस से मेडिकल जांच की मांग करने पर निशा को नज़रअंदाज़ किया गया था.
हालांकि, अदालत ने इस तर्क को ख़ारिज कर दिया और कहा,
“इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि नगर पार्षद होने के नाते उस क्षेत्र के अपने मतदाताओं की मदद करने का उनका उत्साह साबित करता है कि निशा वहां थीं. जहां सरकारी कर्मचारी सरकारी ज़मीन से अनधिकृत अतिक्रमण हटाने के लिए गए थे. अपने क्षेत्र के लोगों की मदद करने के लिए उन्होंने कानूनी/ग़ैरक़ानूनी तरीक़े अपनाए.”
कौन हैं निशा सिंह?
निशा का CV कमाल का है. मुंबई यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग के बाद, निशा ने 2005 में लंदन बिज़नेस स्कूल से MBA किया. फिर भारत लौट आईं और Google के साथ काम करने लगीं. उन्होंने कुछ समय के लिए जर्मन कॉरपोरेट कंपनी सीमेंस के साथ भी काम किया. फिर अंततः राजनीति में आने का फैसला किया.
2011 में उन्होंने गुरुग्राम नगर निगम (MCG) का चुनाव लड़ा. निर्दलीय. जीत भी गईं. गुरुग्राम के वार्ड नंबर-1 से पार्षद चुनी गईं. फिर 2014 में AAP में शामिल हो गईं. 2015 की हिंसा के लगभग एक साल बाद तक निशा ने बतौर पार्षद काम किया.
सुनवाई के दौरान निशा ने कोर्ट को बताया कि उनके पति विदेश में रहते हैं और उनके पिता का देहांत हो गया है, जिसकी वजह से वो अपनी मां, ससुराल वालों और स्कूल जाने वाले दो बच्चों के रख-रखाव की ज़िम्मेदार हैं.
2017 में AAP नेता आतिशी ने निशा को ‘दिल्ली में आंगनवाड़ी सुधारों के पीछे की डायनमो’ तक कह डाला था. हालांकि, क्या वो अब तक आम आदमी पार्टी से जुड़ी हुई हैं, ये बात साफ़ नहीं है. आतिशी समेत सभी नेताओं ने इस मामले में चुप्पी साध रखी है. कोई पब्लिक स्टेटमेंट नहीं. कोई सफ़ाई नहीं.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, उनके वकील, अशोक वर्मा, ने कहा है कि वे हाई कोर्ट को अप्रोच करेंगे. वकील ने कहा कि कुछ चीजें जो अदालत के सामने रखी गई थीं, उनके ऊपर समय पर विचार नहीं किया गया.
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