TB से हर साल पांच लाख लोग मरते हैं, ये मामूली काम आपको बचा सकता है
पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा टीबी के केस भारत में रिपोर्ट होते हैं.
(यहां बताई गईं बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
कई साल पहले, अमिताभ बच्चन का टीवी पर एक एड आता था. 'टीबी हारेगा, देश जीतेगा.' जिसमें वो लोगों को बताते थे कि अगर 2 हफ़्ते से ज़्यादा खांसी बनी हुई है, तो टीबी की जांच ज़रूर करवाएं. दुःख की बात ये है कि इतने साल बाद भी वो हो नहीं पाया. यानी आज की डेट में भी हम टीबी को नहीं हरा पाए. साल 2019 में टीबी से हमारे देश में चार लाख 45 हज़ार मौतें हुईं. वहीं साल 2020 में ये बढ़कर पांच लाख हो गईं. यानी कम होने के बजाय टीबी के केसेस हमारे देश में बढ़ते जा रहे हैं. डराने वाली बात ये है कि सरकार की सारी कोशिशों के बाद भी ये आंकड़े कम नहीं हो रहे.
सरकार का लक्ष्य साल 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने का है. इसके लिए सरकार नेशनल टीबी एलिमिनेशन हेल्थ प्रोग्राम भी चला रही है. इसके तहत इस बीमारी की जांच और दवाइयां सारे सरकारी अस्पतालों में मुफ़्त उपलब्ध कराई जाती हैं. पर अब सरकार को मदद चाहिए लोगों से. इसके लिए ज़रूरी है कि लोगों के बीच टीबी को लेकर सही जानकारी पहुंचे. उन्हें इसके लक्षणों, टेस्टिंग और इलाज के बारे में जानकारी हो ताकि हम टीबी नाम की इस बला से निपट सकें. तो सबसे पहले ये जान लेते हैं टीबी आख़िर है क्या?
टीबी बीमारी क्या होती है?ये हमें बताया डॉक्टर सूर्या कांत ने.
टीबी एक संक्रामक रोग है, जो एक बैक्टीरिया माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्यूलोसिस से फैलता है. जब टीबी से ग्रसित रोगी खांसता है, छींकता है या बिलकुल पास आकर बात करता तो ये बैक्टीरिया आसपास खड़े लोगों के सांस के मार्ग से फेफड़ों में चला जाता है. उनको भी बीमार कर सकता है. ये पूरी तरह से एक संक्रामक बीमारी है यानी एक व्यक्ति से दूसरे में फैल सकती है. ये शरीर के मुख्य तौर पर फेफड़ों में होती है, लेकिन ये शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकती है, बाल और नाख़ून को छोड़कर शरीर का कोई ऐसा हिस्सा नहीं है जिसको टीबी प्रभावित न करता हो.
टीबी से कितना बेहाल है देश?दुनिया में हर साल एक करोड़ टीबी के नए केसेस सामने आते हैं. हमारे देश में पूरी दुनिया के 26 प्रतिशत केसेस पाए जाते हैं यानी भारत में हर साल टीबी के 26 लाख मामले सामने आते हैं. पूरी दुनिया में लगभग 13 लाख लोगों की मौत हर साल टीबी से होती है. हमारे देश में लगभग पांच लाख लोगों की मौत हर साल टीबी से होती है. इंडिया टीबी ग्रसित देशों की लिस्ट में सबसे ऊपर है.
कितने तरह के टीबी होते हैं?टीबी को दो भागों में बांट सकते हैं. एक फेफड़े का टीबी, जिसको पल्मोनरी ट्यूबरक्यूलोसिस कहते हैं. दूसरा होता है अन्य अंगों का टीबी, जिसको एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्यूलोसिस कहते हैं.
हमारे देश में 80 प्रतिशत फेफड़े के टीबी के मरीज़ होते हैं. एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्यूलोसिस ब्रेन का टीबी हो सकता है, हड्डी का टीबी को सकता है, लिम्फ़नोड का टीबी हो सकता है, किडनी का टीबी हो सकता है, पेट का टीबी हो सकता है, महिलाओं में प्राइवेट पार्ट्स का टीबी हो सकता है, बच्चों में फेफड़ों की झिल्ली का टीबी हो सकता है या ब्रेन का भी टीबी हो सकता है.
लक्षणफेफड़ों का टीबी सबसे प्रमुख है, अगर दो हफ़्ते से ज़्यादा खांसी होती है तो टीबी हो सकता है. इस खांसी के साथ-साथ बलगम भी आ सकता है. खांसी में कभी-कभी खून भी आ सकता है. भूख कम लगती है. वज़न कम हो जाता है. बुखार रहता है जो शाम को बढ़ जाता है, रात को साथ में पसीना भी आ जाता है. बच्चों में ग्रोथ का रेट रुक जाता है. महिलाओं में अगर प्राइवेट पार्ट्स की टीबी हो जाए तो बच्चे नहीं पैदा होते हैं, कई बार कोई लक्षण नहीं होता है. कई बार साधारण चेकअप में भी टीबी पकड़ में आ जाता है.
डायग्नोसिसट्रेडिशनल जांच बलगम की होती है, बलगम की जांच 3 तरह से होती है. कई सरकारी अस्पताल हैं जो ये जांच और इलाज फ्री में करते हैं. एक साधारण स्मीयर की जांच होती है.
जिसको AFB स्मीयर टेस्ट कहते हैं. इसमें बलगम की 2 जांच की जाती है, दूसरा है सीबी नैट टेस्ट. ये अमेरिकी मशीन के द्वारा जांच होती है. भारत में ट्रू नैट टेक्नोलॉजी से जांच होती है. इसके अलावा टीबी के बैक्टीरिया का कल्चर भी होता है. साधारण जांच हर अस्पताल में मौजूद है. सीबी नैट टेस्ट और ट्रू नैट टेस्ट भी एक हज़ार से ज़्यादा केंद्रों में होते हैं. इसके अलावा हमारे देश में 3 बड़ी लैब्स भी हैं, जिनमें ड्रग सेंस्टिविटी टेस्टिंग भी होती है. यानी कौन सा टीबी है, कौन सी दवा काम करेगी या नहीं करेगी ये भी पता चल जाता है.
टीबी के इलाज में पेशेंट क्या गलती करते हैं?-इलाज बीच में छोड़ देते हैं
-डॉक्टर की सलाह नहीं मानते हैं
-दवा नहीं खाते हैं
ऐसा नहीं करना चाहिए, टीबी की दवाइयों से पेट में जलन और कुछ साइड इफ़ेक्ट हो सकते हैं. लेकिन अगर कोई दिक्कत होती है तो डॉक्टर से सलाह लें. लेकिन इलाज को बीच में न छोड़ें, क्योंकि इससे बड़ा नुकसान होता है. अगर आप इलाज छोड़-छोड़कर करेंगे या बीच में बंद कर देंगे तो साधारण टीबी, ड्रग रेसिस्टेंस टीबी में बदल जाती है. साधारण टीबी का इलाज 6 महीने में हो जाता है, ड्रग रेसिस्टेंस टीबी का इलाज 1-2 साल तक चलता है. उसकी दवाइयां और भी ज़्यादा साइड इफ़ेक्ट वाली होती हैं. अब नेशनल टीबी एलिमिनेशन हेल्थ प्रोग्राम के तहत टीबी की दवाइयां मुफ़्त हैं.
बचाव-मास्क लगाने से और शारीरिक दूरी से बचाव हो सकता है
-हाथ धोते रहें
-जो टीबी के रोगी हैं उनका पूरा इलाज हो ताकि वो दूसरे को फैला न पाएं
-टीबी के इलाज का पहला महीना पूरा होने पर ही आप काफी हद तक ठीक हो जाते हैं, आपसे दूसरों को टीबी नहीं फैलता.
-पोषण का ध्यान रखें
-कुपोषण के शिकार लोगों में, जिन लोगों की इम्युनिटी कमज़ोर है, उनमें टीबी का रिस्क ज़्यादा होता है
टीबी का इलाज उपलब्ध है. आसानी से हो सकता है. मुफ्त भी होता है. बस ज़रूरी है कि लक्षणों को देखकर आप डॉक्टर के पास जांच के लिए ज़रूर जाएं. तब भी हम टीबी को हरा पाएंगे.
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