फेफड़ों में हवा क्यों भर जाती है?
फेफड़े में कोई छोटा सा छेद हो जाता है जिसके कारण झिल्ली में हवा भर जाती है.
(यहां बताई गईं बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
वैभव 32 साल के हैं. कन्नौज के रहने वाले हैं. लगभग 2 महीने पहले उनका बाइक एक्सीडेंट हुआ था. तब उनकी छाती में चोट आई थी. हालांकि उस समय छाती में ज़्यादा तकलीफ़ नहीं हुई थी. उनका सारा ध्यान उनकी टूटी हुई हड्डियों पर था. पर कुछ ही दिन के अंदर उनको छाती में दर्द शुरू हो गया. सांस फूलने लगी. इतनी कि वो दो-चार कदम स्टिक की मदद से भी नहीं चल पा रहे थे. जब अस्पताल में दिखाया गया तो पता चला चोट के कारण उनके फेफड़ों में हवा भर गई है. ये जानलेवा हो सकती है. तुरंत इलाज किया गया. अच्छी बात ये है कि उनको सर्जरी की ज़रुरत नहीं पड़ी. 6-7 दिन में वो डिस्चार्ज होकर घर आ गए. दरअसल वैभव को जो हुआ उसको न्यूमोथोरैक्स कहते हैं. आसान भाषा में समझें तो इसमें लंग्स के अंदर हवा भरने लगती है और लंग्स ठीक तरह से काम करना बंद कर देते हैं. इससे जान भी जा सकती है.
हालांकि वैभव को ऐसा छाती में चोट लगने के कारण हुआ, पर न्यूमोथोरैक्स हमेशा एक्सीडेंट के कारण नहीं होता. ऐसा होने के बहुत सारे कारण हैं और ये किसी को भी हो सकता है.
न्यूमोथोरैक्स क्या होता है?ये हमें बताया डॉक्टर नीतू जैन ने.
न्यूमोथोरैक्स यानी फेफड़े में हवा भरना, ये फेफड़े की बहुत ही सीरियस बीमारी है. इसको काफ़ी ज़्यादा मेडिकल अटेंशन की ज़रूरत होती है. बहुत सारे पेशेंट्स को ICU की ज़रूरत पड़ती है. फेफड़े के आसपास एक झिल्ली होती है. फेफड़े में कोई छोटा सा छेद हो जाता है जिसके कारण झिल्ली में हवा भर जाती है, जब झिल्ली में हवा भर जाती है तो वो फेफड़े को प्रेस करने लगती है, फेफड़े को जितना सांस के साथ फैलना चाहिए उतना वो फैल नहीं पाता, इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है.
लक्षण-किसी-किसी को हल्का सा छाती में दर्द होता है
-किसी-किसी की इतनी सांस फूल जाती है कि वो जानलेवा हो जाता है
-ब्लड प्रेशर भी कम हो जाता है
-कभी भी अगर न्यूमोथोरैक्स हो तो पेशेंट को एकदम से अस्पताल लेकर जाने की ज़रूरत पड़ती है
कारणये बीमारी दो तरह की होती है, एक है प्राइमरी स्पॉन्टेनियस न्यूमोथोरैक्स. दूसरा है सेकेंडरी स्पॉन्टेनियस न्यूमोथोरैक्स. प्राइमरी का मतलब है जिसके अंदर कोई भी पहले से छाती का रोग न हो, अचानक से पेशेंट की छाती में हवा भर जाए और सांस फूलने लग जाए, ये उन लोगों में होता है जो कम उम्र के होते हैं, लंबे और पतले होते हैं. इसका कारण ये है कि फेफड़े में हवा के छोटे-छोटे गुब्बारे होते हैं, जो फट जाते हैं. ये किसी जांच में दिखाई नहीं देते, जैसे सी-टी स्कैन या एक्सरे.
सेकेंडरी स्पॉन्टेनियस न्यूमोथोरैक्स उन लोगों को होता है जिनको पहले से कोई फेफड़े की बीमारी होती है, जैसे COPD. या उन लोगों में जिनके फेफड़ों में हवा के बड़े गुब्बारे बने होते हैं, न्यूमोथोरैक्स का शक हो तो तुरंत अस्पताल लेकर जाने की ज़रूरत है.
डायग्नोसिसन्यूमोथोरैक्स का पता लगाना बहुत आसान होता है, आमतौर पर डॉक्टर जांच कर के ही बता सकते हैं कि न्यूमोथोरैक्स है. जिस साइड फेफड़े में हवा भर्ती है उस तरफ़ अगर स्टेथोस्कोप से देखा जाए, तो हवा आने-जाने की आवाज़ सुनाई नहीं देती है. डायग्नोसिस के लिए केवल छाती का एक्सरे करवाना होता है, एक्सरे में जो नॉर्मल लंग दिखना चाहिए वो नहीं दिखता है. सिर्फ़ हवा ही हवा दिखती है. कुछ पेशेंट्स में बड़े गुब्बारे नेचुरली होते हैं, उनमें न्यूमोथोरैक्स का पक्का पता लगाने के लिए सी-टी स्कैन की ज़रुरत पड़ती है.
इलाज
इसके कई इलाज उपलब्ध हैं. इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि कितनी हवा भरी है. उसके हिसाब से इलाज किया जाता है. इन पेशेंट को हाई फ्लो ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ती है. यानी ज़्यादा मात्रा में ऑक्सीजन देने की ज़रुरत पड़ती है. इलाज में एक सूई डालकर हवा को निकाला जा सकता है, नहीं तो ऑपरेशन की भी ज़रुरत पड़ सकती है.
ज़्यादातर लोगों की छाती में नली डालनी पड़ती है, छाती में एक छोटा सा छेद करते हैं फिर एक नली जिसे ICD कहते हैं, उससे हवा तुरंत निकल जाती है. इसको एक बोतल के साथ लिया जाता है जिसमें पानी होता है. पानी की सील के नीचे पूरी हवा निकल जाती है. पेशेंट को 5-7 दिन अस्पताल में रहने की ज़रूरत पड़ती है. कुछ-कुछ पेशेंट ऐसे होते हैं जिनकी पूरी हवा नहीं निकल पाती या हवा का रिसाव होता रहता है.
या थोड़ी-थोड़ी हवा लीक होती रहती है, इसका मतलब है कि जो फेफड़े में छेद हुआ है. उसके कारण हवा झिल्ली में भरी है. वो पूरी तरह से ठीक नहीं हो पा रहा है. ऐसा केवल 50 प्रतिशत पेशेंट्स के साथ होता है, ऐसे कुछ पेशेंट्स को ऑपरेशन की ज़रुरत पड़ सकती है. जब फेफड़े से हवा निकलनी बंद हो जाती है, जब दिखता है कि ट्यूब में भरे पानी में कोई गुब्बारे नहीं बन रहे, तब ट्यूब को ब्लॉक कर के दोबारा एक्सरे किया जाता है. अगर दिखता है कि लंग्स पूरे फैल गए हैं, लंग्स दोबारा से सिकुड़ नहीं रहे हैं, तब ट्यूब को निकाल दिया जाता है.
जो प्राइमरी स्पॉन्टेनियस न्यूमोथोरैक्स के पेशेंट्स हैं, उनमें पहली बार सिर्फ़ ट्यूब डालकर हवा निकाली जाती है. जब हवा निकालनी बंद हो जाती है तो ट्यूब निकालकर उस एरिया को सील कर दिया जाता है. लेकिन सेकेंडरी स्पॉन्टेनियस न्यूमोथोरैक्स के पेशेंट्स में एक दवाई डालनी पड़ती है. जिससे फेफड़े की झिल्ली की दो परतें आपस में चिपक जाती हैं. ताकि बार-बार न्यूमोथोरैक्स न हो.
जैसा डॉक्टर नीतू ने बताया न्यूमोथोरैक्स बहुत ही सीरियस कंडीशन है. कई बार इसके लक्षण केवल छाती में दर्द और सांस फूलना होते हैं. तो उसे महज़ एसिडिटी, गैस समझकर इग्नोर न करें. तुरंत जांच करवाएं.
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