कल शाम काम ख़त्म करके घर जा रही थी. कैब में बैठते ही दफ्तर के एक साथी का मैसेज आगया. छोटा सा काम था, इसलिए मैंने सोचा रास्ते में ही कर लेती हूं. मैंने कैब मेंही लैपटॉप खोल लिया और मेल खोलकर देखने लगी. इत्ते में खाना बनाने वाली दीदी का फ़ोनआ गया. सब्ज़ी क्या बनाऊं दीदी? उनका सवाल सुनते ही दिमाग आर्टिकल से निकलकर सीधेफ्रिज टटोलने लगा. क्या सब्ज़ी रखी होगी, पालक पहले ख़राब होगी या मेथी, क्या पहलेबनवाया जाए ये कैलकुलेट करने लगी. जैसे ये सब प्रोसेस हुआ, रूममेट का कॉल आ गया.कहने लगी रास्ते में ही हो तो मुझे भी पिक कर लो. एक साथ काम के बाद काम और दिमागमें ऑफिस के टास्क की अलग टेंशन. इन सब के कारण अजीब सी घबराहट होने लगी. वो होताहै न अजीब सी बेचैनी. जैसे ट्रैन छूटने के डर से होती है. और हम भाग भाग कर सब कामकरते हैं उस वक़्त. अंग्रेजी में जिसे एंक्शियस होना कहते हैं और ये फीलिंग हर किसीको होती है. कभी ना कभी. किसी ना किसी पॉइंट पर.क्या है ये घबराहट?जिस घबराहट, बेचैनी या एंक्शियस फीलिंग के बारे में हम बात कर रहे थे, वो हर किसीको होती है. आसान भाषा में कहूं तो लगातार चल रही चिंताओं के कारण हम ऐसा महसूसकरते हैं. स्ट्रेस्ड फील करते हैं. और यही छोटी छोटी बातों के कारण होनी वालीचिंताएं पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज़्यादा है. और केवल नौकरी करने वालीमहिलाओं में नहीं बल्कि घर संभालने वाली महिलाएं भी इससे बहुत परेशान रहती हैं.अकेले समय बिताना, आत्म संवाद करना जीवन के हर आयाम के लिए ज़रूरी है (सांकेतिकतस्वीर)मैं ये बिलकुल नहीं कह रही कि पुरुषों को ये दिक्कत नहीं होती. उन्हें भी होती ही.पर उनके मुकाबले ये फीलिंग महिलाओं में ज़्यादा होती है. लगातार उनके दिमाग में कुछन कुछ चलता ही रहता है. मसलन आप अपने आस पास देखिए. आपके आस पास की लड़कियों केदिमाग में यही चलता रहेगा दूध से मलाई निकालनी है, ये वाला सामान खत्म हो गया है,धुले हुए बर्तन जमाने हैं, सूखे हुए कपड़े उठाने है और न जाने क्या क्या. एक कामकरते हुए वो 4 और कामों के बारे में सोचते रहती हैं.मेरी मम्मी स्कूल में पढ़ाती हैं. रोज़ 4 बजे फ़ोन कर के पापा को याद दिलाती हैं किबचा हुआ खाना फ्रिज में रख देना. बरतन खाली कर के धोने रख देना. शाम को दीदी आएंगी.ये रूटीन है. पापा मम्मी के बिना कहे भी ये काम कर देते हैं. कभी कभार भूल जाएं तोबात अलग है. लेकिन मम्मी उन्हें याद दिलाना कभी नहीं भूलतीं.हमारी साथी हैं कुसुम. उनसे मैं एक बार इस बारे में बात कर रही थी. उन्होंने मुझेबताया कि उनके साथ भी एकदम ऐसा ही होता है. उन्हें घर पर और भी लोग साथ रहते हैं औरवो भी बराबर समझदार है. लेकिन मौसम ख़राब दिखते ही या बारिश होते ही वो एक बार येपूछने कॉल कर ही लेती हैं कि कपड़े उठा लिए या नहीं. और हर बार सूखे हुए कपड़े पहलेही उठ चुके होते हैं, पर मन कभी नहीं मानता. कॉल कर के पूछ लेने के बाद ही सुकूनमिलता है.एंग्ज़ाइटी जेंडर न्यूट्रल मामला है. ये एक्सट्रा बोझ के कारण हो सकता है.(सांकेतिक तस्वीर)आपलोग अपने आस पास देखिए. अपने घर की लड़कियों और महिलाओं को देखिये. आपको सभी मेंसेंस ऑफ़ रिस्पांसिबिलिटी बहुत ज़्यादा दिखेगी. सभी में ओन करने की टेंडेंसी ज़्यादाहोती है. मतलब दूसरों पर वो पूरी तरह भरोसा नहीं कर पातीं कि उन्होंने उस काम कोउतनी ही ज़िम्मेदारी से निभाया होगा. और इस कारण वो लगातार व्यस्त रहती हैं. कई बारचिड़चिड़ा जाती हैं. दुःखी या उदास भी हो जाती हैं. और अगले दिन से फिर उसी रूटीन मेंलग जाती हैं. मेरे आस पास की ज़्यादातर महिलाओं को मैंने कभी अपने लिए वक़्त निकालतेनहीं देखा. 'Me Time' लेते नहीं देखा. कुछ को तो पता भी नहीं दे बला क्या है. मी टाइम क्या बला है?'Me Time' आपका वो टाइम होता है जिसमें आप खुद के लिए वक़्त निकालती है. वो वक़्तआपका होता है. जिसमें आप जो जी चाहे वो करती हैं. उसमें आप आराम कर सकती हैं, सोसकती हैं, कुछ पढ़ सकती हैं या वो कर सकती हैं जिससे आपको ख़ुशी मिलती है. बेसिकली आपखुद के लिए, खुद के आराम के लिए वो वक़्त निकालती हैं.ज़रा याद करिये, आपने या आपकी आस पास की महिला ने कब खुद के लिए वक़्त निकाला. जिसमेंआपने अपना ख्याल रखा हो, सिर्फ अपनी ख़ुशी या आराम के लिए कुछ किया हो. हम जानते हैंमाओं को बच्चों के लिए, परिवार के लिए काम कर के ख़ुशी और सुकून भी मिलता है. Butladies, you deserve break for yourself.और ये सभी के लिए ज़रूरी है. काम वाली दीदी से लेकर ऑफिस में काम करने वाली कलीग औरहमारी घर की मां, दादी, मासी, बुआ, हर महिला. सभी को अपने लिए वक़्त निकालना चाहिए.ये सिर्फ मैं नहीं डॉक्टर भी कहती हैं. क्यों कहती हैं ऐसा आप खुद ही सुनिए -"मर्दों के मुक़ाबले औरतों में डिप्रेशन रेट दोगुना पाया जाता है. हमारे समाज मेंऔरत को एक जननी माना गया है, जिसका फ़र्ज़ है दूसरों के बारे में सोचना, दूसरों काखयाल रखना. और अगर कहीं वो अपने बारे में सोचने लगे, तो दूसरे ही नहीं, वो ख़ुद कोभी सेलफिश मानने लगती हैं. एक औरत मल्टीपल रोल प्ले करती है, चाहे वो गृहणी हो यावर्किंग वुमन. उसे अपने सारे रोल्स को बखूबी निभाना पड़ता है. औरों की अपेक्षा केलिए भी और अपनी भी. ज़िंदगी की इस जद्दोजहद में उसे पता भी नहीं चलता कि वो कबस्ट्रेस्ड हो गई है, जब तक ब्रेकिंग पॉइंट्स नहीं आ जाते. जब तक वो डिप्रेशन याएंग्ज़ाइटी का शिकार नहीं हो जाती.इसके लिए ज़रूरी है कि वो मी टाइम निकालें. मी टाइम एक तरह की मेडिसिन की जैसी है.मी टाइम एक तरह की एनर्जी है जो आपको दोबारा लड़ने की ताक़त देती है. आपकोप्रोत्साहित करती है कि आप जीवन की परेशानियों के साथ फिर लड़ सकें. मी टाइम, एक वोसमय है जो आप सिर्फ़ अपने लिए निकालते हैं. अपनी सोच और वैल्यू सिस्टम के साथकनेक्ट करने के किए. अपनी ज़िंदगी, रिश्तों, सेहत के बारे में सोचने के लिए." कामवाली दीदी छुट्टी तब लेती हैं जब उनके बच्चे बीमार हों या परिवार के साथ गांव जानाहो या कोई त्योहार हो. कभी भी अपने लिए, अपने आराम के लिए मैंने उन्हें छुट्टी लेतेनहीं देखा. घर का कोई सदस्य बीमार को जाये तो हम उसका ख्याल रखने तुरंत छुट्टी लेलेते हैं. पर अपने मी टाइम के लिए छुट्टी लेने के बारे में सोचना भी गुनाह लगता है.ऐसा लगता है कि आप काम के साथ बेमानी कर रहे हैं.जितना आपको ऑफ़-डे प्रिय है, उतना ही आपकी हाउस हेल्प को होगाहमारे घर की महिलायें परिवार की शादी में जाने के लिए छुट्टी ले लेती हैं या समयनिकाल लेती हैं पर कभी अपनी बचपन की दोस्त जो उसी शहर में रहती है उससे मिलने केलिए वक़्त नहीं निकाल पातीं. ये तो सिर्फ कुछ उदाहरण थे जो मैंने अपने आस पास देखे.आप भी ज़रा ठहर कर अपने आस पास की महिलाओं को देखिये. पूछिए उनसे कि कब उन्होंने खुदके लिए वक़्त निकाला था. मा टाइम की वैल्यू या उसका एफेक्ट उनसे पूछिए जो खुद के लिएवक़्त निकालते है. वो बतायेंगे आपको छोटा सा वो समय कितना सुकून देता है.रोज़ भले 10 मिनट दें खुद को या महीने में एक दिन खुद के लिए निकालें. खुद भीनिकालिए और अपने आस पास वालों को भी इसके लिए प्रोत्साहित करिये. वैसे ही उन्हेंबच्चों को भी थोड़ी देर अकेला छोड़ना चाहिए, उन्हें भी उनका मी टाइम देना चाहिए.जिससे वो अच्छे से दूसरों से कनेक्ट हो पाएंगे. ये आप सभी के लिए ज़रूरी है. अगरबच्चा पूरा समय सिर्फ आपके साथ ही बिताएगा तो वो इमोश्नली आप पर निर्भर हो जाएगा,जो कि सही नहीं है.आप खुद खुश रहेंगे तभी अपने आस पास वालों को रख सकेंगेआपकी क्या राय है इसपर मुझे कमेंट सेक्शन में बताइये.