हर बीमारी का सुनकर लगता है वो आपको भी है, तो इसकी वजह ये बीमारी है
कई लोगों को एक ऐसी बीमारी हो जाती है, जिसमें वो बीमारियों के बारे में लगातार सोचते रहते हैं. जानिए ऐसा क्यों?
क्या आपके साथ भी ऐसा होता है. आपको पेट में दर्द हुआ, मरोड़ उठी, कब्ज़ हो गया या कुछ और लक्षण महसूस हुए. आपने तुरंत गूगल किया. उसने लक्षणों के आधार पर एक बड़ी बीमारी का नाम फेंक दिया. अब आप परेशान कि आपको वो बीमारी हो गई है. या अगर आप किसी से सुने कि उसे कुछ हेल्थ प्रॉब्लम हो रही है, उसकी बातें सुनते-सुनते आपको भी लगने लगे कि यही बीमारी तो आपको भी है. और सब छोड़िए. क्या आपको सेहत का हर एपिसोड ऐसा लगता है जैसे आपकी ही बात हो रही है. लक्षण सुनकर आप मान लेते हैं कि ये बीमारी आपको भी है.
अगर हां, तो आप अकेले नहीं हैं. ये आदत बहुत आम है. रोज़ सेहत की बात करते-करते, बीमारियों के बारे में पढ़ते-पढ़ते मुझे भी ऐसा ही लगने लगा है. पर अगर ये समस्या ज़्यादा बढ़ गई है, आप अपनी सेहत को लेकर हद से ज़्यादा परेशान रहते हैं या आपको ऐसा लगता है कि हर दूसरी बीमारी आपको है, तो हो सकता है आपको हाइपोकॉन्ड्रिया हो. अब आप बोलेंगे ये लो, एक और नई बीमारी बता दी. दरअसल हाइपोकॉन्ड्रिया एक कंडीशन है, चलिए इसके बारे में और जानते हैं.
हाइपोकॉन्ड्रिया क्या होता है?ये हमें बताया क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट कामना छिब्बर ने.
- कई लोगों को एक ऐसी बीमारी हो जाती है, जिसमें वो बीमारियों के बारे में लगातार सोचते रहते हैं.
- शरीर में कुछ भी बदलाव होने पर या जरा भी दिक्कत होने पर उन्हें किसी बड़ी बीमारी का खतरा लगने लगता है.
- इस वजह से इन लोगों के मन में डर रहता है और ये बार-बार टेस्ट करवाते हैं.
- या फिर अलग-अलग डॉक्टर से मिलते हैं.
- जब डॉक्टर उन्हें ये बताते हैं कि उनके सभी टेस्ट नॉर्मल हैं, उन्हें फिर भी विश्वास नहीं होता.
- और वो लगातार बीमारियों के बारे में सोचते रहते हैं.
कारण- दिमाग में कुछ केमिकल होते हैं जिन्हें न्यूरोट्रांसमीटर्स कहते हैं, उनके कम-ज्यादा होने से ये समस्या हो सकती है.
- 6 महीने से ज्यादा समय तक बीमारियों के बारे में लगातार सोचना हाइपोकॉन्ड्रिया या इलनेस एंजाइटी डिसॉर्डर की ओर इशारा करता है.
- लंबे समय तक तनाव में रहने से या बीमार लोगों के पास रहने से ऐसा हो सकता है.
- मरीज बीमारी से होने वाले नुकसान को करीब से देखता है.
- इस वजह से भी वो बीमारियों के बारे में ज्यादा सोचने लगता है.
- वो बहुत ज्यादा सचेत रहता है, डरा रहता है और जरा भी दिक्कत होने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाता है.
- लेकिन इससे उसके व्यवहार पर नेगेटिव असर पड़ता है.
लक्षण- लगातार बीमारियों के बारे में सोचने से दिमाग पर बुरा असर पड़ता है.
- इस वजह से गुस्सा आना, मन उदास होना, घबराहट, बेचैनी और चिड़चिड़ेपन की समस्या होती है.
- बार-बार बीमारियों के बारे में सोचने से काम करने की क्षमता भी घटती है.
- रिश्तों पर भी बुरा असर पड़ता है, क्योंकि आसपास के लोग ये नहीं समझ पाते कि लगातार समझाने के बाद भी पीड़ित जिंदगी में आगे क्यों नहीं बढ़ पर रहा है.
- इससे लोगों को काफी तकलीफ होती है और वो ये नहीं समझ पाते कि ऐसा क्यों हो रहा है.
इलाज- ऐसा होने पर इंटर्नल मेडिसिन के डॉक्टर से संपर्क करें.
- वो समस्या के आधार पर ये बताएंगे कि मरीज को किस विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए.
- इस समस्या के इलाज में साइकेट्रिस्ट और साइकोलॉजिस्ट दोनों का रोल रहता है.
- साइकेट्रिस्ट ये पता लगाते हैं कि मरीज किस वजह से बीमारियों के बारे में सोच रहा है.
- और मरीज को दवाई की जरूरत है या नहीं और कितनी दवाई दी जानी चाहिए.
- वहीं मरीज कैसे सोच रहा है और चीजों को कैसे समझ रहा है, ये पता करना साइकोलॉजिस्ट का काम है.
- किसी पुरानी घटना के कारण हुए ट्रॉमा और तनाव से राहत दिलाने का काम साइकोलॉजिस्ट करता है.
- इससे मरीज को मदद मिलती है और वो इस समस्या से जल्दी बाहर निकल पाता है.
हाइपोकॉन्ड्रिया के मामले में ऐसा अक्सर होता है कि मरीज को पता ही नहीं चल पाता कि वो इस समस्या से जूझ रहा है. इससे उसकी मेंटल हेल्थ तो प्रभावित होती ही है साथ में उसकी निजी जिंदगी पर भी बुरा असर पड़ता है. तो अगर आपको या आपके किसी जानकार को हाइपोकॉन्ड्रिया की समस्या है, तो तुरंत प्रोफेशनल मदद लें.
(यहां बताई गईं बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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