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आपको पता है आपके अंदर कोई और भी रहता है!

डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर में एक ही इंसान के एक या उससे ज़्यादा व्यक्तित्व हो सकते हैं.

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डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर को हिंदी में बहुव्यक्तित्व विकार कहते हैं
डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर को हिंदी में बहुव्यक्तित्व विकार कहते हैं
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सरवत
1 जून 2022 (Updated: 1 जून 2022, 16:12 IST)
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(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

साल 2005 में एक फिल्म आई थी. 'अपरिचित'. आपने कभी न कभी इसे टीवी पर ज़रूर देखा होगा. इसमें विक्रम लीड रोल में थे. जिन लोगों ने ये फिल्म नहीं देखी है, उनको शोर्ट में इसकी कहानी बता देती हूं. विक्रम का किरदार एक बहुत ही सीधा-साधा और ईमानदार लॉयर होता है. पर उसे स्प्लिट पर्सनैलिटी होती है. यानी वो अचानक से एक नया इंसान बन जाता है जो गुस्सेवाला होता है. गलती करते वालों को सज़ा देता है. इस किरदार की पर्सनैलिटी एकदम बदल जाती है. ऐसा तब होता है जब वो कोई ऐसी चीज़ को देखता है जो उसे ट्रिगर करती है.  

Serious question : Do we need a vigilante like Aparichit in real life to do  "samaj sudhar" in India? : r/bollywood
 ‘अपरिचित’ फिल्म का सीन 

इसके अलावा 2020 में एक सीरीज आई थी- 'द शैडोज़'. इसमें अभिषेक बच्चन थे. इस सीरीज में अभिषेक का किरदार भी स्प्लिट पर्सनैलिटी पर आधारित है. ट्रिगर होने पर वो एक नए इंसान बन जाते हैं. मर्डर तक कर देते हैं. आप सोच रहे होंगे कि आज हम ये सब बातें क्यों कर रहे हैं. वो इसलिए क्योंकि हमारा आज का शो है डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर पर. विक्रम के किरदार और अभिषेक के किरदार, दोनों ही डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर से ग्रसित थे. हां, ये बात सही है कि फ़िल्मों और सीरियल में चीज़ें थोड़ी ओवर द टॉप दिखाई जाती हैं. बढ़ा चढ़ाकर पेश की जाती हैं. पर हां, 'अपरिचित' और 'द शैडोज़' दोनों में ही डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर को समझाने की कोशिश की गई है. असल ज़िंदगी में भी बहुत लोग इससे ग्रसित होते हैं. तो क्या है ये डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर, समझते हैं.

डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर क्या होता है?

ये हमें बताया राकिब अली ने.

Child Psychology | Expert Profile
राकिब अली, कंसल्टेंट क्लिनिकल साईकोलॉजिस्ट, बीएलके-मैक्स हॉस्पिटल, फाउंडर CUBBE क्लिनिक्स

-डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर को हिंदी में बहुव्यक्तित्व विकार कहते हैं.

-आम भाषा में मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर भी कहा जाता है.

-ये एक तरह का मानसिक विकार है.

-जिसमें एक इंसान के दो या दो से ज़्यादा व्यक्तित्व रहते हैं.

-अमूमन हमारा एक व्यक्तित्व होता है.

-डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर में एक या उससे ज़्यादा व्यक्तित्व हो सकते हैं.

-ये काफ़ी अनोखा डिसऑर्डर है.

-डिसोसिएटिव डिसऑर्डर का एक ग्रुप होता है, जिसमें से डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर एक प्रकार है.

-इसमें जो मेन प्रॉब्लम होती है उसे कहते हैं डिसोसिएशन.

-डिसोसिएशन का मतलब है कि हमारे जितने मानसिक प्रोसेस होते हैं, जैसे सचेत होना, धारणा,  एक्सपीरियंस, मेमोरी या सेंसरी मोटर यानी संवेदनशीलता.

-ये सारे प्रोसेस एक साथ चलते हैं, अगर उनमें से एक भी ठीक तरह से काम न करे या ब्रेक डाउन हो जाए तो उसे डिसोसिएटिव डिसऑर्डर कहते हैं.

-उन्हीं में से एक है डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर.

डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर के लक्षण

-इसके 4-5 मुख्य लक्षण होते हैं.

-पहला. बचपन के अनुभवों का आभाव होना यानी बचपन की यादें याद न होना.

-दूसरा. पेशेंट कई बार ख़ुद को ऐसी जगहों पर पाता है जहां वो जानबूझकर जाना नहीं चाहता था.

-कुछ और चीज़ें भी होती हैं जैसे अनजाने में ऐसे कपड़े पहनना जो आमतौर पर इंसान नहीं पहनता.

-तीसरा. कुछ ऐसी चीज़ें सुनाई या दिखाई देना जो बाकी लोगों को सुनाई या दिखाई नहीं देतीं.

-कई लोगों में फॉल्स मेमोरी भी होती हैं.

-कुछ लोगों के बर्ताव में एकदम से बदलाव आ जाता है.

डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर के कारण

-सबसे बड़ा कारण है ट्रॉमा.

-यानी किसी भी तरह का मानसिक या शारीरिक झटका.

-जिसमें पेशेंट को बहुत बड़ा लॉस हुआ हो.

-अमूमन ये ट्रॉमा है बचपन में होने वाला शारीरिक, मानसिक या सेक्शुअल शोषण.

Dissociative Identity Disorder: Symptoms, Treatment
डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर में एक या उससे ज़्यादा व्यक्तित्व हो सकते हैं

-अगर बचपन में किसी इंसान को निगलेक्ट किया गया हो, बिलकुल भी ध्यान न दिया गया हो.

-रेप, वॉर, भयानक ट्रैफिक एक्सीडेंट के विक्टिम.

-कोई बहुत ही मुश्किल, तकलीफ़देह मेडिकल प्रोसीजर.

-ये ट्रॉमा के कारण हो सकते हैं.

-दूसरा कारण है जेनेटिक लिंक.

-कुछ ऐसे फैक्टर्स होते हैं जैसे जेनेटिक्स का ट्रांसमिशन जिसके कारण ये डिसऑर्डर हो सकता है.

-तीसरा कारण है न्यूरोबायोलॉजिकल यानी ब्रेन लेवल पर बदलाव.

-ब्रेन में मौजूद थैलेमस नाम के पुर्ज़े में ब्लड फ्लो की कमी होना.

-थैलेमस का काम है कि जो बाहरी सेंसरी सेंसेशन हैं, जैसे सुनने की क्षमता, महसूस करने की क्षमता, उनको फ़िल्टर करना, उनको काम का बनाना.

-अमिग्डाला (Amygdala) हमारे ब्रेन का वो हिस्सा है जो भावनाओं को कंट्रोल करता है और हिप्पोकैंपस हमारी सीखने की क्षमता को कंट्रोल करता है.

-इनका साइज़ छोटा होना भी वजह है.

-डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर कई कारणों का मिश्रण होता है.

-एक बात समझना ज़रूरी है.

-जो नया व्यक्तित्व बन रहा है उसका काम क्या है?.

Dissociative Identity Disorder
डिसोसिएशन का मतलब है कि हमारे जितने मानसिक प्रोसेस होते हैं जैसे सचेत होना, धारणा,  एक्सपीरियंस, मेमोरी या सेंसरी मोटर यानी संवेदनशीलता

-ये माना जाता है कि नया व्यक्तित्व इसलिए बनता है ताकि वो ख़ुद को बचा सके किसी न किसी ट्रॉमा से.

-ये ख़ुद को बचाने का एक तरीका है जो ब्रेन ख़ुद तैयार करता है पर इससे काफ़ी प्रॉब्लम होती है.

-ये डिसऑर्डर माइल्ड भी हो सकता है या सीवियर भी हो सकता है.

-कई बार माइल्ड लेवल पर पता नहीं चलता.

-पर जब ये डिसऑर्डर सीवियर हो जाता है तब इसका असर पड़ता है.

डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर का इलाज

-अगर हम इलाज की बात करें तो इस डिसऑर्डर में ट्रीटमेंट का कॉम्बिनेशन होता है.

-इसमें दवाइयां, साइकोथेरेपी यानी मानसिक थेरेपी, फैमिली थेरेपी, रिलैक्सेशन टेक्निक, और मेडिटेशन ये सब मिलाकर किया जाता है.

-ये काफ़ी मददगार साबित होता है.

-इसके इलाज में इस्तेमाल की जा रही साइकोथेरेपी लंबे समय तक चलती है.

-डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर के मरीज़ को साथ में एंग्जायटी डिसऑर्डर, डिप्रेशन, सब्सटेंस अब्यूज़ की दिक्कत भी होती है.

-इन सबका भी साथ में इलाज करना ज़रूरी है.

-फैमिली को ये ट्रेनिंग देना ज़रूरी है कि अगर पेशेंट का दूसरा व्यक्तित्व ट्रिगर हो रहा है तो समझें कि ऐसा क्यों हो रहा है.

-साथ ही उसको हैंडल कैसे करें.

-ये सारी चीज़ें इलाज में काफ़ी मददगार साबित होती हैं.

डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर या मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर काफ़ी कॉम्प्लेक्स डिसऑर्डर है. कई बार इससे ग्रसित इंसान के आसपास लोग पेशेंट के बर्ताव में आए बदलाव को समझ नहीं पाते. पेशेंट ख़ुद नहीं समझ पाता. इसलिए अगर आपको एक्सपर्ट के बताए गए लक्षण कुछ जाने पहचाने लग रहे हैं तो तुरंत प्रोफेशनल मदद लें.

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