यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञोंके अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूरपूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.मयंक दिल्ली के रहने वाले हैं. 29 साल के हैं. करीब एक साल पहले उनका रोड एक्सीडेंटहुआ था. उस वक़्त मयंक बाइक चला रहे थे. उन्होंने हेलमेट पहना हुआ था. जब वो गिरे तोआसपास के लोग मदद करने भागे. मयंक को काफ़ी चोट लगी थी. इस बीच किसी ने मयंक काहेलमेट उनके सिर से उतार दिया. मयंक को सिर,रीढ़ की हड्डी और गर्दन पर भी चोट आई थी.उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया. उनका इलाज चला. इन सबके बीच एक बहुत बड़ी गलती कर दीगई. एक्सीडेंट के बाद जिस इंसान ने मयंक की हेलमेट उतारी थी, उसने हेलमेट उतारतेसमय ध्यान नहीं बरता. उसे लगा हेलमेट उतार देनी चाहिए. नतीजा? मयंक की इंजरी औरज़्यादा बिगड़ गई. लगभग चार महीने इलाज के बाद मयंक थोड़े ठीक हुए. डॉक्टर्स के साथएक सेशन में उनको ये बात बताई गई. अब लगभग एक साल बाद मयंक ठीक हैं. उन्होंने हमेंमेल किया. वो चाहते हैं हम लोगों तक हेड इंजरी से जुड़ी ज़रूरी जानकारी पहुंचाएं.ख़ासतौर पर क्या गलतियां हैं जो लोगों को हरगिज़ नहीं करनी चाहिए. उन्हें वो ज़रूरबताएं. तो आज बात करते हैं हेड इंजरी के बारे में. पहले जानते हैं अलग-अलग हेडइंजरी के बारे में.हेड इंजरी किस-किस तरह की होती हैं?ये हमें बताया डॉक्टर गोविंद ने.डॉक्टर गोविंद माधव, न्यूरोलॉजिस्ट, AIIMS ऋषिकेश-हेड इंजरी की क्लासिफिकेशन (प्रकार) से हमें पता चलता है कि दिमाग के किस हिस्सेमें चोट लगी है-अगर दिमाग के बाहरी हिस्से या स्किन में चोट लगी है तो उसमें कोई खतरा नहीं है-स्किन के ठीक नीचे खोपड़ी यानी क्रेनियम होता है और हड्डियां होती हैं, अगर उसमेंचोट और फ्रैक्चर हो जाए तो उसे सिटी स्कैन के द्वारा देखा जाता है-हड्डियों के नीचे एक चादर होती है जिसे मैनेंजेज़ कहते हैं. इस मैनेंजेज़ की तीन सतहहोती हैं-जिसे ड्यूरा मैटर( Dura Mater), एरेकनॉयड मैटर (Arachnoid Mater) और पिया मैटर(Pia mater) कहते हैं-अगर खोपड़ी और ड्यूरा मैटर के बीच चोट लगने से रक्त का जमाव होता है तो उसेएक्स्ट्रा ड्यूरल हेमरेज कहते हैं.- ड्यूरल हेमरेज खून के दबाव से नली के फट जाने के कारण होता है. इसमें दिमाग केअंदर काफी तेज़ी से खून जमा हो जाता है. ये खून के जमा होने से बहुत अधिक दबाव पड़ताहै, जान जाने का भी खतरा होता है. सबसे खतरनाक बात ये कि शुरुआती 24 घंटे मेंकभी-कभी मरीज को कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, इस स्थिति में मरीज को भ्रम होजाता है कि उसे कोई खास बीमारी नहीं है. इस भ्रामक स्थिति को हम ल्यूसिड इंटरवलकहते हैं.- इसीलिए सिर पर चोट लगने पर सबसे पहले सीटी स्कैन करवाया जाता है, पेशेंट को 24घंटे अंडर ऑब्जर्वेशन रखते हैं ताकि रेड फ्लैग साइन दिखते ही चोट की गंभीरता कोसमझा जा सके-खोपड़ी, उसके नीचे ड्यूरा मैटर और उसके नीचे ब्रेन होता हैअगर दिमाग के बाहरी हिस्से या स्किन में चोट लगी है तो उसमें कोई खतरा नहीं है-खोपड़ी और ड्यूरा मैटर के बीच में एक्स्ट्रा ड्यूरल-ड्यूरा मैटर और ब्रेन के बीच में सब ड्यूरल. सब ड्यूरल मैटर (sub dural mater) मेंखून का बहाव कम होता है जिसके कारण खून का जमाव भी बहुत धीरे-धीरे होता है. अक्सरमहीनों या सालों तक कोई लक्षण दिखाई नहीं देता है. ऐसा ज्यादातर वृद्ध लोगों के साथहोता है जिन्हें अचानक से कुछ सालों बाद ये लक्षण देखने को मिलते हैं- सिर दर्द,बेहोशी, लकवा- अगर खून की नली सीधा सिर के अंदर फटी हो उसे इंट्रासेरेब्रल हैम्रेज कहते हैं. यहबहुत खतरनाक स्थिति होती है. जिसमें मरीज को लकवा पड़ सकता है. मिर्गी के दौरे आसकते हैं या दबाव के कारण दिमाग का हिस्सा खिसकने से जान जा सकती है.- कभी-कभी सिर पर बिना खून बहे, सिर्फ चोट आने से ही इतनी हलचल मच जाती है कि सिरके संपर्क में आने वाले तारों में खींचातानी हो जाती है. इसकी वजह से संपर्कप्रभावित हो जाता है. इस कंडीशन को डिफ्यूज एक्ज़ोनल इंजरी कहते हैं. इसमें मरीजकोमा की स्थिति में पहुंच जाता है और सुधार की गुंजाइश काफी कम हो जाती है.अगर खून की नली सीधा सर के अंदर फटी हो उसे इंट्रासेरेब्रल हैम्रेज कहते हैंहेड इंजरी से किस तरह के कॉम्प्लीकेशन आ सकते हैं, आपने डॉक्टर साहब से ये जानलिया. अब बात करते हैं उन गलतियों जो हेड इंजरी के केस में हरगिज़ नहीं करनी चाहिए.साथ ही रोशनी डालते हैं इलाज पर.किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?- किसी को हेड इंजरी हो तो सबसे पहले उसे नजदीकी अस्पताल ले जाएं, जहां पर सीटीस्कैन की सुविधा हो-अगर सिटी स्कैन में कोई गंभीर ख़तरे के निशान नहीं हैं तो बाहरी चोट के लिए मेडिकलड्रेसिंग की जाती है-इन्फेक्शन न हो जाए इसलिए एंटीबायोटिक दी जाती हैं-टेटनस का टीका लगता है-दर्द की दवाई दी जाती है-अगर चोट ज़्यादा हो और उसके चलते दिमाग पर दबाव पड़ रहा हो-तब दबाव कम करने के लिए कुछ दवाइयां दी जाती हैं- चोट गंभीर हो तो खोपड़ी को सर्जरी कर निकाला जाता है- अगर चोट की वजह से किसी को मिर्गी के दौरे पड़ रहे हैं तो मिर्गी की दवाई शुरू कीजाती है, ये दवाइयां साल दो साल तक चल सकती हैं- कभी-कभी मरीज को बेहोशी की स्थिति में वेंटीलेटर पर रखने की जरूरत पड़ जाती है,कोमा में मरीज महीनों तक रह सकता है.मिर्गी के दौरे आ सकते हैं या दबाव के कारण दिमाग का हिस्सा खिसकने से जान जा सकतीहैऐसे मरीजों के डिस्चार्ज होने के बाद किन बातों का ध्यान रखें-जो भी दवाइयां अस्पताल से दी गई हैं उन्हें अच्छे से समझ लें-एंटीबायोटिक या दर्द की दवाइयां कुछ दिनों के लिए दी जाती हैं- मिर्गी की दवाई महीनों और सालों तक चलती है. इसलिए बीच में न रोकें-अगर मरीज़ बिस्तर पर है तो उसकी फिजियोथैरेपी होना बहुत जरूरी है- हकीम के चक्कर में न पड़ें-जिन मरीजों को निगलने में दिक्कत होती है तो उन्हें नाक की नली लगाई जाती है-ऐसे में ज़बरदस्ती उनके मुंह में खाना न डालें- बेड पर पड़े-पड़े रहने से मरीज़ों को बेड सोर हो जाता है इसलिए उनकी साफ-सफाई काखास ध्यान देंडॉक्टर साहब ने जो टिप्स बताईं हैं उनपर ज़रूर ध्यान दीजिएगा. और सबसे ज़रूरी बात येकि जब भी दोपहिए वाहन पर घर से निकलें, तब हेलमेट ज़रूर लगाएं.--------------------------------------------------------------------------------वीडियो