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हिजाब नहीं भगवा गमछा कट्टरता की निशानी है, सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में ऐसा क्यों कहा गया?

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस्लाम में नमाज़ पढ़ना ज़रूरी नहीं तो हिजाब पहनना क्यों?

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Supreme Court Hijab Row Hearing
कोर्ट ने कहा कि कोई भी मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने से नहीं रोक रहा.
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सोनल पटेरिया
9 सितंबर 2022 (Updated: 9 सितंबर 2022, 11:56 IST)
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हिजाब बैन (Hijab Ban) पर सुनवाई चल रही है. मुस्लिम लड़कियां स्कूल और बाकी शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहन सकती हैं या नहीं इसका जवाब टटोलने की कोशिश तीसरे दिन यानी 7 सितंबर की सुनवाई में भी हुई.

कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में स्कूल में हिजाब पहनने पर पाबंदी लगाई थी जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.

7 सितंबर को याचिकाकर्ता की ओर से देवदत्त कामत ने पक्ष रखा. आज तक से जुड़ीं अनीशा माथुर की रिपोर्ट के मुताबिक, कामत ने शुरुआत उन सवालों का जवाब देने से की जो पिछली सुनवाई में पूछे गए थे. उन्होंने कहा,

"प्रतिबंध कानून व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य कारणों के आधार पर लगाए जाते हैं. स्कूल में हिजाब बैन इस दायरे में नहीं आता. ऐसे में कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला वैध नहीं हो सकता न ही ये कोई संवैधानिक प्रतिबंध है. हिजाब पहनना या नहीं पहनना धार्मिक विश्वास का मामला है. जबकि 'अनिवार्य धार्मिक विधि-विधानों' का सवाल तब उठता है जब राज्य उसे लेकर कोई कानून बनाता है और उन्हें मिटाने की कोशिश करता है, तब पूछा जाता है,कि क्या ये जरूरी है. सारे धार्मिक विधि-विधान अनिवार्य नहीं हो सकते, लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं कि सरकार उस पर प्रतिबंध लगा दे. ये तब तक नहीं किया जा सकता जब तक ये कानून व्यवस्था या किसी के स्वास्थ्य को प्रभावित ना कर रहा हो."

रुद्राक्ष, क्रॉस, जनेऊ की हिजाब से तुलना नहीं: कोर्ट

इससे पहले कोर्ट में कामत ने क्रॉस, जनेऊ, रुद्राक्ष का उदाहरण भी दिया था जिसके जवाब में कोर्ट ने कहा था कि ये सब कपड़े के ऊपर नहीं पहने जाते. ये किसी को दिखाई नहीं देते. कोई भी छात्रों की यूनिफ़ॉर्म उतरवाकर ये जांच करने नहीं जा रहा कि उन्होंने कौन सा धार्मिक प्रतीक पहना है.

कोर्ट ने आगे कहा कि कोई भी मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने से नहीं रोक रहा. सवाल बस इतना है कि क्या स्कूल में इसे पहनने की अनुमति दी जा सकती है या नहीं.

सिखों का पगड़ी पहनना भारतीय संस्कृति का हिस्सा : कोर्ट

याचिकाकर्ताओं की ओर से एक और वकील निजामुद्दीन पाशा ने पक्ष रखते हुए कहा कि सिख भी पगड़ी पहनते हैं. अगर कहा जाए कि वो स्कूल में पगड़ी पहनकर नहीं आ सकते तो ये उनके अधिकारों का उल्लंघन होगा. इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि  सिख धर्म का 500 साल पुराना इतिहास है. सिख धर्म की प्रथाएं देश की संस्कृति में अच्छी तरह से निहित हैं और इसका ज़िक्र भारतीय संविधान में भी है. सिखों में पांच ककार (कंघा, कृपाण, कड़ा, कछहेरा और केश) अनिवार्य हैं. इसलिए सिखों के अधिकारों या प्रथाओं से तुलना करना ठीक नहीं है.

जवाब में पाशा ने कहा कि 1400 सालों से हिजाब भी इस्लामिक परम्परा का हिस्सा रहा है. इसलिए हिजाब पर बैन लगाने वाला कर्नाटक हाईकोर्ट का निष्कर्ष ग़लत है.

इस्लाम में नमाज़ ज़रूरी नहीं तो हिजाब क्यों?

पाशा ने इस्लाम के बारे में जानकारी देते हुए कोर्ट को बताया कि इस्लाम में लोगों (इस्लाम को मानने वाले) के लिए पांच मूल सिद्धांत बनाए गए हैं. हालांकि, इनका पालन करने की ज़बरदस्ती नहीं है. ये पांच मूल सिद्धांत हैं नमाज, हज, रोजा, जकात और ईमान का पालन. अगर कोई इनका पालन नहीं करता तो उसे सज़ा नहीं मिलती.

इसपर कोर्ट ने सवाल किया कि मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब कैसे अनिवार्य हो गया? कोर्ट ने पूछा,

"अगर सजा के अभाव में मुस्लिम इस्‍लाम के पांच मूल सिद्धांतों का अनिवार्य रूप से पालन नहीं करते हैं, तो हिजाब जैसी कम धार्मिक प्रथा कैसे मुस्लिम महिलाओं के लिए अनिवार्य बताई जा सकती है. इतनी कि उन्‍हें एक शिक्षण संस्‍थान में भी इसे पहनना पड़े?"

जवाब देते हुए पाशा ने कहा 'सिद्धांतों का पालन करने की बाध्यता नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि ये इस्लाम में जरूरी नहीं हैं.  कुरान की आयतों में साफ-साफ कहा गया है कि महिलाओं को परदे से अपने आप को ढककर रखना होता है. जबकि कर्नाटक हाईकोर्ट का मानना है कि हिजाब पहनना मेंडेटरी नहीं, इसलिए ये एसेंशियल नहीं है. पाशा ने कहा कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने हिजाब की व्याख्या को गलत समझा. हिजाब पहनना एक आध्यात्मिक रीत है. कोर्ट ये तय नहीं कर सकता कि ये पहनना कब सही है और कब गलत? इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि वो कोर्ट में इस्लामिक कानूनों की व्याख्या को जमा करें. 

हिजाब नहीं भगवा गमछा कट्टरता की निशानी

देवदत्त कामत ने एक और ज़रूरी सवाल का जवाब दिया. कामत ने कहा कि एक सवाल ये भी पूछा गया कि सिर पर स्कार्फ बांधने की अनुमति दे दी जाती है, तो कल को कुछ छात्र कहेंगे कि उन्हें भगवा गमछा पहनना है. मेरे हिसाब से भगवा गमछा पहनना अपनी धार्मिक मान्यताओं का स्वाभाविक प्रदर्शन नहीं है. बल्कि ये धार्मिक कट्टरवाद  का जानबूझकर किया गया प्रदर्शन है. ये ऐसा है कि अगर आप हिजाब पहनोगे, तो मैं अपनी धार्मिक पहचान बचाने के लिए कुछ पहनूंगा. संविधान का अनुच्छेद-25 इसे सुरक्षित नहीं करता है.

कपड़े उतारना भी मूलभूत अधिकार होगा!

6 सितंबरम की सुनवाई में कामत ने संविधान के अनुच्छेद 19 का ज़िक्र करते हुए कहा था कि ये लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा के तहत पोशाक पहनने का मौलिक अधिकार देता है. हिजाब पहनने वाली याचिकाकर्ता इस बात से सहमत है कि इस अधिकार पर ‘उचित प्रतिबंध’ होंगे और वे यूनिफॉर्म पहनने का विरोध नहीं कर रही है, बल्कि इसके साथ बस हिजाब पहनने की मांग कर रही है.

इसके जवाब में जस्टिस गुप्ता ने कहा आप इसे अतार्किक अंत तक नहीं ले जा सकते. क्या पोशाक पहनने के अधिकार में कपड़े उतारने का भी अधिकार शामिल होगा?

इस पर कामत ने कहा, कोई भी स्कूल में कपड़े नहीं उतार रहा.

इस मामले पर अगली सुनवाई 12 सितंबर को होगी. अभी तक याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील देवदत्त कामत और निजाम पाशा ने दलीलें रखी हैं. 12 सितंबर को याचिकाकर्ताओं की ओर से सलमान खुर्शीद दलीलें रखेंगे.

वीडियोः हिजाब की तुलना चुन्नी से नहीं हो सकतीः सुप्रीम कोर्ट

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