The Lallantop
Advertisement

"शादी हुई हो या नहीं, गर्भपात हर औरत का अधिकार है" - सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गर्भपात के नियमों से अविवाहित महिलाओं को बाहर रखना असंवैधानिक है.

Advertisement
supreme court on abortion
तस्वीरें- इंडिया टुडे.
pic
दुष्यंत कुमार
29 सितंबर 2022 (Updated: 29 सितंबर 2022, 01:38 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात (Supreme Court on Abortion) को लेकर महिलाओं के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला दिया है. गुरुवार, 29 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी महिलाओं को सुरक्षित और कानूनन गर्भपात कराने का अधिकार है. शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए कहा कि अविवाहित महिलाओं को गर्भपात कराने के नियमों से बाहर रखना असंवैधानिक है.

फैसले में कोर्ट ने 'मैरिटल रेप' को भी रेप ही मानने की बात कही है. उसने कहा है कि MTP के उद्देश्यों के मद्देनजर ऐसा किया जाना जरूरी है. लाइव लॉ के मुताबिक कोर्ट ने कहा कि पति के जबरन सेक्स करने से शादीशुदा महिलाएं गर्भवती होती हैं. इसलिए अगर ऐसी महिलाएं गर्भपात कराना चाहती हैं तो उन्हें इसका अधिकार होना चाहिए.

मामला क्या था?

पिछले साल एक 25 साल की युवती ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर करके कहा था कि उसे अपनी 23 हफ्ते 5 दिन की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की अनुमति दी जाए. रिपोर्ट के मुताबिक युवती की शादी नहीं हुई थी. वो लिव-इन में रहते हुए प्रेग्नेंट हुई थी. लेकिन उसके पार्टनर ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया था. याचिका में युवती ने हाईकोर्ट से कहा था कि वो अविवाहित है, इसलिए बच्चे को जन्म नहीं दे सकती.

लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने MTP Act (Medical Termination of Pregnancy - चिकित्सकीय गर्भपात) के नियमों का हवाला देते हुए युवती को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि अविवाहित महिलाएं MTP के गर्भपात नियमों के तहत नहीं आती हैं. इसके बाद युवती सुप्रीम कोर्ट पहुंची. शीर्ष अदालत ने उसे राहत दी. उसने आदेश दिया कि एम्स का एक मेडिकल पैनल ये देखे कि क्या उस समय भी महिला का सुरक्षित गर्भपात कराया जा सकता है. अगर हां, तो महिला अपनी प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करा सकती है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने बीती 23 अगस्त को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

अब कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं भी प्रेग्नेंट होती हैं और उन्हें भी कानून के तहत गर्भपात कराने का हक है. कोर्ट ने कहा कि 2021 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) ऐक्ट में हुआ संशोधन विवाहित और अविवाहित महिलाओं में भेद नहीं करता है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक शीर्ष अदालत ने कहा है कि मेडिकल टर्मिनेशन के लिए बने नियमों से अविवाहित महिलाओं को बाहर रखना असंवैधानिक है. कोर्ट ने साफ कहा,

“सभी महिलाएं सुरक्षित और लीगल अबॉर्शन कराने की हकदार हैं.”

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने प्रेग्नेंसी के मेडिकल टर्मिनेशन से जुड़े मौजूदा नियमों की खामी का उल्लेख करते हुए कहा है,

"आधुनिक समय में भी ये नियम इस विचार का समर्थन करता दिखता है कि व्यक्तिगत अधिकारियों के लिए शादी की शर्त पूरी करना जरूरी है. जबकि समाज की हकीकत बताती है कि अब गैर-पारंपरिक पारिवारिक संरचनाओं को भी मान्यता देने की जरूरत है."

कोर्ट ने आगे कहा,

"MTP को आज की वास्तविकताओं को स्वीकार करना होगा. उन्हें पुराने नियमों से नहीं रोका जाना चाहिए."

पिछले साल मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट में एक संशोधन किया गया था. इसके तहत शादीशुदा महिलाओं को ये अधिकार दिया गया था कि अगर वे चाहें तो पार्टनर की सहमति के साथ 20 से 24 हफ्तों तक की प्रेग्नेंसी को खत्म करा सकती हैं. लेकिन मेडिकल टर्मिनेशन के लिए बने नियमों में अविवाहित महिलाएं शामिल नहीं हैं.

MTP का नियम 3बी कहता है कि कौनसी महिलाएं गर्भपात करा सकती हैं. इस लिस्ट में अविवाहित महिलाओं का जिक्र नहीं है. कोर्ट ने कहा है कि इससे 'रूढ़िवादी संदेश' जाता है कि केवल शादीशुदा महिलाएं सेक्शुअल एक्टिविटी कर सकती हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि मैरिड और अनमैरिड महिलाओं के बीच ऐसा ‘बनावटी (या झूठा) अंतर’ स्वीकार नहीं किया जा सकता. बेंच ने कहा कि उन सभी के पास इन अधिकारों के स्वतंत्र इस्तेमाल की स्वायत्तता होनी चाहिए.

प्रेग्नेंसी रोकने की टेक्निक पूछने पर महिलाओं के जवाब हैरान करने वाले

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement