भारत के इस शहर में लड़के पीरियड के दर्द से क्यों कराह रहे?
लड़कियों को जितना दर्द होता है, उसका 10 प्रतिशत भी नहीं झेल पाए लड़के.
पीरियड (Period) और इसके साथ होने वाला दर्द यानी क्रैम्प्स (Cramps) . आज भी भारत में ये एक टैबू (Taboo) है. लोग इस पर बात करने में सहज नहीं होते हैं, करते भी हैं तो दबी ज़ुबान में बात करते हैं. लेकिन केरल (Kerela) में एक कैम्पेन चल रहा है, जो इसे बदलने की कोशिश में लगा है. 'फील द पेन' कैम्पेन के ज़रिए एर्णाकुलम के मॉल, कॉलेज और मेट्रो में जारूकता फैलाई जा रही है. पीरियड सिम्युलेटर के ज़रिए लोगों को वो दर्द महसूस करने का मौका दिया जा रहा है जिससे कई महिलाएं हर महीने जूझती हैं.
लोगों को कुर्सी पर बैठाकर पीरियड क्रैम्प जितना दर्द इलेक्ट्रिक करंट से दिया गया. कुछ लड़के दर्द से कराह उठे वहीं लड़कियां हंसती हुई दिखीं. लोगों के रिएक्शन की क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल है.
सिम्युलेटर काम कैसे करता है?एक सिम्युलेटर मशीन में दो वायर अटैच होते हैं. दोनों वायर अलग-अलग व्यक्तियों के शरीर पर चिपकाया जाता है. मशीन में दर्द के हिसाब से करंट का लेवल सेट करने का ऑप्शन है. 0 से लेकर 10 तक लेवल सेट करने का ऑप्शन है.
एर्णाकुलम IMA और कप ऑफ लाइफ से जुड़े डॉक्टर अखिल मैनुएल ने बीबीसी से कहा,
"लड़कियों को लेवल 9 पर भी कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा था, वहीं लड़के लेवल 4 के बाद दर्द झेल ही नहीं पाए. ये हाल तब है जब सिम्युलेटर ऐक्चुअल दर्द का केवल 10% ही महसूस कराता है."
इस कैम्पेन में हिस्सा लेने वाले ज़्यादातर लड़के चीख उठे वहीं लड़कियों के चहरे पर शिकन तक नहीं आई.
इस कैम्पेन को डिजाइन करने वाली सैंड्रा सन्नी का कहना है सिम्युलेटर सबसे आसान तरीका है जिसके ज़रिए पीरियड के आस-पास सार्थक बातें की जा सकती है और लोगों का नज़ारिया बदला जा सकता है. वो कहती हैं,
सिम्युलेटर वाला आईडिया किसका था?“अगर आप सीधे जाकर कॉलेज के लड़कों से जाकर पूछेंगे कि क्या कभी उन्होंने पीरियड्स या क्रैम्प्स पर किसी से बात की है तो वो झिझकेंगे. वो इस बारे में बात करने से कतराएंगे. लेकिन सिम्युलेटर यूज़ करने के बाद लोगों को इस बारे में बात करने के लिए हुक मिला. उनके लिए भले ही ये बस एक मशीन है जिसे वो जब चाहें तब बंद कर सकते हैं. पर इसके कारण उन्हें ये समझने में मदद मिली की महिलाएं जीवन भर कितना दर्द सहती हैं”
सिम्युलेटर के ज़रिए दर्द महसूस कराने वाला ये प्लान 'कप ऑफ लाइफ' प्रोजेक्ट का हिस्सा है. इस कैम्पेन का उद्देश्य पीरियड और उससे जुड़े मुद्दों को नॉर्मलाइज़ करना है ताकि इस मुद्दे पर लोग खुलकर बातचीत कर सकें.
एर्णाकुलम के सांसद हिबी ईडन ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के साथ मिलकर शुरू किया था. ये कोई यूनिक आईडिया नहीं है. विदेश में कई कंपनीज़ ऐसा कर चुकी हैं. लोगों के रिएक्शन के वीडियो टिकटॉक और बाकी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खूब वायरल हुए थे.
ईबी हिडेन का कहना है उन्हें ये आईडिया एर्णाकुलम के कुंभलंगी में मेन्स्ट्रुअल कप बांटने के बाद आया. इसी साल 13 जनवरी को केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कुंभलंगी को देश का पहला पैड फ्री गांव घोषित किया था. हिबी ईडन ने प्रधानमंत्री संसद आदर्श ग्राम योगना के तहत 'अवलकायी' अभियान की शुरुआत की थी. इस अभियान के तहत 18 साल से ऊपर की महिलाओं को 5000 से ज्यादा मेंस्ट्रुअल कप बांटे गए. महिलाओं को मेंस्ट्रुअल कप इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग दी गई. हिबी ईडन ने कहा था ,
“हमने कई स्कूलों में नैपकिन-वेंडिंग मशीनें लगाई हैं, लेकिन अक्सर वो ठीक से काम नहीं करते. फिर हमें यह आइडिया आया और हमने एक्स्पर्ट्स से सलाह लेकर इसका विस्तार से अध्ययन किया. एक्स्पर्ट्स ने कहा कि मेन्स्ट्रूअल कप को कई सालों तक रीयूज़ किया जा सकता है और यह अधिक हाईजीनिक है.”
हिबी का कहना है कि लोगों का नेता होने के नाते मेरा काम केवल रोड और ब्रिज बनाना नहीं है. सिर्फ लोगों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व करने के लिए मैं नेता नहीं हूं. समाज में बदलाव लाना और लोगों को इस मुहिम के लिए जोड़ना खुशी देता है.
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