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पैसों के लिए लड़की झूठे केस में फंसा रही है तो फौरन ये करें!

अगस्त 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा था कि कई बार रेप के आरोपों को बदला लेने या अपनी डिमांड पूरी करवाने के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.

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74% रेप केसेस फाल्स (झूठे) पाए गए /सांकेतिक फोटो
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सोनल पटेरिया
13 जून 2022 (Updated: 13 जून 2022, 24:21 IST)
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मध्य प्रदेश से एक खबर आई. सरकारी मुआवजा पाने के लिए झूठे रेप केस दर्ज कराए जा रहे हैं. दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, झूठे रेप केस दर्ज कराने के लिए बाकायदा गैंग चल रहा है. फर्जी शिकायतकर्ता से लेकर पुलिस और वकील तक के शामिल होने के आरोप लगाए जा रहे हैं. मध्यप्रदेश में राज्य सरकार SC-ST एट्रोसिटी एक्ट के तहत पीड़ित महिला को 4 लाख रुपये का मुआवजा देती है. मामले में FIR दर्ज होने पर एक लाख और कोर्ट में चार्ज शीट पेश होने पर 2 लाख रुपये दिए जाते हैं. 3 लाख रुपये तो सजा होने से पहले ही दे दिए जाते हैं. अगर आरोपी को सजा होती है, तो पीड़ित को एक लाख रुपए और दिये जाते हैं.

बीती 19 मई को ऐसे ही एक केस से जुड़ी खबर आई थी. ट्रायल के दौरान महिला ने कबूला था कि उसने रेप का झूठा आरोप लगाया है. दोनों पक्षों के बीच आपसी विवाद था, जिसके चलते उसने ऐसा किया. केस की सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल ने कहा था कि महिला को मुआवजे में मिले हुए पैसे वापस देने होंगे जो राज्य सरकार ने दिए थे.

कुछ ऐसे मामले

जनवरी 2021 को 20 साल जेल में सज़ा काटने के बाद विष्णु तिवारी को रेप के आरोपों से निर्दोष पाया गया. साल 2000 में उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले की रहने वाली एक महिला ने आरोप लगाया था कि काम पर जाते समय रास्ते में विष्णु ने उसे रोककर उसका बलात्कार किया. ट्रायल कोर्ट में सुनवाई हुई और विष्णु को दोषी पाया गया. उम्रकैद की सज़ा हुई. 14 साल पूरे होने पर उसने दया याचिका लगाई. मामला हाईकोर्ट पहुंचा. कोर्ट ने पाया कि महिला के प्राइवेट प्राइवेट पार्ट में कोई निशान नहीं थे. दोनों परिवारों के बीच ज़मीनी विवाद था और महिला के पति और ससुर ने शिकायत दर्ज कराई थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विष्णु को निर्दोष पाया और कहा कि यह दुर्भाग्यवश है कि जो अपराध उसने किया ही नहीं, उसके लिए उसे दो दशक जेल में रहना पड़ा.

दूसरा मामला है पंजाब का. एक महिला ने नेता पर रेप और ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाया था. सीबीआई जांच की भी मांग की थी. जांच में महिला के आरोपों को झूठा पाया गया और पंजाब हाईकोर्ट ने झूठा आरोप लगाने के बदले एक लाख रूपए का जुर्माना लगाया था.

ये मामले तो बस उदहारण थे. ऐसे कितने ही मामले आए दिन आते रहते हैं. अगस्त 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा था कि कई बार रेप के आरोपों को बदला लेने या अपनी डिमांड पूरी करवाने के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.

दिल्ली हाईकोर्ट ने ये भी कहा था कि आपसी विवाद का बदला लेने के लिए रेप के आरोप को हथियार की तरह इस्तेमाल करने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए और सज़ा भी मिलनी चाहिए. एक मामले की सुनवाई करते हुए जज वीरेन्द्र भट्ट ने कहा था, 

"अदालत से बरी होने के बाद भी झूठे रेप केस के आरोपी की खोई हुई गरिमा और सम्मान को बहाल करना बहुत मुश्किल होता है. उन्हें जिस अपमान और आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है उसका कोई मुआवजा नहीं होता"

ये तो बात हुई मामलों की. यानी फैक्चुअल बातें. अब इसके आधार पर बहुत से लोग तर्क देते हैं कि आधे से ज्यादा रेप के मामले झूठे होते हैं. गलत होते हैं. इसपर बीबीसी की एक बहुत डिटेल्ड रिपोर्ट है. जोआना जॉली ने लिखी है. रिपोर्ट का सार मैं आपको बता देती हूं. साल 2012 निर्भया मामले के बाद रेप के मामलों की की रिपोर्ट में 100% की बढ़ोतरी हुई. दिल्ली कमीशन ऑफ़ वीमेन ने 2014 में रिपोर्ट छापी. कहा कि 53% मामले झूठे थे. जोआना ने इस मैटर पर केस स्टडी शुरू की. उन्होंने बताया कि जिन मामलों को झूठा बताया जा रहा है, वो ऐसे मामले हैं जो कोर्ट में ट्रायल के पहले ही ड्रॉप हो गए. मतलब दोनों पार्टी ने या तो आउट ऑफ़ कोर्ट सेटेलमेंट कर लिया या फिर शिकायत करने वालों ने केस वापस ले लिया. हर केस की वजह जाने बिना उन्हें झूठा करार दे देना गलत है.

2020 में  NCRB यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का डेटा भी इसी आधार पर बना था. जिसमें कहा गया था कि 74% रेप के मामले (झूठे) पाए गए. लेकिन ये वो मामले थे, जिनकी कंप्लेन ट्रायल के लिए कोर्ट तक नहीं पहुंची. और जितनी कोर्ट में पहुंची, उसमें से 8% झूठे पाए गए. मतलब ये तो स्पष्ट है कि कुछ मामले झूठे होते हैं. अब दो सवाल हैं. पहला ये कि कैसे पता चलता है कि कोई केस जेन्युइन है या फेक. दूसरा ये कि अगर किसी पर वाकई झूठा रेप केस लगाया जा रहा है, तो वो वो पुरुष क्या करे? उसे क्या स्टेप लेना चाहिए. ये समझने के लिए हमने बात की एडवोकेट राकेश मल्होत्रा से. उन्होंने बताया, 

बार-बार कोर्ट ने कहा है कि चूंकि इज्जत किसी भी महिला का सबसे बड़ा एसेट है, तो ऐसे में उसके बयान को भी वेटेज दी जाएगी. जब तक कि उसमें कोई इशू आ रहे हों या किसी कारण वो विश्वास करने लायक न हो. उसके आधार पर (आर्टिकल) 376 में गंभीर सजा की, क्योंकि दुर्भाग्यवश जब किसी महिला के साथ ऐसा कुछ होता है तो उसकी पूरी लाइफ नरक बन जाती है. पर्सनल ट्रॉमा के अलावा, एजूकेशनल, सोशइटल और फिजिकल दिक्कतें उनको आती हैं.

एडवोकेट मल्होत्रा ने आगे बताया,

दूसरी तरफ अगर हम NCRB के आंकड़ों को देखें तो 74 प्रतिशत बरी दर्ज है, रेप केसेज में.ऐसे में फॉल्स केसेज की गुंजाइश नजर आती है. औरतें शिकायत दर्ज कराते हुए तीन जगह अपना बयान दर्ज कराती हैं. पहला कंप्लेन करते हुए पुलिस स्टेशन में, दूसरा कोर्ट में जाकर जज के सामने, तीसरा जब वो गवाह के रुप में पेश होती है तब. इन तीनों बयानों में कोई अंतर या विरोधाभास पाया जाता है, कुछ जोड़ा घटाया जा रहा है, या पुलिस की जांच में लड़की के किसी मोटिव का पता चले, जिस कारण वो फॉल्स कंप्लेन कर सकती है, तो ऐसा सबूत जब डिफेंस लेकर आता है तब सभी पक्षों को देखकर कर जज ये डिसाइड करता है कि आरोप सच हैं या नहीं.

वकील ने आगे बताया कि कई बार औरतें खुद ही क्रॉस एग्जामिनेशन में टूट जाती हैं और केस की सच्चाई सामने आ जाती है. उन्होंने बताया कि अगर किसी आदमी को लगता है कि उसके ऊपर झूठे आरोप लगाए जा सकते हैं, तो पहला बचाव तो यही है कि वो पुलिस स्टेशन में एक रिप्रजेंटेशन दे सकता है और सारे फैक्ट्स बता सकता है कि उसके ऊपर ऐसा कोई आरोप लगने की आशंकाएं हैं. दूसरा वो टेक्स्ट या ऐसे डॉक्यूमेंट कोर्ट में दिखा सकता है, जिससे उसकी बेगुनाही प्रूव हो सके. तीसरा मेडिकल एविडेंस. डीएनए टेस्ट के लिए खुद ही पहल करे. अगर लगता है कि पुलिस उसकी बात नहीं सुन रही है तो वो हाईकोर्ट जा सकता है. वहां निष्पक्ष जांच के लिए रिट पीटीशन फाइल कर सकता है.

सेक्शुअल असॉल्ट और रेप के सर्वाइवर आजकल अपने साथ हुई घटना के बारे में बता रहे हैं. रिपोर्ट लिखवा रहे हैं. फिर भी बहुत सी ऐसी पीड़िताएं हैं, जो अपने साथ हुई बलात्कार की घटना के बारे में नहीं बता पातीं. आज भी परिवार की इज्ज़त और लोग क्या कहेंगे के चलते रिपोर्ट नहीं लिखवाई जाती. रेप बहुत ही हीनियस क्राइम है. झूठ बोलकर उसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना, उन पीड़िताओं के लिए मुश्किल पैदा करेगा जिनके साथ सच में अपराध हुआ. और जिसके ऊपर झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं, उसकी जिंदगी भी पूरी तरह तबाह हो जाती है. लोग हमेशा उसे रेपिस्ट की तरह याद रखते हैं. लोग आरोपी और दोषी में फर्क करना नहीं जानते. झूठे आरोप लगाने वाली लड़कियों की वजह से हर रेप सर्वाइवर को शक के घेरे से गुजरना पड़ता है कि कहीं वो झूठ तो नहीं बोल रहे. उनकी लिए भी राह मुश्किल ही होती है. इसलिए झूठे केस करने वालों के लिए भी स्ट्रिक्ट लॉज़ होने चाहिए ताकि इसका गलत इस्तेमाल ना हो और जो वाकई विक्टिम हैं उन्हें न्याय मिले.

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