थियोडीशिया कारपेंटर नाम की महिला अपने डेंटिस्ट के ऑफिस में बैठी थीं. न्यू जर्सीमें. अपनी बारी का इंतज़ार कर रही थीं. वहीं एक अखबार पड़ा था. उसे उठाकर पढ़ने लगीं.एक कोने में नज़र ठहरी. चिट्ठी छपी थी. अमेरिका के मशहूर मिशनरी रॉयल वाइल्डर केनाम. भारत की एक लड़की ने अमेरिका आकर पढ़ने की इच्छा जताई थी. चिट्ठी पढ़ने के बादथियोडीशिया ने उस लड़की को चिट्ठी लिखी, ‘मेरे घर आओ. रहो. यहां से पढ़ाई करो.’थियोडीशिया को इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि वो भारत के इतिहास में एक बहुतबड़ा अध्याय लिखने में मदद करने जा रही थीं.लड़की का नाम था आनंदी गोपालराव जोशी. पुणे में जन्मी आनंदी को माता-पिता ने यमुनानाम दिया. नौ साल की थीं तब शादी हो गई. पति गोपाल राव जोशी ने शादी के बाद रिवाज़के मुताबिक आनंदी नाम दिया. वो उम्र में आनंदी से 20 साल बड़े थे. 14 की उम्र मेंआनंदी मां बनीं लेकिन बच्चा 10 दिन भी न जी सका. इससे वो बेहद निराश हो गईं. सोचा,हेल्थ केयर के लिए कुछ तो होना चाहिए. पति गोपाल राव चाहते थे कि आनंदी पढ़ें. कुछबनें. उस समय यानी 1880 के दौर में ये बहुत बड़ी बात थी. औरतों का पढ़ना अजाब मानाजाता था. तिस पर उनकी ये ज़िद कि पढ़ाई विदेश से करेंगी. वो समय ऐसा था कि विदेश जानेवालों को जाति से बाहर कर दिया जाता था. लेकिन गोपाल राव ने आनंदी को कुछ बनाने कीठान ली थी.बेहद कम उम्र में आनंदी विदेश गईं पढ़ाई करने के लिए. वहां से डिग्री भी ली. लेकिनउस डिग्री का इस्तेमाल नहीं हो पाया. (तस्वीर: विकिमीडिया)आज के दौर में भी ऐसी खबरें आती रहती हैं कि खाना नहीं बनाने पर किसी औरत को पति नेपीट दिया. लेकिन गोपाल राव ने उस दौर में आनंदी को इसलिए पीट दिया था कि वो पढ़ाईको पूरा वक्त नहीं दे रही थीं. हालांकि, आनंदी ने बचपन में जो झेला था, उसने उनकामन पहले से ही दृढ़ बना दिया था. उनके पिता गणपत राव उनको पढ़ाना चाहते थे. लेकिन मांबहुत अब्यूजिव थीं. आनंदी ने बताया भी था. ‘मेरी मां ने कभी मुझसे प्यार से बातनहीं की. पत्थर, छड़ी और जलते कोयले से मारती थीं.' शादी से पहले गोपाल राव उनकोट्यूशन देते थे. शादी हो गई, तो उनकी पढ़ाई का जिम्मा उठा लिया. कोशिश की कि चर्च कीसहायता से अमेरिका चली जाएं आनंदी. इसीलिए रॉयल वाइल्डर को वो चिट्ठी लिखी थी.लेकिन चर्च ने मना कर दिया. क्योंकि आनंदी क्रिश्चियन नहीं बनना चाहती थीं. लेकिनथियोडीशिया ने वो चिट्ठी पढ़ी और आनंदी को चिट्ठी लिखी. आनंदी ने जवाब में लिखा,'कायदा ही ऐसा बन गया है कि हम इंडियन औरतें कई छोटी-छोटी बीमारियां झेलती रहतीहैं. बिना उनपर ध्यान दिए, जब तक वो बहुत गंभीर नहीं हो जातीं. आधी अपनी युवावस्थामें मर जाती हैं उन बीमारियों की वजह से जो या तो अज्ञान और घिन की वजह से होतीहैं, या फिर उनके गार्जियंस और पतियों की अनदेखी की वजह से.' अगर आनंदी जीवितहोतीं, तो उन्हें प्रैक्टिस करने का मौका मिलता. जोकि असमय निधन की वजह से उन्हेंनहीं मिल पाया. (तस्वीर: विकिमीडिया)1883 में जब आनंदी का विदेश जाना तय हुआ तो समाज ने कहा कि वो 'धर्मभ्रष्ट' होजाएंगी. ऐसा नहीं था कि उनको सिर्फ यहीं विरोध का सामना करना पड़ा. अमेरिका में भीजो लोग जान गए थे कि आनंदी पढ़ने आना चाहती हैं. उन्होंने इस बात पर जोर डालना शुरूकिया कि उनको कन्वर्ट करना चाहिए. बिना कन्वर्ट किए उनके आने और पढ़ने पर आपत्तिकाफी लोगों को थी.7 अप्रैल, 1883 को वो अमेरिका के लिए निकल गईं. पैसों का इंतजाम पिताजी के दिए गहनेबेचकर किया. जो कम पड़े, उसके लिए चन्दा लिया. वहां यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिल्वेनियाके विमेंस मेडिकल कॉलेज में दो साल के प्रोग्राम में खुद को एनरोल कराया. साड़ीपहनतीं, वेज खाना खातीं. अपनी थीसिस में भी संस्कृत के श्लोकों और बातों कोट्रांसलेट करके इस्तेमाल किया था उन्होंने. MD की डिग्री विदेश से पाने वाली वोपहली भारतीय महिला बनीं. 1886 में जापान की केई ओकामी और सीरिया की तबत इस्लामबूलीके साथ वो ग्रेजुएट हुईं. तीनों महिलाएं अपने-अपने देश से पश्चिमी मेडिसिन मेंडिग्री पाने वाली पहली महिलाएं थीं.बाईं से दाईं ओर - आनंदी, केई, और तबत. (तस्वीर: विकिमीडिया)लोकमान्य बालगंगाधर तिलक और इंग्लैंड की रानी क्वीन विक्टोरिया ने भी आनंदी कीतारीफ़ की थी.कोल्हापुर के गवर्नर मिनिस्टर ने उनको चिट्ठी भेजी. लिखा, 'आप यहां आकर अल्बर्टएडवर्ड कॉलेज का लेडीज वॉर्ड संभालिए. आपको लेडी डॉक्टर की पदवी दी जाएगी.' लेकिनएक दिक्कत हुई. वो वहां की डाईट और ठण्ड का मुकाबला न कर पाईं. टीबी हो गया. इस वजहसे वो वापस आ गईं. टीबी से लड़ने के लिए उनको देशी और विदेशी हर तरह की दवा दी गई.लेकिन वो बच नहीं सकीं.उनको कभी अल्बर्ट एडवर्ड हॉस्पिटल में काम करने का मौका नहीं मिल पाया. उनके बादगुरुबाई कर्माकर और डोरा चैटर्जी भी पढ़कर लेडी डॉक्टर बनीं. कैरोलिन डाल ने आनंदीजोशी की बायोग्राफी लिखी थी. उन्होंने आनंदी से पूछा, अपने अलावा आपको कुछ और बननेका मौका मिले तो आप कौन बनना चाहेंगी.आनंदी ने कहा,‘कोई नहीं’.26 फरवरी, 1887 को आनंदी गोपाल जोशी की मृत्यु हुई. बाद में इन पर टीवी सीरियल भीबना.--------------------------------------------------------------------------------वीडियो:किसी देश की पहली महिला कौन होती हैं और उनकी क्या जिम्मेदारी होती है?