क्या है यूथ फॉर इक्विलिटी जो आर्थिक आरक्षण बिल को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है
इस एनजीओ का कनेक्शन जेएनयू, अरविंद केजरीवाल, शिव खेड़ा और किरण बेदी से भी है.
केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण देने वाला बिल संसद में पेश किया. लोकसभा और राज्यसभा दोनों में ये बिल पास हो गया है. ये संविधान का 124वां संशोधन हुआ है. अब ये राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए जाएगा और मंजूरी के बाद ये कानून बन जाएगा. लेकिन इससे पहले आज 'यूथ फॉर इक्वेलिटी' नाम के एक एनजीओ ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
A petition filed by Youth for Equality in the Supreme Court challenging The Constitution (103rd Amendment) Bill, 2019 that gives 10 % reservation in jobs and education for the economical weaker section of general category.
— ANI (@ANI) January 10, 2019
क्या इस संविधान संशोधन को कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है?
सरकार इस बिल को नवीं अनुसूची में डालने के पक्ष में है जिससे इसे कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सके. नवीं अनुसूची में आने वाले कानून संविधान के अनुच्छेद 31बी के तहत संरक्षण मिलता है. इनकी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती. लेकिन 2007 में 9 सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला दिया था कि 9वीं अनुसूची में आने वाले कानूनों की भी समीक्षा की जा सकती है अगर इनसे किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता हो. फिलहाल ये संविधान संशोधन दोनों सदनों से पास हुआ है. राष्ट्रपति से मंजूरी के बाद इसे नंवी अनुसूची में डालने के लिए फिर से संसद के दोनों सदनों से संशोधन प्रस्ताव पास किया जाएगा.
क्या है यूथ फॉर इक्वेलिटी NGO?
यूथ फॉर इक्वेलिटी जाति आधारित आरक्षण का विरोध करने वाला एक NGO है. साल 2006 में यूपीए सरकार द्वारा एजुकेशनल इंस्टिट्यूट्स में ओबीसी का 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के विरोध में एम्स, आईआईटी, जेएनयू और आईआईएम के स्टूडेंट्स ने मिलकर एक एनजीओ शुरू किया. इस संगठन को किसी राजनीतिक पार्टी का सपोर्ट नहीं था.
यूथ फॉर इक्लिलिटी एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण के विरोध में भी याचिका दायर की थी.
2006 में जेएनयू में हुए स्टूडेंट इलेक्शन में इन लोगों ने एक स्टूडेंट यूनियन के रूप में अपने स्वतंत्र उम्मीदवार खड़े किए लेकिन हार गए. यूथ फॉर इक्वेलिटी एनजीओ ने जाति आधारित रिजर्वेशन के विरोध के लिए अनोखे तरीके अपनाए. इसके लिए उन्होंने सड़क पर जूते पॉलिश करना, बाल काटना और झाडू लगाने जैसे तरीके इस्तेमाल किए. इस एनजीओ को शिव खेड़ा, मंजिंदर सिंह बिट्टा, अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी और प्रह्लाद कक्कड़ जैसी कई जानी-मानी हस्तियों ने सपोर्ट किया. शिव खेड़ा ने 2008 में अपनी पार्टी भारतीय राष्ट्रवादी समानता पार्टी लॉन्च की. इस पार्टी ने 2009 के लोकसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े किए लेकिन वो सफलता प्राप्त नहीं कर सके. इसके बाद भी लगभग हर चुनाव में ये पार्टी अपने उम्मीदवार उतारती है लेकिन कहीं भी अब तक कुछ खास सफलता हासिल नहीं कर सकी है. फिलहाल इस एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य कैटेगिरी के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण के बिल के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली है.
यूथ फॉर इक्विलिटी के प्रेसिडेंट कौशल के मिश्रा ने लल्लनटॉप से बात करते हुए कहा-
हम इस बिल के खिलाफ नहीं हैं. इसमें दो मुख्य पॉइंट हैं. एक आर्थिक आधार पर पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण, इससे हम सहमत हैं. हम आर्थिक आधार पर आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं. दूसरा पॉइंट, यह आरक्षण 50% कोटे के इतर दिया जा रहा है जिससे हम सहमत नहीं हैं. क्योंकि आर्थिक आधार पर ओबीसी में रिजर्वेशन दिया गया है. ओबीसी का मतलब 'अदर बैकवर्ड क्लास' है, 'अदर बैकवर्ड कास्ट्स' नहीं. ऐसे में इन आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को ओबीसी में शामिल किया जाना चाहिए. इसके लिए अलग से बिल नहीं आना चाहिए.
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