ये हैं वो जॉर्ज सोरोस, जिनका नाम लेकर BJP विरोधियों पर गंभीर आरोप लगाती है
जॉर्ज सोरोस (George Soros) के बारे में एक धारणा है कि वो अपनी संस्था ओपन सोसायटी फाउंडेशन (OSF) से उन्हीं संस्थाओं को दान देते हैं, जिन्हें प्रगतिशील और उदारवादी विचारधारा का माना जाता है.
देश की संसद में पक्ष और विपक्ष दो उद्योगपतियों के नाम पर बंट गए हैं. एक हैं स्वदेशी बिजनेसमैन गौतम अडानी. और दूसरे हैं परदेसी बिजनेसमैन जॉर्ज सोरोस. विपक्ष वाले आरोप लगा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार से गौतम अडानी की “सांठगांठ” चल रही है. कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियां गौतम अडानी पर लगे हालिया आरोपों की जांच करने की मांग कर रही हैं. वहीं सत्ता पक्ष के लोग आरोप लगा रहे हैं कि जॉर्ज सोरोस के सहयोग से कांग्रेस पार्टी देश को “अस्थिर करने” का काम कर रही है. लेकिन ये जॉर्ज सोरोस कौन हैं? और उनका नाम संसद में क्यों उछल रहा है?
सोरोस की कहानीसाल 1930 - हंगरी के बुडापेस्ट में जॉर्ज सोरोस का एक यहूदी परिवार में जन्म हुआ. दूसरे विश्वयुद्ध के समय हिटलर की नाजी सेना ने हंगरी पर कब्ज़ा किया. इस दौरान सोरोस के परिवार ने नाम और पहचान छुपाकर जान बचाई. साल 1947 में सोरोस ने यूनाइटेड किंगडम में शरण ली और फिलॉसोफी की पढ़ाई शुरू की. कुछ सालों तक बैंकों में नौकरी की.
साल 1969 में सोरोस ने ‘डबल ईगल’ नाम की hedge फंड कंपनी स्थापित की. इस कंपनी का काम - बाजार में पैसे लगाकर मुनाफा कमाना था. डबल ईगल से ताबड़तोड़ मुनाफा कमाकर सोरोस ने साल 1970 में एक और hedge फंड कंपनी 'सोरोस फंड मैनेजमेंट' स्थापित कर दी.
साल 1973 - सोरोस ने अपनी पहली कंपनी से इस्तीफा दिया, और दूसरी कंपनी के विस्तार में ध्यान लगाया.
साल 1979 - सोरोस की कुल संपत्ति 100 मिलियन डॉलर यानी तब के 81.7 करोड़ रुपये के आसपास पहुंच चुकी थी. इसी साल सोरोस ने Open Society Foundation (OSF) की नीव रखी. ध्येय - सोरोस की कमाई से लोकोपकारी कार्य किए जाएं. सबसे पहले साउथ अफ्रीका के अश्वेत समाज के लिए स्कॉलरशिप शुरू की गई. खबरों के मुताबिक, अपनी निवेश फर्म से होने वाली कमाई को सोरोस ने OSF की मदद से फिलेंथ्रोपी के जरिए दुनिया भर की तमाम संस्थाओं, राजनीतिक पार्टियों और संगठनों में वितरित किया है.
सोरोस अमेरिका में रहने वाले दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों में एक हैं. वो 7.2 बिलियन डॉलर यानी 61 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक बताए जाते हैं. जबकि उन्होंने 32 बिलियन डॉलर यानी 2 लाख 66 हजार करोड़ रुपये की राशि OSF को दान की है. ये तो सोरोस का कामधाम हो गया.
लेकिन सोरोस के जीवन का एक और पहलू है, जिस वजह से उन्हें राजनीतिक बहसों में घसीटा जाता है. ये है उनका राजनीतिक झुकाव, और भारत की नरेंद्र मोदी सरकार को लेकर उनका नजरिया. सोरोस के बारे में एक धारणा है कि वो OSF से उन्हीं संस्थाओं को दान देते हैं, जिन्हें प्रगतिशील और उदारवादी विचारधारा का माना जाता है.
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका में साल 2004 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में सोरोस ने लाखों डॉलर कुछ ऐसे ग्रुप्स को दिए थे, जो चाहते थे कि रिपब्लिकन पार्टी के जॉर्ज बुश राष्ट्रपति न चुने जाएं, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. साल 2012 में सोरोस ने फिर से लाखों डॉलर बराक ओबामा के चुनावी कैम्पेन में लगाये थे, वहीं साल 2016 में हिलरी क्लिंटन के कैम्पेन में. ये दोनों ही नेता वहां की डेमोक्रैटिक पार्टी से जुड़े हुए हैं.
अमेरिका के अलावा मिडिल ईस्ट, इजरायल, यूरोप और अफ्रीकी इलाकों में ऐसे NGOs और संगठनों में भी सोरोस के पैसे लगे हैं.
जॉर्ज सोरोस एकाधिक बार भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में टिप्पणी कर चुके हैं. साल 2020. स्विट्ज़रलैंड के शहर दावोस में World Economic Forum (WEF) आयोजित हुआ था. यहां सोरोस ने अपना भाषण शुरू किया और नरेंद्र मोदी पर हमला किया. उन्होंने कहा,
"दुनिया भर में जो राष्ट्रवाद का उदय हो रहा है, वो मुक्त समाज के लिए एक खतरा है. सबसे बड़ा और भयावह अध्याय भारत में घटा है. कश्मीर जैसे मुस्लिम बहुल और सेमी-ऑटोनॉमस राज्य में कठोर नियम लगाना, और करोड़ों मुस्लिमों को उनकी नागरिकता से वंचित करने जैसी कार्रवाइयों से लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए नरेंद्र मोदी एक हिंदू राष्ट्रवादी देश बना रहे हैं.”
फिर साल 2023 में भी ऐसा ही हुआ. जर्मनी के Technical University of Munich (TUM) में सोरोस भाषण दे रहे थे. कुछ ही दिनों पहले हिंडनबर्ग रिसर्च ने उद्योगपति गौतम अडानी के खिलाफ रिपोर्ट जारी की थी. इसका ज़िक्र करते हुए सोरोस ने कहा था,
“मोदी इस विषय पर चुप हैं. लेकिन उन्हें विदेशी निवेशकों के सामने, साथ ही संसद में इस मुद्दे पर जवाब देना होगा. ये घटना भारत सरकार पर नरेंद्र मोदी की पकड़ को कम करेगी. और भारत में जरूरी सांस्थानिक सुधारों का रास्ता खोलेगी.”
जब-जब सोरोस ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों से आरोप लगाए, तो भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और केंद्र सरकार के मंत्रियों ने भी पलटवार किया. फरवरी 2023 में TUM में जब सोरोस ने हमला किया, तो विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उन्हें “बूढ़ा, अमीर, विचारबद्ध और खतरनाक” करार दिया था. इसके अलावा, भाजपा नेताओं ने सोरोस पर इल्जाम लगाए हैं कि वो भारत में “सत्ता परिवर्तन” करवाना चाहते हैं.
ऐसे में कांग्रेस पार्टी से जुड़े नेताओं ने उद्योगपति गौतम अडानी और पीएम नरेंद्र मोदी के बीच सांठगांठ के आरोप लगाए, या संसद में अडानी पर चर्चा की मांग की. तब सत्ता पक्ष के नेताओं को ये कहने का बहाना मिल गया कि कांग्रेस पार्टी जॉर्ज सोरोस की लाइन पर बात कर रही है. लेकिन 9 दिसंबर को संसद के दोनों सदनों में जो हुआ, उसकी पृष्ठभूमि एक दिन पहले ही तैयार हो गई थी.
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8 दिसंबर के दिन भाजपा ने एक्स पर एक पोस्ट लिखी. इस पोस्ट में कहा गया था कि कांग्रेस की राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी एक NGO की सहनिदेशक हैं. NGO का नाम - FDL-AP Foundation यानी Forum for Democratic Leaders in the Asia Pacific. भाजपा ने ट्वीट लगाकर ये भी आरोप लगाये कि इस NGO को सोरोस फाउंडेशन से पैसा मिलता है.
एक और पोस्ट में भाजपा ने आरोप लगाया कि सोनिया गांधी की अध्यक्षता में चल रहे राजीव गांधी फाउंडेशन में भी सोरोस के OSF का पैसा लगा है. वहीं, एक अन्य पोस्ट में इल्जाम लगाये - OSF के वाइस-प्रेसिडेंट सलिल शेट्टी ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शिरकत की थी.
भाजपा ने ये भी कहा कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने गौतम अडानी पर जो प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, उसका लाइव लिंक OCCRP (ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट) नामक NGO ने शेयर किया था. भाजपा ने कहा कि OCCRP के पीछे भी सोरोस ने पैसा लगाया है.
OCCRP दुनियाभर के खोजी पत्रकारों की एक संस्था है. इसी संस्था ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में गौतम अडानी और उनके समूह पर स्टॉक मैनिपुलेशन और कई तरह की अनियमितताओं के आरोप लगाए थे. हालांकि, ये सार्वजनिक तथ्य है कि OCCRP की फंडिंग का एक हिस्सा जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसायटी फाउंडेशन से आता है.
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