'मुझे अपनी बच्चे के लिए डर लग रहा था. वो कैसे पलों से गुजरी होगी (गुजरा होगा).मुझे उस पर गर्व है कि वो सच्चाई के साथ जी रही थी. मुझे खुशी थी कि उसने अपनाएहसास बांटने के लिए मुझे चुना. वो मेरे सवालों के साथ बेहद सहज थी. हमारे बीच जोनहीं बदला वो प्यार था. वो मेरी बच्ची थी. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वोट्रांसजेंडर थी. हालांकि मुझे उसकी सुरक्षा के लिए चिंता हो रही थी लेकिन मेराप्यार बेहद मजबूत था.' ये एहसास बांटे हैं अमेरिका के पोर्टलैंड शहर में रहने वालीडेनिता ली ने, जब उन्हें पता चला कि उनका बेटा ट्रांसजेंडर है. 'ठीक इसी समय मैं कईएहसासों से गुजर रही थी. मुझे ये सब अकेले सहना पड़ रहा था. मैंने इंटरनेट पर तमामचीज़ें पढ़ीं और जानकारियां जुटाईं. दूसरे अभिभावकों के अनुभव पढ़े. जे खुदजानकारियों का जरिया बन गई थी. रिश्तेदारों ने कई तरह से रिएक्ट किया. ज्यादातर लोगसवाल कर रहे थे लेकिन साथ ही जे से प्यार भी कर रहे थे. जे तो जे थी. स्मार्ट, फनीऔर कूल.'(सोर्स: कोरा)अब ज़रा सोचिए क्या होता अगर भारत के किसी बड़े शहर में कोई लड़का अपनी मां से अपनेट्रांसजेंडर होने की बात साझा करता. गांव की तो बात ही छोड़ दीजिए. वहां तो तुरंतझाड़-फूंक करने वाले बाबाओं को बुला लिया जाता. घर से निकाल दिया जाता. यापीट-पीटकर 'सुधारने' की कोशिश करते. या उससे भी बुरा, उसे मार डालते.'मैंने बताया तो मेरी शादी करा दी'शालिनी (बदला हुआ नाम) ने जब अपने पिता से खुद के ट्रांसजेंडर होने के बारे मेंबताया तो उनके पिता ने उन्हें 'सुधारने' के लिए एक रास्ता निकाला. शालिनी केमुताबिक उनका ख्याल था कि मैं उनके निकाले रास्ते से सुधर जाऊंगी. 'मैं उन्हें यहबात समझा नहीं पाई कि पप्पा, मैं बिगड़ी हुई कहां हूं? मैं तो आप की ही औलाद हूं.मैं जैसी भी हूं, उसमें मेरा क्या कसूर? पप्पा का मानना था कि मुझ पर कोई भूत सवारहै जो मेरी शादी करने से उतर जाएगा. ज़बरदस्ती मेरी शादी करा दी गई. 23 साल की उम्रमें. मुझे यह कहने में कोई शर्म नहीं कि मैं उस लड़की को शारीरिक सुख नहीं दे पाई.लगभग सवा साल बाद मेरे पिता का स्वर्गवास हुआ, उसके बाद मैंने अपनी तथाकथित पत्नीसे तलाक लेकर उसकी शादी करा दी.'पिता ने मुझे मारा और घर से निकाल दियाडांसर और कोरियोग्राफर सौंदर्या बताती हैं, मेरे पिता ने मुझसे कहा कि मैंने उन्हेंशर्मिंदा किया है. अगर मैं घर पर रही तो वे जान दे देंगे. 12 साल की उम्र में मुझेघर से निकाल दिया. मैं 12 दिन तक सड़कों पर रही, रिक्शा स्टैंड पर सोई. जब मैंउम्मीद के साथ फिर घर पहुंची, किसी ने मुझसे नहीं पूछा कि मैं कहां, किस हाल मेंरही. मेरे पिता ने मुझे मारा और घर से निकल जाने को कहा. सौंदर्या एक भीख मांगनेवाले रैकेट में फंसीं. वहां से किसी तरह भागने में सफल रहीं. हालांकि बाद में रैकेटचलाने वालों ने उन्हें पकड़ लिया और खूब मारा. खून से लथपथ सौंदर्या को वे सड़क परछोड़कर चले गए. 2009 में वे ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए लड़ने वाली एक्टिविस्ट,अभिनेत्री और व्यवसायी कल्कि सुब्रमण्यम से मिलीं. और जीवन में पहली बार अपनी पहचानके बारे में कुछ सकारात्मक सुना. कल्कि ने उन्हें समझाया, ‘तुम्हें जीने के लिए भीखमांगने या सेक्स वर्कर बनने की जरूरत नहीं है. हम तुम्हारे लिए कुछ और ढूंढ लेंगे.(सोर्स: तहलका)जबरन दाढ़ी-मूंछ रखनी पड़ीमैं जब तीसरी-चौथी क्लास में थी, तब से मुझे सजना-संवरना और आईने के सामने खड़ेहोकर खुद को घंटों निहारना पसंद था. एक दिन लड़की की ड्रेस पहनकर मम्मी की लिपस्टिकलगाकर नाच रही थी कि पिताजी ने देख लिया और फिर जमकर पिटाई हुई. वह खुद को अंदर सेलड़की मान चुकी थीं, लेकिन घरवालों के दबाव में 30 साल की उम्र में उन्हें जबरनमूंछ-दाढ़ी रखकर पुरुष के रूप में रहना पड़ा. ये अनुभव है विद्या का.(सोर्स: भास्कर)*** ट्रांसजेंडर यानी किन्नरों की कई बातें छिपा कर रखी जाती हैं. तमाम राज हैंजिनसे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. इस समुदाय के इतिहास में खास दौर अप्रैल 2014में आया जब हाईकोर्ट ने ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी और‘अन्यपिछड़ा वर्ग’(ओबीसी) में शामिल किया. पहले तो भारत जैसे देश में खुद को समझ पाना हीमुश्किल है. क्योंकि हमें दूध के साथ घोलकर पिला दिया जाता है कि हम क्या हैं.बची-खुची कसर ये पढ़ाकर पूरी कर दी जाती है कि हमें क्या होना चाहिए. और इन सबकेबाद अगर गलती से किसी को अपने कुछ अलग होने का एहसास हो जाए तो उस पर थोप दी जातीहैं समाज के 'चार' लोगों की सोच. उन चार लोगों से छुट्टी मिल जाए तो मां-बाप की नाकबीच में आ जाती है. हमारे यहां कहते हैं कि किन्नरों की बद्दुआ इसलिए नहीं लेनीचाहिए क्योंकि ये बचपन से बड़े होने तक दुखी ही रहते हैं. ऐसे में दुखी दिल की दुआऔर बद्दुआ लगना स्वाभाविक है. अहम बात ये है कि 2014 से पहले इन्हें समाज में नहींगिना जाता था. अब भी इनके साथ हुए बलात्कार को बलात्कार नहीं माना जाता है. ऐसे मेंकोई कैसे खुद को ट्रांसजेंडर मान सकेगा और मान भी ले तो किसी से कह सकेगा. हम अभीलड़के-लड़की के प्यार को पचाने जितना हाजमा नहीं बना पाए, ट्रांसजेंडर तो...--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ें:मां औरत ही नहीं, ट्रांसजेंडर भी हो सकती हैएक ट्रांसजेंडर को पेशाब आए तो वो किस बाथरूम में जाए?LGBTQ 4: 'ए मुझे हाथ नहीं लगाना कोई''मैं दिखने में अलग थी, मेरी आवाज अलग थी इसलिए मुझे एग्जाम में सेलेक्ट नहीं कियागया'