The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • What is joint parliamentary co...

JPC क्या है? वक्फ कानून में संशोधन वाले बिल के साथ वहां क्या होगा?

लोकसभा में भारी विरोध के बीच किरेन रिजिजू ने वक्फ (संशोधन) बिल, 2024 का बचाव किया और कहा कि विपक्ष लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है.

Advertisement
Joint parliamentary committee
8 अगस्त को लोकसभा में वक्फ (संशोधन) बिल, 2024 पेश किया गया था. (फोटो- पीटीआई)
pic
साकेत आनंद
8 अगस्त 2024 (Updated: 8 अगस्त 2024, 21:18 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

विपक्षी पार्टियों के विरोध के बीच केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) बिल, 2024 को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजने की सिफारिश की है. केंद्रीय संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने 8 अगस्त को लोकसभा में इस संशोधन बिल को पेश किया. बिल के पेश होते ही विपक्षी सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया. विपक्ष का कहना है कि ये बिल संविधान पर हमला है और इससे मुसलमानों को टारगेट किया जा रहा है. सांसदों ने इस बिल को तुरंत वापस लेने की मांग की.

वक्फ कानून, 1995 में सुधार के दावों के साथ लाया गया ये संशोधन विधेयक पिछले कई दिनों से विवादों में है. सरकार का दावा है कि इस कानून में लंबे समय से बदलाव की मांग हो रही थी. बदलाव के जरिये राज्यों के वक्फ बोर्ड में मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुस्लिमों को शामिल किए जाने प्रावधान है. इसके अलावा मौजूदा कानून की धारा-40 को खत्म करने का भी प्रावधान है. कोई संपत्ति वक्फ बोर्ड की संपत्ति होगी, इस धारा के तहत ही बोर्ड को फैसला लेने की शक्ति दी गई है.

किरेन रिजिजू ने क्या कहा?

लोकसभा में भारी विरोध के बीच किरेन रिजिजू ने बिल का बचाव किया और कहा कि विपक्ष लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने कहा कि संविधान से ऊपर कोई कानून नहीं हो सकता है. रिजिजू ने दलील दी कि कुछ लोगों ने वक्फ पर कब्जा किया हुआ है और कहा कि किसी का हक छीना नहीं जा रहा है बल्कि जिनको अभी तक कुछ नहीं मिला, उनको दिया जाएगा.

रिजिजू ने कहा, 

“इस बिल में जो भी प्रावधान हैं, आर्टिकल 25 से लेकर 30 तक किसी रिलीजियस बॉडी का जो फ्रीडम है, उसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा रहा है. न ही संविधान के किसी भी अनुच्छेद का इसमें उल्लंघन किया गया है. इस विधेयक से किसी भी धार्मिक संस्था की स्वतंत्रता में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा.”

हालांकि अपना पक्ष रखने के बाद उन्होंने बिल को जेपीसी के पास भेजने की सिफारिश की. रिजिजू ने कहा, 

"आज हम खुले दिल से कह रहे हैं. आपने अनुरोध किया. पूरे सदन ने कहा कि इस बिल पर और चर्चा होनी चाहिए. स्क्रूटनी होनी चाहिए. हम इसके लिए भाग नहीं रहे, क्योंकि हमारी मंशा साफ है. इसलिए इस बिल को ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी बनाकर वहां भेजा जाए. ताकि वहां इस पर विस्तार से चर्चा हो. भविष्य में हम खुले मन से आपके सुझावों को सुनेंगे."

क्या है JPC?

अब इस बिल पर चर्चा के लिए स्पीकर ओम बिरला एक संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी का गठन करेंगे. इस कमेटी में सत्ताधारी और विपक्षी दलों के सांसदों को शामिल किया जाता है.

संसद में मुख्य रूप से दो तरह की समितियां होती हैं. 1. स्थायी समिति यानी स्टैंडिंग कमेटी 2. तदर्थ समिति यानी एडहॉक कमेटी. स्टैडिंग कमेटी वो होती हैं, जिनका गठन समय-समय पर संसद के अधिनियम की प्रक्रिया और कार्य-संचालन नियम के हिसाब से किया जाता है. इन कमेटियों का कार्य अनवरत प्रकृति का होता है. यानी काम चलता रहता है.

वहीं, कई समितियां तय समय सीमा के लिए गठित की जाती हैं. एडहॉक कमेटी वो होती हैं, जो किसी बिल या मुद्दे की जांच या विशेष प्रयोजन के लिए बनाई जाती हैं. जब ये कमिटी अपनी रिपोर्ट जमा कर देती हैं, तब उनका अस्‍तित्‍व समाप्‍त हो जाता है. JPC भी इसी श्रेणी में आती है.

> इसमें राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदनों के सदस्य शामिल किए जाते हैं.
> किसी भी मामले में JPC गठित करने के लिए बाकायदा संसद के एक सदन द्वारा प्रस्ताव पारित किया जाता है.
> दूसरे सदन द्वारा इस पर सहमति ली जाती है. JPC गठित होने के बाद सांसदों की टीम मामले की पूरी जांच करती है.
> पार्टियां अपने सदस्यों के नाम जेपीसी के लिए आगे बढ़ाती हैं और फिर उन्हें अप्रूव किया जाता है.

JPC में सदस्यों की संख्या तय नहीं होती है. सदस्यों की संख्या उस दल की ताकत के हिसाब से देखी जाती है. यानी अगर आज किसी मामले में JPC गठित होती है तो उसमें सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बीजेपी के सबसे ज्यादा सदस्य होंगे. लोकसभा स्पीकर ही कमिटी के अध्यक्ष को चुनते हैं. ज्यादातर समय ये जिम्मा सत्ताधारी पार्टी के सांसद हो ही मिलता है.

ये भी पढ़ें- वक्फ आखिर है क्या? शुरुआत कैसे हुई? और वक्फ बोर्ड एक्ट में बदलाव पर बवाल क्यों मचा है?

JPC गठित हो गई तो उसे मामले की गहनता से जांच के लिए विशेषाधिकार मिल जाते हैं. इनका इस्तेमाल कर वो जरूरी जानकारी हासिल कर सकती है. जेपीसी, एक्सपर्ट, सरकारी संस्थाओं और विभागों से जानकारियां हासिल कर सकती है.

जेपीसी और अन्य समितियों की सिफारिशों के आधार पर की गई कार्रवाई पर सरकार को संसद में रिपोर्ट पेश करनी होती है. किसी मुद्दे की जांच में अगर सबूत जुटाने के लिए मामले से जुड़े व्यक्ति को कमिटी बुलाना चाहे तो उसे पेश होना होता है. पेश नहीं होने पर उसे संसद की अवमानना मानी जाती है.

वहीं, बिल से जुड़े मसलों पर ये कमिटी एक्सपर्ट से सुझाव लेती है. सुझावों या आपत्तियों को कमिटी अपनी रिपोर्ट में शामिल कर सकती है.

कमिटी के सुझाव सरकार के लिए सलाह के तौर पर होते हैं. जरूरी नहीं कि सरकार उसे माने ही. चूंकि कमिटियों में ज्यादातर सांसद और अध्यक्ष सत्ताधारी पार्टी के होते हैं, इसलिए अक्सर सुझाव मान लिए जाते हैं.

वीडियो: 'कुछ अधिकार आपके भी छीने...', वक्फ बोर्ड पर संसद में भिड़े अखिलेश और अमित शाह, स्पीकर को क्या कहा?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement