प्यार में इंसान क्या-क्या नहीं कर जाता. एक थे बिहार के दशरथ मांझी जिन्होंने बीवीके लिए पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया, और एक हैं कल्पनाथ सिंह जिन्होंने बीवी के लिएघाट बनवा दिया.कल्पनाथ सिंह जो मूल रुप से बिहार के छपरा के रहनेवाले है. लेकिन 1962 में पत्नी केसाथ मध्यप्रदेश के कटनी आकर बस गये. कल्पनाथ कटनी में ऑर्डीनेंस फैक्ट्री मेंआर्मेचर वेंडर की जॉब करते थे. कल्पनाथ की पत्नी सुशीला सिंह भी बिहार से थी और हरसाल छठ पूजा में बिहार चली जाती थी, क्योंकि कटनी में उनके घर के आस-पास कोई घाटनहीं था. और कल्पनाथ को बीवी से इतना प्यार था कि वे सुशीला को एक दिन के लिए भीकहीं जाने नहीं देना चाहते थे.फिर क्या था. उन्होंने सिमरार नदी पर पत्नी के लिए घाट बनवा दिया.घाट बनाना इतना आसान भी न था. कल्पनाथ ने पहले जंगल झाड़ियों को काटकर चलने लायकपगडंडी बनाई, फिर सिमरार नदी पर पत्थर रखकर छोटा सा घाट बना दिया. पूरे जिले में ये घाट सुशीला और कल्पनाथ के प्रेम के प्रतीक के रुप में प्रसिद्ध है.मगर सुशीला की 2013 में मौत हो गई.एक दशरथ मांझी हुआ थाबिहार का ये कोई पहला किस्सा नहीं है.बिहार के गया के गलहौर गांव में 22 साल कीमेहनत के बाद दशरथ मांझी ने पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया.बीवी फाल्गुनी देवी कीमौत के बाद दशरथ मांझी ने जिद में रास्ता बना दिया.जिसकी वजह से पूरी दुनिया दशरथमांझी को 'माउंटेन मैन' के नाम से जानती है. इनके ऊपर बहुत सारी डॉक्यूमेंट्री और'मांझी, द माउंटेन मैन' के नाम से फिल्म भी बन चुकी है.दशरथ मांझीभागलपुर का ताज महलआगरा वाले ताजमहल को तो सब जानते हैं, लेकिन एक ताजमहल बिहार के भागलपुर में भी है.और इसे बनवाया है डॉक्टर नजीर आलम ने.हुस्न बानो का मक़बरानजीर और उनकी पत्नी हुस्न बानो 4 साल पहले हज करने गये थे. वहां से लौटकर दोनें केबीच ये तय हुआ कि जो सबसे पहले मरेगा उसका मकबरा घर के आगे बनेगा. 2015 में हुस्नबानो की मौत हो गई. बीवी के मौत के 2 महीने बाद ही डॉक्टर नजीर अपना वादा पूरा करनेमें लग गये. 2 साल की मेहनत और 35 लाख की लागत से बने इस मकबरा को देखने आज लोगदूर-दूर से आते हैं. मकबरे में टाइल्स, मार्बल, ग्रेनाइट पत्थर, शीशा स्टील से लेकरलाइटिंग का बेहतरीन काम किया गया है. मकबरे के बनाने के लिए गुजरत से करीगर बुलायागया था.क्योंकि दिल है बिहारीप्यार को लेकर बिहारियों में किसी हद तक सनक है इसका एक और उदहारण हैं 40 साल केतपेश्वर सिंह. जिन्होंने 9 महीने तक साइकिल चलकर अपनी खोई बीवी बबीता को ढूंढनिकाला.तपेश्वर बिहार से हैं लेकिन मेरठ में मजदूरी करते हैं. वहीं उनकी मुलाकात से बबीताहुई. जिसे मां-बाप छोड़कर चले गये थे. बबीता की दिमागी हालत भी ठीक नहीं थी, फिर भीतपेश्वर ने बबीता से शादी कर ली. एक दिन अचानक कोई बबीता को बहला-फुसलाकर लेकर चलागया. जिसके बाद तपेश्वर ने पुलिस से मदद मांगी लेकिन जब वहां से कोई मदद नहीं मिलीतो तपेश्वर खुद ही साइकिल लेकर निकल पड़े. साइकिल के आगे-पीछे उन्होंने बबीता कीतस्वीर के साथ गुमशुदा का पोस्टर लगाया और 9 महीने तक भूखे-प्यासे भटकते रहे.आखिरकार बबीता उन्हें हल्द्वानी में मिल गई.तपेश्वर सिंहजाते जाते साहिर लुधियानवी ने कुछ ताजमहल पर लिखा था. पढ़ते जाइए.मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे...ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा ये महलये मुनक़्क़श दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले करहम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़-------------------------------------------------------------------------------- ये भी पढ़ें:एक कविता रोज: 'साला बिहारी, चोर, चीलड़, पॉकेटमार'हमरे विलेज में कोंहड़ा बहुत है, हम तुरब तू न बेचबे की नाही