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उत्तरकाशी सुरंग हादसा: मशीनें फेल हुईं तो मैनुअल ड्रिलिंग चालू, कब तक निकलेंगे मजदूर?

एक के बाद एक ड्रिलिंग मशीनें खराब होती जा रही हैं. मलबे को काटने के लिए मैनुअल ड्रिलिंग हो रही है. सेना भी ऑपरेशन में शामिल हो गई है.

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uttarkashi tunnel collapse update 19 metres vertical drilling completed indian army joined rescue operation
रेस्क्यू ऑपरेशन में सेना भी शामिल (फोटो- ANI/इंडिया टुडे)
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ज्योति जोशी
27 नवंबर 2023 (Published: 08:38 IST)
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उत्तरकाशी टनल हादसे को 15 दिन पूरे हो चुके हैं (Uttarkashi Tunnel Accident). 41 मजदूर अब तक वहीं फंसे हैं. मलबे के सामने कोई ड्रिलिंग मशीन टिकी नहीं तो मैनुअल ड्रिलिंग का काम शुरू किया गया. सामने से मलबा हटाने के साथ ही वर्टिकल ड्रिलिंग का काम भी शुरू हो गया है. एक साथ दो तीन वकल्पों पर काम हो रहा है. भारतीय सेना भी रेस्क्यू टीम के साथ जुट गई है.

खबर है कि बचावकर्मियों को एक और चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. मौसम वैज्ञानिकों ने 26 नवंबर से 28 नवंबर के बीच बारिश होने का अनुमान जताया है.

बता दें, 25 नवंबर को मलबे को ड्रिल कर रही 25 टन की ऑगर मशीन टूट गई. इससे काम और बढ़ गया. बचावकर्मियों को ड्रिल के ब्लेड काटकर टुकड़े-टुकड़े कर निकालना पड़ा. ड्रिल ब्लेड को काटने और निकालने के लिए 26 नवंबर को हैदराबाद से प्लाज्मा कटर लाया गया. तय हुआ कि मलबे को काटने के लिए मैनुअल ड्रिलिंग की जाएगी. मैनुअल ड्रिलिंग माने आदमी के हाथ का काम. मलबा हटाने का काम पूरी तरह इंसानो पर निर्भर होगा.

इसके साथ ही 26 नवंबर को वर्टिकल ड्रिलिंग का काम भी शुरू किया गया. इस ऑपरेशन के तहत मजदूरों को सुरंग के ऊपर से रास्ता बनाकर निकाला जाएगा. 

राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड (NHIDCL) के प्रबंध निदेशक महमूद अहमद ने 26 नवंबर को मीडिया से बातचीत में कहा,

अब हमने दो-तीन विकल्पों पर एक साथ काम करना शुरू कर दिया है. लगभग 19.2 मीटर की वर्टिकल ड्रिलिंग पूरी कर ली गई है. हमें कुल 86 मीटर तक ड्रिलिंग करनी है. हमने इसके लिए चार दिनों का समय रखा है. उम्मीद है कि 30 नवंबर तक काम पूरा हो जाए. आगे कोई बाधा नहीं आएगी तो काम समय पर पूरा हो जाएगा.

सुरंग के सामने की तरफ से यानि हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग में 60 में से 47 मीटर का रेस्क्यू टनल बना लिया गया है. वहीं वर्टिकल ड्रिलिंग में 86 में से 19 मीटर तक रास्ता बन गया है. 

ऑपरेशन में हो रही देरी को लेकर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण NDMA के मेंबर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन ने एक प्रेस कॉन्फेरेंस में कहा था,

याद रखें कि ये ऑपरेशन एक युद्ध की तरह है. इस तरह के ऑपरेशनों को टाइमलाइन नहीं दी जानी चाहिए. इससे टीम पर भी प्रेशर बनता है. युद्ध में हम नहीं जानते कि दुश्मन कैसे प्रतिक्रिया देगा. यहां हिमालय का भूविज्ञान हमारा दुश्मन है. सुरंग किस एंगल से गिरी है कोई नहीं जानता.

बीते 12 नवंबर को उत्तराखंड की निर्माणाधीन सिल्क्यारा सुरंग का एक हिस्सा ढह गया था. तब से ही वहां बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के 41 मजदूर फंसे हुए हैं. दो हफ़्ते से लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है.

वीडियो: उत्तरकाशी टनल रेस्कयू में ड्रिलिंग मशीन से नहीं बना काम, अब होगी मैनुअल ड्रिलिंग

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