दिखने में सामान्य सी फोटो है. कुछ लोग सड़क किनारे बैठकर खाना खा रहे हैं. खा सकतेहैं, खाते ही हैं. देश की बड़ी आबादी को खाना ऐसे ही नसीब होता है. लेकिन, इस फोटोमें खाना खा रहा एक आदमी सामान्य नहीं है. देखने में कुछ-कुछ अंग्रेज जैसा है. छोटीसे लेकर बड़ी जगहों पर दिखता रहता है. पहले इसकी कुछ बातों पर गौर करिए, जिसे येआदमी समय-समय पर कहता रहता है.1. किसी भी इकॉनमी का पूरी तरह से कैशलेस होना संभव नहीं है.आइडिया है लेस कैश.इससे आम लोगों को बहुत फायदा नहीं होने वाला है.2. लोग कैश में काला धन कभी कभार ही रखते हैं.3. यह दावा करना कि भारत देश की स्थिति बुनियादी तौर पर बदल चुकी है, एक बड़ी भूलहोगी. (देश में सुविधाएं बढ़ने के मामले में)4. सार्वजनिक सुविधाओं के समानतापूर्ण और कारगर वितरण के मामले में कुछ राज्यों,मिसाल के लिए तमिलनाडु, का रिकार्ड बहुत अच्छा है तो कुछ राज्य, जैसे उत्तरप्रदेश,इस मामले में ‘हम नहीं सुधरेंगे’की नज़ीर पेश करते हैं.5.अगर गुजरात 'मॉडल' है, तो केरल-तमिलनाडु 'सुपर मॉडल' हैंगरीबों के साथ सड़क पर बैठ जो आदमी खाना खा रहा है, वो यही है.6. खाद्य सुरक्षा कानून देर से लागू होने के बावजूद इसका फायदा आधे-अधूरे तरीक़े सेलोगों को मिल पा रहा है. जबकि सूखे की वजह से लोगों की परेशानी पहले से बढ़ी है.7. अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ झारखंड सरकार के हालिया कार्यों जैसे, इस विज्ञापन काप्रकाशन और बूचड़खानों पर कार्रवाई को देखकर मुझे लगता है कि राज्य की नीतियांआरएसएस की विचारधारा से प्रभावित हैं.8. तकलीफ मुझे नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को है.9. चलन अब भी 'जो है सो है' वाला ही प्रतीत होता है और यह चलन भारी कठिनाई झेल रहेऔर जानोमाल का नुकसान उठा रहे लोगों को आगे और गरीबी के जाल में धकेलने वाला साबितहो रहा है.10.जब तक केंद्र सरकार यह नहीं मान लेती कि मनरेगा में और ज़्यादा रकम लगाने कीज़रूरत है, मनरेगा में रोजगार सृजन को एक बार फिर सिकुड़ना ही है या फिर मजदूरी केभुगतान को कुछ समय के लिए टालना पड़ेगा.मनरेगा की ड्राफ्टिंग ज्यां ने ही की थी.इस शख्स का नाम है ज्यां द्रेज. यूपीए यूपीए शासनकाल के दौरान ये नेशनल एडवाइजरीकमिटी के मेंबर थे. कांग्रेस सरकार की जो सबसे महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा कीड्रॉफ्टिंग इसी शख्स ने की थी. देश में अब तक के महत्वपूर्ण कानूनों में से एक मानेजाने वाले आरटीआई कानून को लागू करवाने में भी ज्यां द्रेज की भूमिका रही है.देश-दुनिया के अच्छे अर्थशास्त्रियों में गिने जाते हैं. फिलहाल रांची यूनिवर्सिटीमें पढ़ाते हैं और दिल्ली यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर हैं.जंतर-मंतर पर धरने में ज्यां ने भी आम लोगों की तरह दो ही रोटी खाई थी. (फोटोक्रेडिट: दीपक यात्री, ईश्वर)इस तस्वीर को खींचने वाले हैं दीपक यात्री. तारीख है 14 सितंबर और जगह है दिल्ली काजंतर-मंतर. दीपक पेशे से स्वतंत्र पत्रकार और फोटोग्राफर हैं. दी लल्लनटॉप सेबातचीत में दीपक बताते हैं कि जंतर-मंतर पर मनरेगा वालों का धरना चल रहा था. दीपकऔर उनके साथी ईश्वर भी वहां मौजूद थे. धरना 11 से 15 सितंबर तक का था, जिसके लिएछत्तीसगढ़ से भी लोग आए थे. धरने के दौरान लोग अपनी मांगों को लेकर अपने तरीके सेविरोध प्रदर्शन कर रहे थे. 14 सितंबर की दोपहर थी. इसी वक्त किसी गुरुद्वारे सेप्रदर्शनकारियों के लिए एक गाड़ी में खाना आ गया. लोग भी वहां खाने के लिए बैठ गए.अचानक से अंग्रेज से दिखने वाले इस शख्स ने किसी से एक कटोरा मांगा और उन्हीं केसाथ खाने बैठ गया. दीपक जैसे कुछ लोगों ने ज्यां को पहचान लिया और उन्हें भरपेटखाना खिलाने की कोशिश की. दीपक के शब्दों में ज्यां का जवाब था: यहां प्रदर्शन कररहे लोगों के लिए खाने को सिर्फ दो ही रोटियां मिल रही हैं. मैं भी सिर्फ दो हीरोटी खाऊंगां. दीपक ने उसी वक्त अपने मित्र ईश्वर से कैमरा मांगा और ज्यां की तीनतस्वीरें खींचीं, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं.इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के जीबी पंत सोशल साइंस में विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं. उसवक्त भी ज्यां झूंसी से यूनिवर्सिटी तक साइकिल से ही आते जाते थे. साइकल चलाते हुएहमें इनकी अच्छे रेजेल्यूशन में फोटो न मिल सकी. ज्यां द्रेज 1959 में बेल्जियम में पैदा हुए थे. पिता जैक्वेस ड्रीज अर्थशास्त्रीथे. ज्यां 20 साल की उम्र में भारत आ गए. 1979 से भारत में ही रह रहे हैं. भारत कीनागरिकता उन्हें 2002 में मिली. इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिच्यूट, नई दिल्ली सेअपनी पीएचडी पूरी की है. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्ससहित देश-दुनिया की कई यूनिवर्सिटी में पिछले 30 साल से विजिटिंग लेक्चरर हैं.अर्थशास्त्र पर ज्यां द्रेज की अब तक 12 किताबें छप चुकी हैं. अर्थशास्त्र के लिएनोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन के साथ मिलकर भी कई किताबें लिख चुके हैं.इसके अलावा ज्यां के लिखे 150 से ज्यादा एकैडमिक पेपर्स, रिव्यू और अर्थशास्त्र परलेख अर्थशास्त्र में दिलचस्पी रखने वालों की समझ बढ़ाने के लिए काफी हैं. वो भारतमें भूख, महिला मुद्दे, बच्चों का स्वास्थ्य, शिक्षा और स्त्री-पुरुष के अधिकारोंकी समानता के लिए काम कर रहे हैं.अर्थशास्त्र पर ज्यां द्रेज की अब तक 12 किताबें छप चुकी हैं. अर्थशास्त्र के लिएनोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन के साथ मिलकर भी कई किताबें लिख चुके हैं.(फोटो: दीपक यात्री और ईश्वर)ज्यां द्रेज पर अक्सर नक्सल समर्थक होने के आरोप लगते रहे हैं. छत्तीसगढ़ के बस्तरके जदलपुर की सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ज्यां द्रेज की पत्नी हैं. बेलाभाटिया पर कई बार नक्सल समर्थक होने और उनकी मदद करने के आरोप लगते रहे हैं. झारखंडको लेकर ज्यां ने कहा था,झारखंड में नक्सली गतिविधियों का प्रमुख कारण गैर-बराबरी है. भारत में गैर-बराबरीतो हर जगह है लेकिन हर जगह नक्सली गतिविधियां तो नहीं हैं. नक्सली गतिविधियों का एकसंभावित कारण है- परले दर्जे का शोषण और सरकारी उत्पीड़न.सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ज्यां द्रेज की पत्नी हैंविवाद भी रहा है ज्यां के साथपिछले दिनों अगस्त में उन्हें झारखंड की राजधानी रांची में एक कार्यक्रम में बोलनाथा. इस कार्यक्रम में राज्य के कृषि मंत्री रणधीर सिंह और केंद्रीय कृषि मंंत्रीराधामोहन सिंह भी मौजूद थे. ज्यां बोलने के लिए उठे और सरकार के विरोध में बोला,जिसके बाद रणधीर सिंह भड़क गए और उन्होंने ज्यां को बोलने से रोक दिया. इससे पहलेभी रांची में पुलिसवालों ने ज्यां से 500 रुपये की रिश्वत मांगी थी. ज्यां कीशिकायत के बाद दोनों पुलिसवालों को सस्पेंड कर दिया गया था.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ें:यूपी का वो मुख्यमंत्री, जो चाय-नाश्ते का पैसा भी अपनी जेब से भरता थाअब असम की इस फोटो और इसे खींचने वाले टीचर से जुड़ी एक दर्दनाक कहानी सामने आई हैवीडियो देखें :