आधार. नाम तो सुना ही होगा. नहीं सुना तो आप पक्का हिंदुस्तान के वासी नहीं हो.क्योंकि हिंदुस्तान में रहने वाला शायद ही कोई आदमी होगा जो इस शब्द को ना जानताहो. जो किसी ना किसी तरह से इस आधार शब्द से टकराया ना हो. अखबारों में पढ़ा ना हो,मीडिया पर चर्चा ना देखी हो. चाय की दुकान पर बहस न की हो. अरे आप तो इसे जेब मेंलेकर भी चलते हैं कि न जाने कहां जरूरत पड़ जाए. इसी पॉपुलरिटी का ही नतीजा है किआधार हिंदी वर्ड ऑफ द ईयर 2017 बन गया है. ये तमगा उसे दिया है ऑक्सफर्ड डिक्शनरीने. इसकी घोषणा 27 जनवरी को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में की गई.आधार के वर्ड ऑफ द ईयर बनने का फंडाऑक्सफर्ड ने वर्ड ऑफ द ईयर चुनने के लिए सीधे लोगों से सुझाव मांगे थे. सो कई वर्डआए भी. सबसे ज्यादा कंपटीशन खैर नोटबंदी, विकास और आधार के बीच था. अब आप सोंच रहेहोंगे कि चर्चा में तो सारे ही शब्द थे. नोटबंदी का नाम देखकर तो कई लोग भावुक भीहो सकते हैं. मगर बाजी आधार ने मारी. इसकी वजह है उसका लगातार सालभर चर्चा में बनेरहना. जैसे आधार का मामला 2017 में चार-पांच बार तो अकेले सुप्रीम कोर्ट में हीपहुंचा. अब आधार को लेकर लोगों के मन में इतने सवाल और कन्फ्यूज़न हैं. सो इसे गूगलभी हौंक के किया गया. फिर इसपर जोक्स भी कसके बने. सोशल मीडिया पर लोगों ने इसकीजमकर मौज ली.आधार कार्ड.फिर ये मामला अब भी चर्चा में ही है. संविधान बेंच आधार के मसले पर सुनवाई कर हीरही है. सो 2018 में भी इसके चर्चा में बने रहने की उम्मीद है. लोग तो वैसे भी इसेनहीं भूल सकते. हर जरूरी सुविधा में तो आधार की जरूरत होती है. फिर इस पर राजनीतितो लगातार हो ही रही थी. हो रही है औऱ होती रहेगी. जब कांग्रेस सरकार के समय इसआधार पर काम शुरू हुआ तो बीजेपी बवाल कर रही थी. अब मोदी का राज है तो कांग्रेसविरोध कर रही है. सो पॉलिटिक्स भी पर्याप्त है. और इन्हीं सब फैक्टरों ने आधार कोताज पहनवा दिया.चुना किन लोगों ने, ये भी जान लो1. कृतिका अग्रवाल- पेशे से वकील और कई भाषाओं की जानकार हैं.2. सौरभ द्विवेदी- पत्रकार और thelallantop.com के संपादक. माने कि हमारे सरपंच.3. मलिका घोष - ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस इंडिया की सीनियर एडिटोरियल मैनेजर हैं.4. नमिता गोखले - पेशे से लेखक, पब्लिशर और फेस्टिवल डायरेक्टर हैं. 16 किताबें लिखचुकी हैं. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की को-फाउंडर और को-डायरेक्टर हैं.5. पूनम निगम सहाय - झारखंड के रांची में स्थित रांची यूनिवर्सिटी में असोसिएटप्रोफेसर हैं.वीडियो देखें-ऐसे चुना गया हिंदी वर्ड ऑफ द ईयर# ऑक्सफर्ड हिंदी वर्ड ऑफ द ईयर को चुनने के लिए सीधा आम लोगों से सुझाव मांगे गएथे. वो भी खाली भारत नहीं बल्कि दुनिया भर के हिंदी भाषी लोगों से. माने आप हीलोगों से. इसके लिए बाकायदा एक पेज बना था, जिस पर सुझाव दिए जाने थे. 29 नवंबरइसकी लास्ट डेट थी.कुछ ऐसी दिख रही थी सुझाव देने वाली विंडो.# आम लोगों की ओर से आए सुझावों में से सही और सटीक शब्द चुनने के लिए एक खास पैनलबनाया गया था(ऊपर नाम पढ़े आपने). इस पैनल को ही मिलकर आए हुए हजारों शब्दों में सेएक शब्द फाइनल करना था. जोकि फाइनल हो गया है. माने आधार. इसका नतीजा ये होगा कि अबजल्द ही आधार ऑक्सफर्ड की हिंदी डिशनरी में भी दिखाई देगा.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ें-कहानी उस जवान की, जिसे जानकर राष्ट्रपति कोविंद भी रोने लगे100 साल पहले बना दुनिया का सबसे नया धर्म, जिसमें कोई पुजारी नहीं होताअगर आज चुनाव हुए तो मोदी का क्या होगा?जब बेटी का इश्क़ नाकाम रहने पर बाप ने ज़हर पीकर जान दे दीलल्लनटॉप वीडियो देखें-