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जिस नसबंदी के बल पर संजय गांधी ने देश में आतंक फैला दिया था, उसका आइडिया यहां से आया था?

एक बार में 15 हजार से ज्यादा पुरुषों ने नसबंदी का रिकॉर्ड बनाया था

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(तस्वीर: टुमौरोज चिल्ड्रेन,1934)
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प्रेरणा
14 दिसंबर 2021 (Updated: 14 दिसंबर 2021, 06:05 IST)
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इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के नाम का लोगों में डर बैठ गया था. क्यों? वो इसलिए कि जबरन नसबंदी करवाने के उनके आदेश की वजह से गांव के गांव घेरे जा रहे थे. लाखों पुरुष मजबूर कर दिए गए नसबंदी के लिए. इमरजेंसी के दौरान इंदिरा के जिन कदमों की आलोचना हुई, उनमें ये कदम भी शामिल था. लेकिन इसका असर काफी लम्बे समय तक रहने वाला था. ये माना जाता है कि कांग्रेस पार्टी के उस समय अधोपतन में इस कदम ने महती भूमिका निभाई थी.
मास स्टरलाइजेशन यानी बड़ी संख्या में नसबंदी कराने की खबरें भले ही इमरजेंसी के दौरान आई हों. लेकिन जनसंख्या को काबू करने के लिए केरल में उससे काफी पहले से ही नसबंदी के कैम्प शुरू कर दिए गए थे. और वहां बेहद सफल भी हुए थे.
अगस्त 1970. कोचीन में डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट सेमिनार किया गया. इसमें एर्नाकुलम जिले को बेहतर बनाने, और उसके भविष्य के लिए तैयारियां करने को एजेंडा रखा गया. इसमें जनसंख्या नियंत्रण को सबसे ज्यादा महत्त्व दिया गया. उस समय वहां जिले  में 3,00,000 शादी-शुदा जोड़े थे जो इस प्रोग्राम के तहत आने के लायक थे. पांच साल के भीतर उन सभी की नसबंदी करने की योजना बनाई गई.
(तस्वीर: रायटर्स)
(तस्वीर: रायटर्स)

इसके लिए सबसे ज़रूरी था लोगों को जागरूक करना. इस चीज़ को बढ़ावा देने के लिए मेला लगाने का निर्णय लिया गया. इनको वैसेक्टमी फेयर (नसबंदी मेला) कहा गया. डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ने प्रेस के ज़रिए एक अपील भेजी लोगों तक. नसबंदी को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए. कैम्प लगाया जाना तय हुआ, पुरुषों की नसबंदी इसलिए चुनी गई क्योंकि इस प्रक्रिया में समय कम लगता, खर्च ना के बराबर, और हॉस्पिटल में एडमिट होने की भी ज़रूरत नहीं होती. इसलिए कैम्पों के लिए ये सबसे बेहतरीन तरीका था.
1976 में लगाए गए नसबंदी के विज्ञापन. (तस्वीर साभार: oldindianads .com)
1976 में लगाए गए नसबंदी के विज्ञापन. (तस्वीर साभार: oldindianads .com)

पहली बार में पंचायतों से लेकर म्युनिसिपैलिटी स्तर तक के लोगों को इस प्रोजेक्ट में जोर-शोर से लगाया गया. ब्लॉक लेवल के स्तर तक लोगों को जानकारी पहुंचाने के इंतजाम किए गए. ऑल इंडिया रेडियो ने लगातार घोषणाएं कीं. फैमिली प्लैनिंग वर्कर्स ने उन सभी जोड़ों की लिस्ट बनाई जो बच्चे पैदा कर सकने वाली उम्र में थे, और उनके दो या दो से अधिक जीवित बच्चे थे. जो लोग आकर नसबंदी करा रहे थे उनको पैसे भी दिए जा रहे थे. पुरुषों को तकरीबन 114 रुपए, और महिलाओं को 135 रुपए. इन कैम्पस की सबसे ख़ास बात ये थी कि इन्हें फुल पब्लिसिटी के साथ चलाया जा रहा था. लोगों की नज़रों के ठीक सामने. शहर के बींचोबीच. इस वजह से लोगों के भीतर जो झिझक थी इस ऑपरेशन को लेकर, वो दूर करने में मदद मिली.
(तस्वीर साभार: Kerala's Pioneering Experiment in Massive Vasectomy Camps)
(तस्वीर साभार: Kerala's Pioneering Experiment in Massive Vasectomy Camps)

दिसंबर 1970 में लगे एर्नाकुलम के कैम्प में 15,005 लोगों ने अपनी नसबंदी कराई. जुलाई 1971 में सिर्फ एर्नाकुलम जिले में ही 19,818 लोगों ने नसबंदी कराई. बाकी जिलों में 43,600 लोगों ने अपनी नसबंदी कराई. लेकिन ये सभी नसबंदियां लोगों ने अपनी मर्ज़ी से करवाई थीं. जानकारी लेकर, सोच-समझ कर. इसके चार-पांच साल बाद संजय गांधी ने जो किया, वो सत्ता के नशे में चूर एक तानाशाह का हुकुम था. जो उसकी पार्टी को उस समय ले डूबा.


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