रेमन मैग्सेसे पुरस्कार इस बार एक ऐसे भारतीय को मिला है जिसने संगीत को 'जाति' केनजरिये से देखने की कोशिश की. हिंदुस्तान में धन-संपत्ति की तरह कला भी जाति सेप्रभावित है. इस चीज को स्वीकार कर इस प्रभाव को ख़त्म करने की कोशिश करने वालेसंगीतकार का नाम है टीएम कृष्णा. कृष्णा दक्षिण भारत के संगीत (Carnatic Music) में6 साल की उम्र से ही लगे हुए हैं. हालांकि इकोनॉमिक्स में उनके पास एक डिग्री है परसंगीत ही इनकी जिंदगी में सब कुछ रहा है. 20 साल की उम्र से इन्होंने देश-विदेश मेंशो किए हैं.चेन्नई म्यूजिक सीजन को कहा बाय, खुद का शुरू कर दिया मछुआरों के बीचपर इन सबके दौरान इनकी नज़र गई ऐसी चीज पर जिसको जानते तो सभी हैं, पर उसके बारे मेंबात नहीं करते. चेन्नई म्यूजिक सीजन में कृष्णा हर साल जाते थे. पर 2015 मेंइन्होंने वहां जाने से इनकार कर दिया. इसकी वजह थी कि वह आने वालों कलाकारों मेंसारे ऊंची जाति के 'ब्राह्मण' थे. इस 100 साल पुराने फेस्टिवल में दुनिया भर सेसंगीतप्रेमी आते थे. कृष्णा के इनकार से सबको ये बात समझ आई. पर किसी ने कुछ कियानहीं. कहा गया कि कलाकार को इन बातों से अलग रहना चाहिए. पर कृष्णा के मन में कुछऔर था. उन्होंने अपनी बातों और गुस्से के मुताबिक एक नया म्यूजिक फेस्टिवल शुरूकिया. एक बीच पर. जहां सदियों से मछुआरे रहते थे. इसमें हर तबके के लोगों को मौकादिया गया. फ़रवरी 2016 में फेस्टिवल करा भी दिया गया. पूरी कोशिश यही रही कि हर तबकेमें संगीत पहुंचाया जाए.पूछा था मोदी से कि अमेरिका के प्रेसिडेंट की तरह क्यों नहीं बोलते?बिहार चुनाव के दौरान कृष्णा ने प्रधानमन्त्री मोदी को एक खुला ख़त भी लिखा थाScroll में. इसमें कहा था कि प्रधानमन्त्री जी, आप सबके एक होने की बात करते हैं.पर दादरी में हत्या और पूरे देश में दलितों पर अत्याचार के बारे में आपने कुछ नहींबोला. कब बोलेंगे? अमेरिका के प्रेसिडेंट की तरह देश के मुद्दों पर बोलिए तो कम सेकम. कृष्णा की 'आर्ट की पॉलिटिक्स' यानी 'कला की राजनीति' को समझने का जो इरादा है,इसने कई लोगों की आंख के पट खोल दिए हैं. ये सच है कि जब समाज में बहुत सारे लोग'जाति' की वजह से हर जगह प्रताड़ित किए जा रहे हैं तो आप खुद को 'कलाकार' कहकर अपनीजिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते. इसी साल भारत से ही मैग्सेसे पुरस्कार पाने वालेदूसरे एक्टिविस्ट बेजवाड़ा विल्सन ने भी जाति के खिलाफ ही जंग छेड़ी है. पढ़िए उनकीकहानी:फख्र है: गू उठाने वाला ये इंडियन बंदा मैग्सेसे जीत लाया