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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी मदरसा कानून को रद्द किया था, सुप्रीम कोर्ट ने गलती बता कर रोक लगा दी

अंतरिम रोक के बाद उत्तर प्रदेश के मदरसों में 2004 के मदरसा बोर्ड कानून के तहत ही पढ़ाई जारी रहेगी.

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UP Madarsa Act
22 मार्च को हाई कोर्ट ने मदरसा कानून को रद्द कर दिया था. (फाइल फोटो)
5 अप्रैल 2024
Updated: 5 अप्रैल 2024 16:06 IST
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सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मदरसा कानून, 2004 को असंवैधानिक बताने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले को गलत बताया. कहा कि हाई कोर्ट ने मदरसा कानून के प्रावधानों को समझने में गलती की है. ये कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों यानी मदरसा बोर्ड, यूपी सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. 30 जून 2024 तक नोटिस का जवाब मांगा मांगा गया है. अगली सुनवाई अब जुलाई के दूसरे हफ्ते में होगी. बीती 22 मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने "धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन" बताते हुए मदरसा कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया था.

हाई कोर्ट का फैसला गलत-SC

सुप्रीम कोर्ट की तरफ से इस अंतरिम रोक के बाद मदरसों में 2004 के मदरसा बोर्ड कानून के तहत ही पढ़ाई जारी रहेगी. इससे यूपी के करीब 16,500 मदरसों को राहत मिली है. CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट का ये कहना सही नहीं है कि ये धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है. बेंच ने कहा कि इस कानून का उद्देश्य रेगुलेट करना है.

इंडिया टुडे से जुड़े संजय शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड की तरफ से सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए. सिंघवी ने कहा कि हाई कोर्ट का अधिकार नहीं बनता कि वो इस कानून को रद्द करे. उन्होंने बताया, 

"इस फैसले से राज्य के करीब 25,000 मदरसों में पढ़ने वाले 17 लाख छात्र प्रभावित हुए हैं. 2018 में राज्य सरकार के आदेश के मुताबिक इन मदरसों में विज्ञान, पर्यावरण, गणित जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं. अगर आप कानून को रद्द करते हैं तो आप मदरसों को अनियमित बना देते हैं."

सिंघवी ने आगे दलील दी, 

"हाई कोर्ट का कहना है कि अगर आप धार्मिक विषय पढ़ाते हैं तो यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि धार्मिक शिक्षा का अर्थ धार्मिक निर्देश नहीं है. आज कई गुरुकुल भी प्रसिद्ध हैं क्योंकि वे अच्छा काम कर रहे हैं. मेरे पिता की भी एक डिग्री वहीं से है. तो क्या हमें उन्हें बंद कर देना चाहिए और कहना चाहिए कि यह हिंदू धार्मिक शिक्षा है? क्या 100 साल पुरानी व्यवस्था को खत्म करने का ये आधार हो सकता है?"

सिंघवी ने ये भी कहा कि सिर्फ इसलिए कि कोई हिंदू धर्म या इस्लाम आदि पढ़ाता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वो धार्मिक शिक्षा ही देता है. इस मामले में अदालत को अरुणा रॉय फैसले पर गौर करना चाहिए. उन्होंने कहा कि राज्य को धर्मनिरपेक्ष रहकर सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए. राज्य अपने कर्तव्यों का पालन करते समय किसी भी तरह से धर्मों के बीच भेदभाव नहीं कर सकता.

"धार्मिक शिक्षा और धार्मिक विषय दोनों अलग"

रिपोर्ट के मुताबिक, मदरसा बोर्ड की तरफ से सीनियर वकील मुकुल रोहतगी ने भी दलीलें दीं. कोर्ट को बताया कि ये संस्थान अलग-अलग विषय पढ़ाते हैं. कुछ सरकारी स्कूल हैं. कुछ निजी हैं. उन्होंने कहा कि ये पूरी तरह से राज्य द्वारा सहायता प्राप्त स्कूल हैं. यहां कुरान एक विषय के तौर पर पढ़ाया जाता है.

सीनियर वकील हुजैफा अहमदी ने भी मदरसों की तरफ से कहा कि धार्मिक शिक्षा और धार्मिक विषय दोनों अलग-अलग मुद्दे हैं. इसलिए हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगानी चाहिए.

उत्तर प्रदेश बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट, 2004 मदरसों की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिए बनाया गया था. इस कानून के तहत, मदरसों को बोर्ड से मान्यता पाने के लिए कुछ न्यूनतम मानकों को पूरा करना जरूरी था. बोर्ड मदरसों को पाठ्यक्रम, शिक्षण सामग्री और शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए भी दिशानिर्देश देता है.

मदरसा बोर्ड की तरफ से दलीलों के बाद कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा कि क्या राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में कानून का बचाव किया है? राज्य सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलीसिटर जनरल (ASG) केएम नटराज ने बताया कि यूपी सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को स्वीकार किया है और कानून की संवैधानिकता का बचाव नहीं करेगी. ASG के मुताबिक, मदरसा के छात्रों को सामान्य स्कूलों में डाला जाएगा.

दोनों तरफ की दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने सभी पक्षों को नोटिस जारी कर दिया और हाई कोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी. 22 मार्च को हाई कोर्ट ने मदरसा कानून को असंवैधानिक बताते हुए यूपी सरकार को एक योजना बनाने का निर्देश दिया था, ताकि इसके तहत मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को मान्यता प्राप्त स्कूलों में शामिल किया जा सके. कोर्ट ने कहा था कि राज्य में बड़ी संख्या में मदरसे हैं और इनमें पढ़ने वाले स्टूडेंट्स की संख्या भी अच्छी-खासी है. ऐसे में यूपी सरकार मदरसों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स का एडमिशन मान्यता प्राप्त स्कूलों में कराए.

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