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'सेंगोल की आड़ में ब्राह्मणवाद...', नए संसद पर मची बहस अशोक चक्र तक पहुंची

क्या सेंगोल को अशोक चक्र की जगह लाया जा रहा है?

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Sengol installation row in new parliament
(बाएं-दाएं) सेंगोल और भारत का राजकीय चिह्न अशोक स्तंभ का शीर्ष हिस्सा. (फोटो सोर्स- आज तक और विकिपीडिया)
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शिवेंद्र गौरव
26 मई 2023 (Updated: 26 मई 2023, 21:35 IST)
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नए संसद का उद्घाटन केवल सियासी बवाल की वजह से चर्चा में नहीं है, बल्कि 28 मई को इसमें स्थापित होने वाले ‘सेंगोल’ के चलते भी इस इवेंट में कई लोगों की दिलचस्पी बढ़ गई है. सेंगोल तमिल भाषा का शब्द है. इसके ऐतिहासिक मायने समझें तो सत्ता हस्तांतरण के समय पुरोहितों द्वारा नए राजा को सौंपा जाने वाला राजदंड. नए संसद भवन के उद्घाटन के अलावा सेंगोल पर भी बहस चल रही है. कुछ लोगों और नेताओं का कहना है कि ये सेंगोल राजतंत्र का प्रतीक है, इसलिए इसे लोकतंत्र का प्रतीक नहीं कहा जा सकता. वहीं कुछ लोग इसे अशोक चिह्न से जोड़कर टिप्पणियां कर रहे हैं.

अमित शाह ने क्या कहा था?

सेंगोल क्या है और इसके ऐतिहासिक मायने क्या हैं, इस बारे में हम विस्तार से बात कर चुके हैं. 14 अगस्त 1947 को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक स्वरूप एक कार्यक्रम में अंग्रेजों ने सेंगोल जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था. तब से ये सेंगोल देश के पहले प्रधानमंत्री के प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) वाले उस आवास (आनंद भवन) पर रखा हुआ था, जो अब म्यूजियम बन चुका है.

इसे लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार 24 मई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा,

"सरकार का मानना है कि इस पवित्र सेंगोल को किसी म्यूजियम में रखना अनुचित है. सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक उपयुक्त और पवित्र स्थान हो ही नहीं सकता. जिस दिन संसद भवन का उद्घघाटन होगा, उसी दिन सेंगोल को भी लोकसभा स्पीकर के आसन के पास स्थापित करेंगे." 

लेकिन अब सेंगोल को अशोक चक्र से जोड़कर देखा जा रहा है. वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का कहना है कि राजकीय प्रतीक चिह्न एक ही रहने दिया जाए. वे ट्विटर पर लिखते हैं,

“भारत का राजचिह्न, अशोक के सिंह-स्तंभ की अनुकृति है. इसमें चार शेर हैं, जो एक-दूसरे की तरफ़ पीठ किए हुए हैं. फिर सेंगोल का विचार कहां से और क्यों लाया जा रहा है? कितने प्रतीक चिह्न होंगे? वह भी सुंदर है लेकिन प्रतीक चिह्नों का मेला थोड़े लगाना है. राजकीय प्रतीक चिह्न एक ही रहने दें.”

नितिन नाम के एक यूजर भी लिखते हैं,

“उन्हें अशोक के शेरों से दिक्कत थी. इसलिए उसे बिगाड़ दिया गया. लेकिन वो इस सच को नहीं बदल सकते कि अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया, मौर्य ने जैन धर्म अपनाया. शिवाजी महाराज ने महाराष्ट्र का धर्म अपनाया. इसलिए ये चोल साम्राज्य के सेंगोल की आड़ में ब्राह्मणवाद को फिर से जिंदा करने की कोशिश है.”

सदा नाम के एक और यूजर लिखते हैं कि सेंगोल क्या है, अब तक नहीं सुना. हम राष्ट्रगान, तिरंगा और अशोक स्तंभ के साथ अपनी आजादी का जश्न मनाते हैं. सेंगोल एक साजिश के तहत इस्तेमाल किया जा रहा है.

महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी कहते हैं,

“सेंगोल को संसद में स्थापित करना प्रधानमंत्री की अहंकार और ताकत की सनक का एक और उदाहरण है. पंडितजी (नेहरू) ने इसे लिया था और तुरंत संग्रहालय में रख दिया था क्योंकि इसका संसदीय लोकतंत्र में कोई महत्त्व नहीं था. वर्तमान प्रधानमंत्री इसे संसद में स्थापित कर लोकतंत्र का मजाक उड़ा रहे हैं.”

एक और ट्वीट में तुषार ये भी कहते हैं कि सेंगोल का दंड, सरकार का बनाया हुआ दंड लगता है.

वहीं अग्नि नाम के एक यूजर लिखते हैं कि इसमें राजशाही जैसा क्या है? ये अशोक के धर्म आधारित शासन का प्रतीक था. आजाद भारत में इसे सही भावना से अपनाया गया. सेंगोल के पीछे भी यही भावना है.

तो कुल मिलाकर, अब तक नए संसद भवन के उद्घाटन के पहले ही इससे कम से कम तीन विवाद जुड़ चुके हैं. एक कि इसे सावरकर की पैदाइश की तारीख से जोड़ा रहा है. दूसरा कि इसके उद्घाटन में राष्ट्रपति को निमंत्रण न देने पर विपक्ष नाराज दिख रहा है. और तीसरा विवाद सेंगोल की स्थापना से जुड़ा है. इस मामले में आगे जो भी अपडेट आएगा हम आप तक पहुंचाते रहेंगे. 

वीडियो: नए संसद भवन में पीएम मोदी जिस सेंगोल को स्‍थापित करेंगे उसकी पूरी कहानी

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