13 सितंबर को फिल्म 'सेक्शन 375' थिएटर्स में लगी है. अभी पिछले दिनों आयुष्मान की'आर्टिकल 15' आई थी. तब से इस सेक्शन और आर्टिकल का कंफ्यूज़न बना हुआ है. देखिएसेक्शन यानी कि धारा इंडियन पीनल कोड (IPC) में होती है. और आर्टिकल यानी किअनुच्छेद संविधान में होते हैं. ट्रेलर देखकर ये फिल्म इंटेंस लग रही थी. कास्टिंगभी काफी पावर-पैक्ड थी. ये सब तो पता चला लेकिन फिल्म एग्जैक्ट्ली किस बारे में बातकरने वाली है, इसका अंदाज़ा बिलकुल नहीं लगा. फिल्म और ट्रेलर का ये अंतर मुझेइसलिए पता है क्योंकि मैंने फिल्म देख ली है. किस बारे में है ये फिल्म?परफॉरमेंसेज़ कैसी हैं? फिल्म कैसी है? इन सभी सवालों के बारे में हम नीचे बातकरेंगे.कहानीएक लड़की है अंजली. मुंबई की एक लोअर मिडल क्लास फैमिली से आती है. फिल्मों मेंबतौर कॉस्ट्यूम असिस्टेंट काम करती है. एक फिल्म की शूटिंग से पहले वो मशहूर फिल्मडायरेक्टर रोहन खुराना को स्टार्स के लिए बने कॉस्ट्यूम दिखाने जाती है. उसी शामरोहन को पुलिस अंजली का रेप करने मामले में गिरफ्तार कर लेती है. सबूतों के आधार पररोहन को सेशंस कोर्ट से 10 साल की सज़ा हो जाती है. इसके बाद देश का मशहूर लॉयरतरुण सलुजा रोहन का केस लेता है और निचली कोर्ट के डिसीज़न को बॉम्बे हाई कोर्ट मेंचैलेंज करता है. दूसरी ओर है हीरल गांधी, जो अंजली की ओर से ये केस लड़ रही है. हाईकोर्ट में केस की सुनवाई शुरू होने के बाद ये फिल्म इंवेस्टिगेटिव कोर्ट रूम ड्रामाबन जाती है. फिल्म की कहानी सिर्फ इतनी है कि उस दिन अंजली और रोहन के बीच आखिर हुआक्या? इसे अंजली और रोहन दोनों के नज़रिए से दिखाया गया है.फिल्म डायरेक्टर रोहन खुराना केे किरदार में राहुल भट्ट और कॉस्ट्यूम असिस्टेंटअंजली के रोल में मीरा चोपड़ा.एक्टर्स के नाम और कामअक्षय खन्ना यानी फिल्म की धुरी हैं, जिनकी इर्द-गिर्द ये पूरी फिल्म घूमती है. उसआदमी की खास बात ये है कि वो हर सीन में हर बात को इतने जुनून के साथ कहता है किआपको यकीन हो जाता है, ये आदमी गलत नहीं कह रहा. इसके पीछे दो वजहें हैं, पहली उनकेकिरदार का एस्टैब्लिशमेंट, जो टॉप लॉयर की तरह कहानी में फिट कर दिया गया है. औरदूसरी वजह है उनके अक्षय खन्ना होने को लेकर हमारे मन में बैठा बायस. फिर आती हैंऋचा चड्ढा. जिस कहानी को अक्षय आधे हिस्से तक लेकर जाते हैं, ऋचा उस घेरे को पूराकरती हैं. फिल्म अपने आखिरी सीन से शुरू होती. और यहां दिखती हैं हैरान-परेशान ऋचाचड्ढा. जैसे उनके जीवन के सबसे बड़े रहस्य का खुलासा हो गया हो. इस सीन की सबसेअच्छी बात ये है कि हमें ये दो बार देखने को मिलता है. साथ ही वो रेप जैसे मसले कोलेकर या उससे जुड़े लोगों से जिस संवेदनशीलता के साथ पेश आती हैं, वो भी उनकेकैरेक्टर का हाई-पॉइंट है.उदीयमान लॉयर हीरल गांधी के रोल में ऋचा चड्ढा. ये वही सीन है, जिसके बारे में ऊपरबात हो रही थी.रेप के आरोपी बने हैं राहुल भट्ट. राहुल भट्ट और मीरा चोपड़ा के पास करने कोज़्यादा नहीं है. बावजूद इसके राहुल ज़्यादा प्रभावित करते हैं. जिन सीन्स का फोकसउन पर नहीं रहता, उसमें भी वो पूरे एक्टिव रहते हैं. वहीं मीरा चोपड़ा अपने सीन्समें तो ठीक लगती हैं लेकिन जब वो कुछ नहीं करती, तब वो ब्लैंक एक्स्प्रेशन के साथदिखती हैं. परफॉरमेंस की बात हो रही है, तो खास ज़िक्र होना चाहिए हाई कोर्ट के जजबने किशोर कदम का. फिल्म में कॉमेडी के लिए तो स्पेस नहीं है लेकिन वो अपने कहेकिसी भी वाक्य से माहौल को हल्का कर देते हैं. जबकि वो गंभीर बात कह रहे होते हैं.फिल्म की अच्छी बातेंइसकी रफ्तार, जो बिलकुल क्रिस्प है. फिल्म कट-टू-कट बात करती है. बाकी जो कुछ भी चलरहा होता है, उसमें कोई भी ऐसा हिस्सा आप नहीं ढ़ूंढ़ पाएंगे, जो फिल्म की कहानी कोइंफ्लूएंस नहीं करता हो. मतलब एडिटिंग भी अच्छी है. लेकिन इंट्रेस्टिंग बात है वो,जो ये फिल्म कहना चाहती है. विल (Will) और कॉन्सेंट(Consent) यानी इच्छा और सहमतिजैसी बातों का ज़िक्र कर ये जहां पहुंचती है, वहां आपका दिमाग भन्ना जाता है. यायूं कहें ठिकाने आ जाता है. थोड़ा-थोड़ा 'पिंक' वाला फील भी देती है लेकिन ये फिल्मअपने लिए एक अलग सेक्शन गढ़ती है.टॉप लॉयर तरुण सलुजा के रोल में सुपर धांसू अक्षय खन्ना.'सेक्शन 375' एक कोर्ट रूम ड्रामा है. ऐसे में यहां कही गई एक-एक लाइन का महत्व कईगुणा बढ़ जाता है. इस कंडिशन में फिल्म के डायलॉग्स कोर्ट रूम और बोलचाल की भाषा कीमिलावट हैं. और इस दौरान जो बातें कही जाती हैं, वो आपकी रेप और लड़कियों के साथहोने वाली चीज़ों के मामलों की समझ बढ़ाती हैं. जब कोर्ट में सवाल-जवाब का दौर चलरहा होता है, तब आपको पुलिसिया प्रोसेस की लापरवाही और लचरता का अंदाज़ा भी लगताहै. लेकिन आपको ऐसा भी लगने लगता है कि फिल्म फैल रही है. और तभी वो इस मामले कोकेस के साथ फेवीक्विक लगाकर जोड़ देती है.फिल्म में बैकग्राउंड म्यूज़िक सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि फिल्मों में होता है.जब फिल्म का सबसे क्रूशियल मोमेंट चल रहा होता है, तो नेप्थय में बिलकुल सन्नाटाहोता. ताकि जो दलीलें कोर्ट में दी जा रही हैं, वो आप साफ तरीके से सुन और समझपाएं.कोर्ट रूम में चल रही सुनवाई के दौरान अक्षय खन्ना, ऋचा चड्डा और मीरा चोपड़ा.बुरी बातेंइस फिल्म का ये वाला सेक्शन खाली छोड़ा जा सकता है. लेकिन ये शिकायत रहती है किफिल्म शुरुआत में बहुत अंग्रेजीदां हो जाती है. टेक्निकल और कानूनी शब्दों काइस्तेमाल करने लगती है, जो भारी लगता है. और आम आदमी की समझ से बाहर भी है. अगरओवरऑल देखें, तो ये फिल्म सोचने पर मजबूर करती है. एक फिल्म के तौर पर भी अपनेगरिमा के साथ न्याय करती है. अपने आखिरी सीन तक कुर्सियों से चिपकाए रखती है. एककेस की मदद से ये आज के समय की सबसे प्रासंगिक और कम कही गई बात कहती है. वुमनएंपॉवरमेंट का फर्जी ढ़ोंग नहीं करती है. बल्कि इस मामले में क्लैरिटी देती है.जहां तक सवाल है फिल्म को देखने या नहीं देखने का, तो यहां कही बातें अगर आपकेदिमाग में जगह बना पा रही हैं, तो आप क्लीयर होंगे. अगर आपको लगता है कि ऊपर बताईगई बातों में फिल्म से जुड़ी ज़्यादा जानकारी रिवील हो गई है, तब तो आपको ये फिल्मज़रूर देखनी चाहिए.--------------------------------------------------------------------------------वीडियो देखें: फिल्म रिव्यू: सेक्शन 375