पति भी मांग सकता है पत्नी से गुजारा भत्ता, तलाक से जुड़े ये नियम-कानून पुरुषों को पता होने चाहिए
क्या तलाक के मामले में पुरुषों के पास अधिकार होते हैं? आम धारणाओं से परे, भारतीय कानून में पुरुषों को तलाक, भरण-पोषण, बच्चों की कस्टडी, और झूठे आरोपों से बचाव के लिए कई प्रावधान हैं.
भारतीय समाज पर ‘पितृसत्तात्मक या पुरुष प्रधान’ होने का आरोप लगता रहा है. सती प्रथा जैसी कुरीतियां गुजरे जमाने की बात हो चुकी, लेकिन महिलाओं के खिलाफ हिंसा में कोई उल्लेखनीय कमी आज भी देखने को नहीं मिलती. बलात्कार, एसिड अटैक, दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा एक कड़वा सच है. इसीलिए महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून बनाए गए हैं. लेकिन एक हकीकत ये भी है कि इन कानूनों का बेजा इस्तेमाल भी हो रहा है. अतुल सुभाष सुसाइड केस के चलते ये मुद्दा फिर उठा है.
हालांकि मृतक के पत्नी और उसके परिवार पर लगाए आरोप अभी सही साबित नहीं हुए हैं. लेकिन इस घटना ने कई सवाल तो पैदा कर ही दिए हैं. इनमें ये सवाल भी शामिल है कि महिला के पास उत्पीड़न और हिंसा से सुरक्षा के लिए कानूनी रास्ते हैं, लेकिन पुरुष के पास क्या अधिकार हैं और वे इनका कब और कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं. इस रिपोर्ट में हम तलाक के संबंध में पुरुषों को मिले कानूनी अधिकारों के बारे में जानेंगे.
तलाक मांगने का अधिकारलोगों के बीच एक आम धारणा है कि भारत में तलाक या तो कपल की सहमति से होता है, या केवल महिलाओं की याचिका पर. लेकिन ऐसा नहीं है. आम सहमति के बगैर भी पुरुषों के पास तलाक मांगने का अधिकार है. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act) की धारा 13(1) के तहत पति तलाक की याचिका दाखिल कर सकता है. इस धारा के तहत पुरुषों के पास उत्पीड़न, अडल्टरी (यानी विवाह से बाहर रिश्ता बनाना), डिसर्शन (यानी छोड़ दिया जाना), पत्नी का मानसिक रूप से कमज़ोर होना आदि डिवॉर्स याचिका के आधार बनाए जा सकते हैं.
मुस्लिम पुरुष शरिया कानून के तहत तलाक दे सकते हैं, लेकिन तीन तलाक अब गैरकानूनी है.
संपत्ति पर अधिकारअगर तलाक के समय संपत्ति का विवाद हो, तो पुरुष संयुक्त संपत्ति में अपना हिस्सा मांग सकते हैं. तलाक की स्थिति में पति को पत्नी की अर्जित संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता. लेकिन जो संपत्ति दोनों ने मिलकर खरीदी हो, उसमें पुरुष का हक बनता है.
बच्चों की कस्टडीपुरुष भी बच्चों की कस्टडी की मांग कर सकते हैं. हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 (Hindu Minority and Guardianship Act 1956) के तहत पिता को भी बच्चों की कस्टडी पाने का अधिकार है. कस्टडी के लिए पति को ये साबित करना होगा कि वो बच्चों की देखबाल बेहतर तरीके से कर सकते हैं.
भारत में अदालतें कस्टडी के मामलों में दो मुख्य कानूनी सिद्धांतों का पालन करती हैं -
पहला है सर्वोत्तम हित सिद्धांत (best interest principle). इसके तहत देखा जाता है कि बच्चों के हित में क्या बेहतर होगा - मां के साथ रहना या पिता के साथ.
दूसरा है कल्याण सिद्धांत (welfare principle). इसके तहत देखा जाता है कि बच्चों के कल्याण के लिए क्या बेहतर रहेगा. कोर्ट हमेशा बच्चे के कल्याण के लिए जो बेहतर है वो करेगा, न कि माता या पिता के.
इन बातों को ध्यान में रखते हुए पति को साबित करना होगा कि बच्चे का सर्वोत्तम हित उसके साथ रहने में ही है.
बता दें कि कोर्ट अक्सर जॉइन्ट कस्टडी भी देती है. इसमें बच्चे की मां और पिता दोनों को समय-समय पर बच्चे के साथ रहने की अनुमति होती है. बहुत छोटे बच्चे होने कि स्थिति में पति विज़िटैशन राइट, मतलब बच्चे से समय-समय पर मिलने का अधिकार भी मांग सकते हैं.
भरण-पोषण का अधिकारभारत में एक धारणा है कि गुज़ारा-भत्ता या मेंटेनेंस केवल महिलाओं का ही अधिकार है. आप जान के अचंभित होंगे कि भारतीय कानून में पुरुष अपनी पत्नियों से भरण-पोषण के लिए पैसे की डिमांड कर सकते हैं. हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 और धारा 25 के तहत अगर पत्नी आर्थिक रूप से सक्षम हो और पति कमजोर वित्तीय स्थिति में हो, तो पति भरण-पोषण की मांग कर सकता है.
भारत में अब तक कई ऐसे मुकदमे हो चुके हैं जिनमें कोर्ट ने महिला को अपने पति को मेंटेनेंस देने का आदेश दिया. उदाहरण के लिए, 2011 के रानी सेठी बनाम सुनील सेठी मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने 20,000 रुपये का मासिक मेंटेनेेंस तय किया था. ऐसे भी मुकदमे हुए हैं जिनमें कोर्ट ने पति की खराब वित्तीय परिस्थिति को देखते हुए कहा कि उसे पत्नी को किसी तरह का मेंटेनेंस नहीं देना होगा.
झूठे आरोपों से बचावदहेज़ उत्पीड़न या घरेलू हिंसा के झूठे मामलों में पुरुषों को बचाने के लिए कानून में प्रावधान हैं. पुरुष अदालत में अपील कर सकते हैं और झूठे आरोपों के खिलाफ सबूत पेश कर सकते हैं. झूठे मामलों की स्थिति में पुरुषों के पास उपलब्ध विकल्पोें को जानने के लिए आप लल्लनटॉप की ये रिपोर्ट पढ़ें.
(यह स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे साथी प्रखर श्रीवास्तव ने लिखी है.)
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