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'बाबरी मस्जिद का नाम नहीं, अयोध्या विवाद फिर से लिखा गया', NCERT की नई किताब में क्या-क्या बदला?

NCERT की नई किताबों में Babri Masjid को 'तीन गुंबद वाला ढांचा' कहा गया है. साथ ही, अयोध्या विवाद पर Supreme Court के 2019 के फ़ैसले को जोड़ा गया है और इसे सर्वसम्मति का 'उत्कृष्ट उदाहरण' बताया गया है.

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revised NCERT Class 12 Political Science textbook
NCERT की नई किताब में कुछ चीज़ें जोड़ी गई हैं, तो कुछ चीज़ें हटाई गई हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर - NCERT/India Today Archive)
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हरीश
16 जून 2024 (Updated: 16 जून 2024, 16:07 IST)
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बीते हफ़्ते NCERT की कक्षा 12वीं की किताबें कुछ बदलावों के साथ बाज़ार में आईं. विषय है राजनीति विज्ञान (Revised NCERT Class 12 Political Science textbook) . इन बदलावों में बाबरी मस्जिद का नाम हटा दिया गया है (does not mention the Babri Masjid). उसे "तीन गुंबद वाली संरचना" कहा गया है. साथ ही नई किताब में अयोध्या विवाद के मुद्दे को कम पन्नों में समेट दिया गया है. 

इसके अलावा पहले के सिलेबस से कई बिंदु हटाए गए हैं.(pruned the Ayodhya section). हटाए गए विवरणों में गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक BJP की रथयात्रा (BJP rath yatra from Somnath in Gujarat to Ayodhya) , कारसेवकों की भूमिका, 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद सांप्रदायिक हिंसा, 1992 में BJP शासित राज्यों में राष्ट्रपति शासन और BJP के 'अयोध्या की घटनाओं पर खेद जताना' जैसे मुद्दे हैं.

इससे पहले 5 अप्रैल को भी कुछ ऐसी ही ख़बरें आई थीं. इनमें नई किताबों में 'राम जन्मभूमि आंदोलन' को प्रधानता देने की बात कही गई थी. साथ ही 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को जोड़ने और बाबरी मस्जिद विध्वंस के रेफरेंस हटाए जाने की भी जानकारी सामने आई थी. हालांकि तब इस बारे में जानकारी नहीं थी कि ये बदलाव किस तरह से किए जाएंगे. अब NCERT की नई किताबों से इसके बारे में कुछ नए खुलासे हुए हैं. इंडियन एक्सप्रेस से जुड़ी रितिका चोपड़ा ने इस पर विस्तार से रिपोर्ट की है. रिपोर्ट के मुताबिक़, जो बदलाव किए गए हैं, उन पर एक नज़र डालतें हैं.

बाबरी मस्जिद का नाम नहीं, अख़बारों की कतरने हटीं

रिपोर्ट के मुताबिक़, पुरानी किताब में बाबरी मस्जिद को 16वीं शताब्दी की मस्जिद के रूप में बताया गया था. इसे मुगल सम्राट बाबर के जनरल मीर बाक़ी ने बनवाया था. लेकिन अब किताब में इसे 'एक तीन-गुंबद वाली संरचना' के रूप में बताया गया है, जिसे 1528 में श्री राम के जन्मस्थान पर बनाया गया था. लेकिन संरचना के आतंरिक और बाहरी हिस्सों में हिंदू प्रतीक और अवशेष थे.

पुरानी किताब में अख़बारों के लेखों की तस्वीरें थीं. इनमें, 7 दिसंबर, 1992 का एक लेख भी शामिल था, जिसकी हेडिंग थी ‘बाबरी मस्जिद ढहाई गई, केंद्र ने कल्याण सरकार को बर्खास्त किया.’ साथ ही, 13 दिसंबर, 1992 की एक अख़बार की हेडिंग थी. इसमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हवाले से कहा गया था कि 'अयोध्या BJP की सबसे बड़ी ग़लती थी.'

अब सभी अख़बारों की कतरनें हटा दी गई हैं.

अयोध्या विवाद मुद्दे पर बदलाव

पुरानी किताब में 2 से ज़्यादा पन्नों में फ़ैज़ाबाद (अब अयोध्या) ज़िला के आदेश पर फ़रवरी 1986 में मस्जिद के ताले खोले जाने, खोले जाने के बाद 'दोनों तरफ़' की लामबंदी, सांप्रदायिक तनाव, सोमनाथ से अयोध्या तक की BJP की रथ यात्रा, दिसंबर 1992 में राम मंदिर निर्माण के लिए स्वयंसेवकों की कार सेवा, मस्जिद का विध्वंस और उसके बाद जनवरी 1993 में हुई सांप्रदायिक हिंसा. इन सब का ज़िक्र था. ये भी बताया गया था कि कैसे BJP ने 'अयोध्या में हुई घटनाओं पर खेद जताया'. लेकिन अब इसे एक पैराग्राफ़ में समेट दिया गया है. नई किताब में बताया गया है,

"1986 में तीन गुंबद वाली संरचना से जुड़ी स्थिति ने मोड़ ले लिया, जब फ़ैज़ाबाद (अब अयोध्या) ज़िला अदालत ने संरचना को खोलने का फैसला सुनाया. इससे लोगों को वहां पूजा करने की मंजूरी मिली. ये विवाद कई दशकों से चल रहा था, क्योंकि ऐसा माना जाता था कि तीन गुंबद वाली संरचना श्री राम के जन्मस्थान पर एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाई गई थी. हालांकि, मंदिर का शिलान्यास किया गया था. लेकिन आगे के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

हिंदू समुदाय को लगा कि श्री राम के जन्मस्थान से संबंधित उनकी चिंताओं को नज़रअंदाज कर दिया गया था. जबकि मुस्लिम समुदाय ने संरचना पर अपने कब्जे का आश्वासन मांगा था. इसके बाद, दोनों समुदायों के बीच स्वामित्व अधिकारों को लेकर तनाव बढ़ा. इससे कई विवाद और कानूनी संघर्ष हुए. दोनों समुदाय लंबे समय से चले आ रहे मुद्दे का निष्पक्ष नतीजा चाहते थे. 1992 में, ढांचे के विध्वंस के बाद कुछ आलोचकों ने तर्क दिया कि इसने भारतीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की."

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला

किताब के नए संस्करण में अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को जोड़ा गया है. नई किताब में कहा गया है,

“किसी भी समाज में संघर्ष होना लाजिमी है. लेकिन कई धर्मों और कई संस्कृतियों वाले लोकतांत्रिक समाज में आमतौर पर कानून की मदद से इन्हें सुलझा लिया जाता है.”

इसके बाद इसमें अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के 5-0 के फैसले का ज़िक्र किया गया है. बताया गया है कि 9 नवंबर, 2019 के फैसले ने मंदिर के लिए मंच तैयार किया, जिसका उद्घाटन इस साल जनवरी में हुआ. किताब में कहा गया है,

"फैसले ने विवादित स्थल को राम मंदिर निर्माण के लिए श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को दे दिया और सरकार को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए उपयुक्त जगह दिए जाने का निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर समाज ने बड़े पैमाने पर जश्न मनाया. ये एक संवेदनशील मुद्दे पर आम सहमति बनाने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो लोकतांत्रिक प्रकृति की मेच्योरिटी को दर्शाती है. ये भारत में सभ्यतागत रूप से निहित है."

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सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश की जगह दूसरा आदेश

पुरानी किताब में सुप्रीम कोर्ट के एक और केस का ज़िक्र था. केस था मोहम्मद असलम बनाम भारत संघ. सुनवाई कर रहे थे सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ़ जस्टिस वेंकटचलैया और जस्टिस जीएन रे. तारीख़ थी 24 अक्टूबर 1994. कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कल्याण सिंह (बाबरी विध्वंस के दिन UP के CM) को कानून की गरिमा को बनाए रखने में नाकाम रहने के लिए कोर्ट की अवमानना ​​का दोषी ठहराया था. कोर्ट ने कहा था,

"चूंकि अवमानना ​​बड़े मुद्दों को उठाती है, जो हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की नींव को प्रभावित करती है. इसीलिए हम उन्हें एक दिन के सांकेतिक कारावास की सजा भी देते हैं."

नई किताब में सुप्रीम कोर्ट के इस केस को हटा दिया गया है. जबकि सुप्रीम कोर्ट के ही एक और फ़ैसले का अंश इसकी जगह रखा गया है. इस अंश में 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट कहता है,

"इस कोर्ट के हर जज को न केवल संविधान और उसके मूल्यों को बनाए रखने का काम सौंपा गया है, बल्कि इसकी शपथ भी दिलाई गई है. संविधान धर्मों की आस्था और विश्वास के बीच अंतर नहीं करता. इस तरह ये निष्कर्ष निकाला गया कि मस्जिद बनने से पहले और उसके बाद, हमेशा से हिंदुओं की आस्था और विश्वास यही रहा है कि भगवान राम का जन्मस्थान ही वो जगह है, जहां बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया है. जो आस्था और विश्वास दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्यों से भी साबित होता है."

रितिका चोपड़ा अपनी रिपोर्ट में बताती हैं कि 2014 के बाद से ये चौथा मौक़ा है, जब NCERT की किताबों में बदलाव किया गया है. अयोध्या मुद्दों पर किए गए बदलावों का ज़िक्र करते हुए NCERT ने अप्रैल में कहा था कि राजनीति में लेटेस्ट घटनाक्रम के अनुसार कंटेंट में अपडेट किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फ़ैसले और उसके व्यापक स्वागत की वजह से अयोध्या मुद्दे पर बदलाव किए गए हैं.

वीडियो: NCERT की किताबों में फिर बदला सिलैबस, नेशनल पार्टी लिस्ट में क्या जोड़ा-घटाया गया?

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