राम मंदिर समारोह से नाराज शंकराचार्य बोले- 'धार्मिक क्षेत्र में नेताओं का हस्तक्षेप पागलपन है!'
निश्चलानंद सरस्वती पुरी के श्रीगोवर्धन पीठ के 145वें जगद्गुरु शंकराचार्य हैं. उनका कहना है कि धार्मिक नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है और ये भगवान के खिलाफ विद्रोह करने के बराबर है.
कुछ ही दिन पहले जगन्नाथपुरी मठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती (Swami Nischalananda Saraswati) ने घोषणा की थी कि वो राम मंदिर (Ram Mandir) समारोह में शामिल नहीं होंगे. अब समारोह को लेकर हो रही राजनीति पर उन्होंने फिर से नाराजगी जताई है. उनका कहना है कि किसी के नाम का प्रचार करने के लिए धार्मिक नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है. ये भगवान के खिलाफ विद्रोह करने के बराबर है.
शनिवार, 13 जनवरी को - मकर संक्रांति के मौके पर - शंकराचार्य पश्चिम बंगाल के गंगा सागर मेले में पहुंचे थे. वार्षिक अनुष्ठान स्नान में भाग लेने के लिए. इस दौरान उन्होंने मीडिया से बात की और कहा, धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में राजनीतिक हस्तक्षेप सही नहीं है और संविधान भी ऐसा करने की अनुमति नहीं देता. कहा,
मूर्ति प्रतिष्ठा के लिए शास्त्रों के हिसाब से नियम तय किए गए हैं और राज्य के प्रमुख या प्रधानमंत्री को इन नियमों का पालन करना होता है. राजनेताओं की सीमाएं हैं, संविधान के तहत जिम्मेदारी है. धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में नियम और प्रतिबंध हैं. इन नियमों का पालन किया जाना चाहिए. हर क्षेत्र में नेताओं का हस्तक्षेप करना पागलपन है. संविधान के हिसाब से भी ये एक बड़ा अपराध है.
आगे उन्होंने कहा कि किसी के नाम का प्रचार करने के लिए इन नियमों को तोड़ना भगवान के खिलाफ विद्रोह करने और विनाश के रास्ते पर जाने के बराबर है.
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निश्चलानंद सरस्वती पुरी के श्रीगोवर्धन पीठ के 145वें जगद्गुरु शंकराचार्य हैं. उनका जन्म 1943 में बिहार के मधुबनी जिले में हुआ था. वो दरभंगा के महाराजा के राज-पंडित के पुत्र हैं. अक्सर अपने बयानों के चलते विवादों में रहते हैं. इससे पहले भी उन्होंने ने कहा था,
'मोदी जी लोकार्पण करेंगे, मूर्ति का स्पर्श करेंगे तो मैं वहां तालियां बजाकर जय-जयकार करूंगा क्या? मेरे पद की भी मर्यादा है. राम मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा शास्त्रों के अनुसार होनी चाहिए, ऐसे आयोजन में मैं क्यों जाऊं?'.
शंकराचार्य ने कहा था कि राम मंदिर पर जिस तरह की राजनीति हो रही है, वह नहीं होनी चाहिए. उन्होंने धर्म-स्थलों पर बनाए जा रहे कॉरिडोर्स की भी आलोचना की है, कि धर्म-स्थलों को पर्यटन-स्थल बनाया जा रहा है.
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