पुणे पोर्श हादसा: नाबालिग आरोपी होगा रिहा, बॉम्बे HC ने सुधार गृह में रखने को 'अवैध' बताया
हाई कोर्ट का कहना है कि हिरासत का आदेश जारी करना जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में नहीं था.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे पोर्श कार हादसे (Pune Porsche accident case) के आरोपी नाबालिग को रिहा करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि नाबालिग को हिरासत में रखने का आदेश अवैध था. जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने 22 मई को नाबालिग की जमानत रद्द की थी. उसे चिल्ड्रन ऑब्जर्वेशन सेंटर में भेजे जाने का आदेश दिया था. इसके बाद से वो चिल्ड्रन होम में ही था. हालांकि अब हाई कोर्ट का कहना है कि ये आदेश जारी करना जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में नहीं था.
18 और 19 मई की दरमियानी रात पुणे के कल्याणी नगर में पोर्शे कार से टक्कर में दो लोगों की मौत हुई था. कार 17 साल का नाबालिग चला रहा था. नाबालिग पर आरोप लगा था कि उसने एक्सीडेंट से पहले पब में बैठकर शराब पी थी. पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया था, लेकिन गिरफ्तारी के कुछ ही घंटों के भीतर उसे जमानत मिल गई थी. इस फैसले का काफी विरोध हुआ था.
इसके बाद, 22 मई को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने नाबालिग आरोपी को 5 जून तक चिल्ड्रन ऑब्जर्वेशन सेंटर भेजने का आदेश दिया था. बाद में ये रिमांड बढ़ा दी गई थी.
इंडिया टुडे से जुड़ीं विद्या की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस भारती डांगरे और मंजूषा देशपांडे की बेंच ने ये फैसला सुनाया है. बेंच ने कहा कि ये एक्सीडेंट दुर्भाग्यपूर्ण था लेकिन नाबालिग को ऑब्जर्वेशन होम में नहीं रखा जा सकता है. कोर्ट ने ये फैसला नाबालिग की चाची की याचिका पर सुनाया है. कहा कि नाबालिग अपनी चाची के साथ रहेगा. नाबालिग के माता-पिता दोनों हिरासत में हैं.
कोर्ट ने फैसले में ये भी कहा कि जुबेनाइल जस्टिस बोर्ड के आदेश के तहत नाबालिग की काउंसलिंग सायकोलॉजिस्ट से होती रहेगी.
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याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वकील अबाद पोंडा और प्रशांत पाटिल ने कहा था कि वैध जमानत के आदेश के बाद भी नाबालिग को चिल्ड्रन सेंटर भेजने का आदेश दिया गया. इस पर कोर्ट ने भी सवाल उठाया था. 22 जून को हाई कोर्ट ने कहा था कि आरोपी नाबालिग ट्रॉमा में है और उसे कुछ समय देना चाहिए.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, पुणे पुलिस की तरफ से पेश हुए सरकारी वकील हितेन वेनगांवकर ने दलील दी कि जुवेनाइल को उसके दादा की मौजूदगी में जमानत दी गई थी. उन्होंने कहा था कि नाबालिग के दादा और पेरेन्ट्स हिरासत में हैं इसलिए उसे ऑब्जर्वेशन सेंटर में प्रोबेशन अधिकारी के निरीक्षण में रखना पड़ा. उन्होंने दलील दी कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने सिर्फ उस व्यक्ति को बदला जिसके निरीक्षण में नाबालिग को रखना था.
सरकारी वकील ने ये भी कहा कि बोर्ड उसकी जमानत रद्द नहीं करना चाहती थी, उसकी सुरक्षा के लिए ऑब्जर्वेशन सेंटर में भेजना जरूरी था. हालांकि सभी दलीलों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने रिहा करने का आदेश दे दिया.
नाबालिग के खिलाफ तेज गाड़ी चलाने और लोगों की जान खतरे में डालने का केस दर्ज हुआ था. उसके खिलाफ IPC (भारतीय दंड संहिता) और महाराष्ट्र मोटर व्हिकल एक्ट की धाराएं लगाई गई थीं. हादसे के बाद महाराष्ट्र सरकार ने नाबालिग को 25 की उम्र तक ड्राइविंग लाइसेंस देने पर बैन लगा दिया था.
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