इन तीन वैज्ञानिकों ने क्या किया कि पहली बार मौसम विज्ञान में फिजिक्स का नोबेल मिल गया?
पुरस्कार की साढ़े 8 करोड़ रुपये की राशि तीनों में बराबर बांटी जाएगी.
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स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में मंगलवार 5 अक्टूबर को नोबेल पुरस्कारों की घोषणा की गई. रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज (Royal Swedish Academy of Sciences) ने मौसम विज्ञान में उल्लेखनीय योगदान के लिए फिजिक्स के तीन वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार देने का फैसला किया है. एकेडमी के मुताबिक इस विषय पर पहली बार फिजिक्स का नोबेल दिया जा रहा है. पुरस्कार पाने वाले तीनों वैज्ञानिक हैं जापान के सुकुरो मनाबे, जर्मनी के क्लॉस हेसलमैन और इटली के जॉर्जियो परिसी. पुरस्कार की राशि तीनों वैज्ञानिकों में बराबर बांटी जाएगी.
मनाबे का क्लाइमेट मॉडल बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक सुकुरो मनाबे, क्लॉस हेसलमैन ने धरती के मौसम का एक फिजिकल मॉडल तैयार किया है. दावा है कि इस मॉडल से धरती में होने वाले बदलावों पर सटीकता से नजर रखी जा सकती है. साथ ही ग्लोबल वॉर्मिंग का भी अनुमान लगाया जा सकता है. जापानी मूल के सुकुरो अमेरिका के न्यू जर्सी में स्थित प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक हैं. 1960 से ही सुकुरो मौसम के फिज़िकल मॉडल पर काम कर रहे हैं.BREAKING NEWS: The Royal Swedish Academy of Sciences has decided to award the 2021 #NobelPrize
— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 5, 2021
in Physics to Syukuro Manabe, Klaus Hasselmann and Giorgio Parisi “for groundbreaking contributions to our understanding of complex physical systems.” pic.twitter.com/At6ZeLmwa5
वहीं क्लॉस हेसलमैन जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट में मौसम वैज्ञानिक हैं. क्लॉस ने भी करीब एक दशक पहले मौसम में होने वाले बदलावों को समझने के लिए कंप्यूटर मॉडल बनाने शुरू किए थे. बताया जाता है कि इन्हीं दो वैज्ञानिकों की कोशिशों के कारण ही हम आज अचानक से बदलते मौसम को इन मॉडलों के आधार पर आसानी से समझ सकते हैं.
वहीं इटली के जॉर्जियो परिसी, रोम की स्पेनजा यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं. जॉर्जियो परिसी ने परमाणु से लेकर ग्रहों तक के फिजिकल सिस्टम में होने वाले तेज बदलावों और अवस्थाओं के बीच की गतिविधि को कई फॉर्मूलों की मदद से प्रूव किया है. विशेषज्ञों ने बताया है कि इन बदलावों से भी धरती के मौसम पर असर पड़ता है. अपनी तरह का पहला पुरस्कार इससे पहले भी मौसम विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार दिया गया था, पर वो शांति का नोबेल पुरस्कार था. अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल्बर्ट अर्नोल्ड गोर जूनियर को 2007 में ये पुरस्कार दिया गया था. एकेडमी के मुताबिक ये पहली बार है कि फिज़िक्स का नोबेल, मौसम विज्ञान पर काम करने वाले वैज्ञानिकों को दिया जा रहा है.
अल्बर्ट अर्नोल्ड गोर जूनियर के साथ IPCC नाम की एक अंतरराष्ट्रीय संस्था को भी नोबेल दिया गया था. IPCC यानी Intergovernmental Panel on Climate Change. ये संस्था मौसम में होने वाले बदलावों पर नजर रखती है. इसकी स्थापना 1988 में हुई थी. IPCC और अल्बर्ट अर्नोल्ड ने इंसानी गतिविधियों के कारण मौसम में होने वाले बदलावों का बारीकी से अध्ययन किया था. दोनों ने उन उपायों और तरीकों पर भी काफी काम किया जिनसे समय रहते वेदर चेंजेस से होने वाली परेशानियों से निपटा जा सकता है. नोबेल पुरस्कार का छोटा सा इतिहास अल्फ्रेड नोबेल. स्वीडन के रहने वाले थे. एकदम जीनियस इंसान थे. रसायनशास्त्र से जुड़े शोध करते रहते थे. डायनामाइट का आविष्कार इन्हीं अल्फ्रेड नोबेल ने किया था. वही डायनामाइट जो बड़े-बड़े पहाड़ों के टुकड़े-टुकड़े कर देता है.
अल्फ्रेड उद्योगपति भी थे. नाम के साथ ज़िदंगी भर खूब पैसा भी कमाया. 1896 में हो गई इनकी मौत. फिर खोली गई इनकी वसीयत. उसमें लिखा था कि नोबेल साहब की सारी कमाई फिजिक्स, केमिस्ट्री, लिटरेचर, फिजियोलॉजी या मेडिसिन और शांति के फील्ड में शानदार काम करने वालों को दी जाए. प्राइज़ के तौर पर. बस तब से ये रीत चली आ रही है.
नोबेल पुरस्कर (साभार: इंडिया टुडे )
1901 में पहली बार नोबेल पुरस्कार दिया गया था. तब से लेकर अब तक कुल 935 लोग और 25 संस्थाएं इस पुरस्कार को हासिल कर चुकी हैं. नोबेल पुरस्कार जीतने वालों को एक गोल्ड मेडल के साथ करीब 11 लाख डॉलर का नकद इनाम भी दिया जाता है. अपनी करेंसी में ये रकम साढ़े करोड़ रुपये से ज्यादा है.
(आपके लिए ये स्टोरी हमारे साथी आयूष ने लिखी है.)