15 दिन की हिरासत, 30 दिन में फैसला, नए क्रिमिनल लॉ के इन बड़े बदलावों को जान लीजिए
New Criminal Laws: मुकदमा पूरा होने के बाद अब जज को 30 दिनों के भीतर फैसला सुनाना होगा. और इसके 7 दिन बाद फैसले की कॉपी को ऑनलाइन अपलोड करना होगा.
IPC (1860), CRPC (1973) और एविडेंस एक्ट (1872) आज यानी 1 जुलाई से समाप्त हो गए हैं. इनकी जगह अब नए कानून (New Criminal Laws) लागू हो गए हैं. जो इस प्रकार हैं- भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA). नए कानून के तहत मामले दर्ज भी होने लगे हैं. इन बदलावों के बारे में विस्तार से जान लेते हैं.
पहले | अब |
भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) | भारतीय न्याय संहिता, 2023 |
दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (CRPC) | भारतीय नागरिक संहिता, 2023 |
इंडियन एविडेंस एक्ट, 1872 | भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 |
नए कानून के तहत किसी भी पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज कराया जा सकेगा. यानी कि अब जरूरी नहीं कि जिस थाना क्षेत्र में अपराध हुआ हो उसी थाने में केस दर्ज हो. अपराध जिस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में हुआ है, उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के किसी भी थाने में FIR दर्ज कराई जा सकती है. साथ ही e-FIR यानी ऑनलाइन भी मामला दर्ज कराया जा सकता है. हालांकि, ऑनलाइन FIR कराने के 3 दिनों के अंदर उस पर हस्ताक्षर करने के लिए थाने मेें जाना होगा.
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90 दिनों के भीतर देना होगा जवाबपुलिस को 90 दिनों के भीतर किसी पीड़ित को उसके केस की जानकारी देनी होगी. पुलिस बाध्य होगी ये बताने के लिए किसी केस पर अब तक कितना काम हुआ है. 90 दिनों के भीतर ही चार्जशीट भी दाखिल करनी होगी. हालांकि, कोर्ट के पास इस समय-सीमा को और 90 दिनों तक बढ़ाने का विकल्प है. नए कानून के तहत किसी केस की जांच 180 दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए. हर जिले में नियुक्त पुलिस अधिकारी गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति के परिवार को गिरफ्तारी की जानकारी देने के लिए जिम्मेदार होगा.
छोटे-मोटे अपराधों के आरोपी, या जो लोग कमजोर हैं, या 60 वर्ष से अधिक उम्र के हैं- उन्हें बिना अधिकारियों की अनुमति के गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा. तीन साल से कम की सजा वाले अपराधों के लिए, किसी गिरफ्तारी से पहले पुलिस उपाधीक्षक (DSP) से नीचे के रैंक के अधिकारी की अनुमति लेनी होगी.
जज को 30 दिनों में देना होगा फैसलापुलिस के चार्जशीट के बाद आरोप तय करने और मुकदमा शुरू करने ले लिए अदालत के पास 60 दिनों का समय होता है. मुकदमा पूरा होने के बाद अब जज को 30 दिनों के भीतर फैसला सुनाना होगा. और इसके 7 दिन बाद फैसले की कॉपी को ऑनलाइन अपलोड करना होगा. कुछ मामलों में फैसले के लिए समय-सीमा को 60 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है.
तलाशी के वक्त वीडियो रिकॉर्डिंग जरूरीपुलिस को किसी तलाशी या जब्ती की पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग करानी होगी. किसी गुनाह को कबूल करवाने के लिए पुलिस किसी आरोपी को यातना नहीं दे सकती. हालांकि, इसमें कई शर्तें भी हैं. पहली बार अपराध करने वाला व्यक्ति अपनी सजा का एक तिहाई हिस्सा पूरा करने के बाद जमानत के पात्र होंगे. मुकदमा लंबित हो फिर भी. जेल अधीक्षक ये सुनिश्चित करेंगे कि ऐसे कैदियों की रिहाई के लिए अदालत में आवेदन किया जाए.
महिलाओं के लिए बदलावयौन उत्पीड़न के मामले में पीड़िता का बयान अब उनके घर में एक महिला मजिस्ट्रेट द्वारा एक महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में दर्ज किया जाएगा. उनके माता-पिता या परिवार के सदस्य उनके साथ मौजूद रह सकते हैं. नए कानून में यौन उत्पीड़न की पीड़िता की पहचान का खुलासा करना भी अपराध माना गया है.
धाराओं को लेकर ये बदलाव किए गए हैं-
क्राइम | IPC (पहले) | BNS (अब) |
रेप और गैंगरेप | 375, 376 | 63, 64, 70 |
छेड़छाड़ | 354 | 74 |
दहेज हत्या | 304B | 80 |
दहेज प्रताड़ना | 498A | 85 |
हत्या | 302 | 103 |
हत्या की कोशिश | 307 | 109 |
गैर इरादतन हत्या | 304 | 105 |
लापरवाही से मौत | 304A | 106 |
देश के खिलाफ युद्ध | 121, 121A | 147, 148 |
देशद्रोह | 124 | 152 |
गैर कानूनी सभा | 144 | 187 |
मानहानि | 499, 500 | 356 |
धोखाधड़ी या ठगी | 420 | 318 |
चोरी | 379 | 303 |
डकैती | 395 | 310 |
लूट | 392 | 309 |
IPC में मॉब लिंचिंग का जिक्र नहीं था. अब इस अपराध के लिए उम्रकैद से लेकर मौत तक की सजा हो सकती है. इसका जिक्र BNS की धारा 103 (2) में है.
पिछले साल 11 अगस्त को सदन के मॉनसून सत्र के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने ये तीन विधेयक पेश किए थे. कहा था कि अंग्रेजों के पुराने कानूनों का उद्देश्य दंड देना था, न्याय देना नहीं. इसलिए बदलाव किए जा रहे हैं. ये भी बताया था कि वो खुद इस प्रक्रिया में शामिल रहे हैं. फिर उसी साल 12 दिसंबर को गृह मंत्री ने लोकसभा में आपराधिक कानून विधेयकों के संशोधित वर्जन पेश किए थे.
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