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'मदरसों की फंडिंग बंद हो...पाकिस्तान की किताबें पढ़ा रहे'- NCPCR की रिपोर्ट

NCPCR के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने राज्यों के अधिकारियों को पत्र भेजकर मदरसों और बच्चों के संवैधानिक अधिकारों के बीच टकराव की बात की है. RTE अधिनियम से जुड़ी समस्याओं को उजागर करते हुए आयोग ने मदरसों को वित्तीय सहायता रोकने की सिफारिश की है.

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NCPCR asked states to shut madrasa boards (representational photo: India Today)
NCPCR ने सभी राज्यों से मदरसा बोर्डों को बंद करने को कहा (सांकेतिक तस्वीर: इंडिया टुडे)
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निहारिका यादव
13 अक्तूबर 2024 (Updated: 13 अक्तूबर 2024, 16:15 IST)
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राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मदरसा बोर्डों को बंद करने की सिफारिश की है. साथ ही मदरसों और मदरसा बोर्डों को राज्य की ओर से दी जाने वाली फंडिंग रोकने की भी बात कही है. आयोग का कहना है कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को औपचारिक स्कूलों में दाखिल कराया जाना चाहिए. NCPCR के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने आयोग की एक रिपोर्ट भी पेश की है. रिपोर्ट का शीर्षक है- ‘आस्था के संरक्षक या अधिकारों के उत्पीड़क:  बच्चों के अधिकार बनाम मदरसा’. इस रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए कानूनगो ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और प्रशासकों को पत्र लिखकर मदरसों को दिए जाने वाले फंड को फ्रीज करके मदरसा बोर्डों को बंद करने की सिफारिश की है.

इंडियन एक्सप्रेस से जुड़ी अभिनया हरिगोविंद की रिपोर्ट के मुताबिक, NCPCR के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो के 11 अक्टूबर के पत्र में कहा गया, 

"सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर RTE अधिनियम, 2009 के अनुसार बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूलों में भर्ती कराया जाए. साथ ही, मुस्लिम समुदाय के बच्चे जो मदरसा में पढ़ रहे हैं, चाहे वे मान्यता प्राप्त हों या गैर-मान्यता प्राप्त, उन्हें औपचारिक स्कूलों में दाखिला दिया जाए.”

कानूनगो के पत्र में यह बताया गया है कि RTE अधिनियम का उद्देश्य बच्चों को समान शिक्षा का अवसर प्रदान करना है. लेकिन मदरसों की स्थिति के कारण बच्चों के मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों के बीच टकराव उत्पन्न हो गया है. उनका कहना है कि धार्मिक संस्थानों को RTE अधिनियम से छूट मिलने के कारण कई बच्चे औपचारिक शिक्षा प्रणाली से बाहर हो गए हैं, जिससे उनके शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है. रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि केवल एक मदरसा बोर्ड का गठन या UDISE कोड प्राप्त करना यह सुनिश्चित नहीं करता कि मदरसे RTE अधिनियम की शर्तों का पालन कर रहे हैं. 

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आयोग की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मदरसे बच्चों के शैक्षिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. मदरसों में पाठ्यक्रम RTE अधिनियम के अनुसार नहीं है. मदरसों के पाठ्यक्रम की दीनियत पुस्तकों में आपत्तिजनक कंटेंट की मौजूदगी है. साथ ही मदरसों में ऐसे पाठों का शिक्षण होता है जिसमें इस्लाम की सर्वोच्चता बताई जाती है. इतना ही नहीं रिपोर्ट में ये दावा भी है कि बिहार मदरसा बोर्ड उन पुस्तकों को पढ़ाता है जो पाकिस्तान में प्रकाशित होती हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के अधिकारियों के साथ NCPCR की बातचीत में यह पाया गया कि मदरसों में राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद द्वारा निर्धारित प्रशिक्षित और योग्य शिक्षकों की कमी है. मदरसों के शिक्षक कुरान और अन्य धार्मिक ग्रंथों को सीखने में उपयोग किए जाने वाले पारंपरिक तरीकों पर काफी हद तक निर्भर हैं. ऐसे में मदरसों के बच्चों को अयोग्य शिक्षकों के हाथों में छोड़ दिया जाता है.

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मदरसे इस्लामी शिक्षा प्रदान करते हैं और धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांत का पालन नहीं कर रहे हैं. मदरसे बच्चों को उन सुविधाओं और अधिकारों से वंचित रखते हैं जो नियमित स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को दी जाती हैं. जैसे कि यूनिफार्म, किताबें और मिड डे मील. औपचारिक शिक्षा प्रदान करने वाले स्कूलों को RTE अधिनियम द्वारा निर्धारित मानदंडों का पालन करना आवश्यक है. ऐसे में मदरसों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं होने के कारण, उनके कामकाज में जवाबदेही और पारदर्शिता का अभाव है.

रिपोर्ट में आगे बताया गया कि मदरसा बोर्ड गैर-मुसलमानों और हिंदुओं को इस्लामी धार्मिक शिक्षा और निर्देश प्रदान कर रहे हैं जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 28 (3) का उल्लंघन है. ऐसे में रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकारों को हिंदू और गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है.

NCPCR  ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा करते हुए कि मदरसों में मानकीकृत पाठ्यक्रम के बिना मनमाने ढंग से काम करने का तरीका है. सिफारिश की गई है कि सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से बाहर निकाला जाए और अन्य स्कूलों में प्रवेश दिया जाए. साथ ही राज्य यह सुनिश्चित करें कि मदरसों में पढ़ने वाले सभी मुस्लिम बच्चों को औपचारिक स्कूलों में नामांकित किया जाए. और मदरसों और मदरसा बोर्डों को दी जाने वाली सरकारी फंडिंग बंद कर दी जाए और इन बोर्डों को बंद कर दिया जाए.
 

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