भारत एक चुनाव पसंद देश है. हमारे यहां चुनाव को त्योहार की तरह मनाया जाता है.लेकिन नागालैंड में एक चुनाव ऐसा हो रहा है, जिसमें नामांकन शुरू होने के बावजूदलोगों की फॉर्म भरने की हिम्मत नहीं हो रही. 1 फरवरी से नागालैंड में शहरी निकायों(म्युनिसिपल काउंसिल्स) के चुनाव होने वाले हैं. लेकिन नामांकन शुरू होने के 2 दिनबीत जाने पर भी इक्का-दुक्का फॉर्म ही भरे गए हैं. क्योंकि 'नागा होहो' ने इनचुनावों के बॉयकॉट का ऐलान कर दिया है. 'नागा होहो' सभी 18 नागा जनजातियों केसमूहों की सर्वोच्च संस्था है. एक तरह से सभी नागा जनजातियों का नुमाइंदा.जो वजह बताई है, वो सुन कर आप अपना माथा पकड़ लेंगे.ये लोग इस बात से खफा हैं कि इन चुनावों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिया गयाहै! जी हां. आपने बिलकुल ठीक पढ़ा है.पिक्चर: Reutersइंडियन एक्सप्रेस के हवाले से खबर है कि चुनावों के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले संगठनोंने सरकार को बाकायदा 'आगाह' किया है (धमकाया है, ये कहना गलत नहीं होगा) कि अगरमौजूदा कोटे के साथ चुनाव होते हैं, और 'आगे कुछ होता है', तो वो ज़िम्मेदार नहींहोंगे. नागा होहो ने कहा है कि 33 फ़ीसदी आरक्षण का कानून 'नागाओं के पारंपरिकनियमों' के खिलाफ जाता है. वो अपनी मांग के लिए संविधान के आर्टिकल 371 A का हवालादे रहे हैं, जिसके तहत नागा परंपराओं के पालन करने की छूट मिलती है. क्या हैआर्टिकल 371 A ये आर्टिकल भारत के संविधान में तब जोड़ा गया, जब 1963 में नागालैंडको असम से अलग कर के भारत का 16वां राज्य बनाया गया. इसमें ये छूट दी गई कि भारत कीसंसद का कोई ऐसा कानून जो 'नागा परंपराओं' के खिलाफ जाता हो, बिना नागालैंड कीविधानसभा की मर्ज़ी (बिना संकल्प पारित हुए) के नागालैंड में लागू नहीं होता. येनियम सिविल और क्रिमिनल दोनों तरह के मसलों से जुड़े हो सकते हैं. ये याद रहे कि'नागा परंपराओं' को लेकर पूरे नागालैंड में एक राय नहीं है. 'नागा परंपराओं' कीअलग-अलग व्याख्या मौजूद हैं.नागालैंड विधानसभा में एक भी महिला विधायक नहीं है.नागालैंड सरकार ने कह दिया है कि महिलाओं को आरक्षण देना नागा परंपराओं का उल्लंघननहीं है क्योंकि म्यूनिसिपल काउंसिल की अवधारणा (कंसेप्ट) ही नई है. ऐसे मेंपरम्पराओं के उल्लंघन का सवाल नहीं उठता.आरक्षण के खिलाफ बवाल पुराना हैनागालैंड में महिलाओं के आरक्षण के खिलाफ आवाज़ पहली बार नहीं उठी है. होहो और बाकीगुटों के दबाव में वहां की विधानसभा में 2012 में शहरी निकायों के चुनावों मेंमहिलाओं के लिए आरक्षण के खिलाफ एक रेज़ोल्यूशन (संकल्प) पारित हो चुका है. लेकिन2016 में गलती सुधारी गई. नागालैंड म्यूनिसिपल बिल पास कर के 2012 वाला रेज़ोल्यूशनवापस लिया गया और महिलाओं के आरक्षण का रास्ता एक बार फिर खुला.पिक्चर: Reutersनागालैंड में पिछले 10 सालों से विलेज डेवलपमेंट बोर्ड्स में महिलाओं को 25 फ़ीसदीआरक्षण मिला हुआ है. इसलिए टी आर ज़ीलियांग की सरकार शहरी संस्थाओं में आरक्षण देनेके फैसले का बचाव कर रही है. महिलाओं के लिए आरक्षण के समर्थन में भी लोग और समूहहैं, जो लम्बे समय से इसके लिए लड़ भी रहे हैं. 'द नागा मदर्स असोसिएशन' (NMA) इनमेंसे सबसे प्रमुख है. नागा होहो की राय से उलट NMA का मानना है कि महिलाओं को आरक्षणदेने से ही नागा परंपराओं का सही मायने में पालन हो पाएगा.