मधुमिता शुक्ला: जिसके क़त्ल ने पूर्वांचल की राजनीति को बदल दिया
गोली चलने की आवाज़ आई. नौकर कमरे में पहुंचा. बिस्तर पर मधुमिता की लाश पड़ी थी.
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मधुमिता शुक्ला लखीमपुर खीरी की कवियत्री, जो 16-17 साल की उम्र में मंच पर सक्रिय हुईं. वीर रस की कविता पढ़ने के तेज़ तर्रार अंदाज़ के लिए पहचानी जाती थी. अपनी कविताओं में देश के प्रधानमंत्री तक को खरी-खोटी सुना देने की अदाओं ने कम उम्र में ही इस लड़की को हिंदी कवि सम्मेलन का स्टार बना दिया. उम्र कम थी और महत्वाकांक्षाएं बड़ी. देखते ही देखते मधुमिता शुक्ला का नाम बड़े-बड़े सियासतदानो के साथ खास संबंधों के चलते लिया जाने लगा. वो बड़े पेमेंट वाले कवि सम्मेलनों का आयोजन भी करवाने लगी थी. कविता की दुनिया के तमाम बड़े नाम उसकी मर्ज़ी पर स्टेज पर चढ़ने उतरने लगे. तालियों और सत्ता के नशे का ये ऐसा कॉकटेल था जिसमें कोई भी भटक सकता था. और यही मधुमिता शुक्ला के साथ हुआ.
कवि सम्मेलन से कोई वास्ता न रखने वाली दुनिया को मधुमिता शुक्ला का नाम 09 मई 2003 को तब सुनाई दिया जब लखनऊ की पेपरमिल कॉलोनी में मधुमिता की गोली मार हत्या कर दी गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मधुमिता के प्रेग्नेंट होने का पता लगा था. उसके अंदर 7 महीने का बच्चा पल रहा था. डीएनए जांच में पता चला कि मधुमिता के पेट में पल रहा बच्चा उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी का है.
मधुमिता शुक्ला
उत्तर प्रदेश के सियासी हल्को में भूचाल आ गया. अमरमणि त्रिपाठी उन नेताओं में से थे जो उस दौर में हर बदलती सत्ता का ज़रूरी हिस्सा हुआ करते थे. अमरमणि पूर्वांचल के नेता हरिशंकर तिवारी के राजनीतिक वारिस थे. लगातार 6 बार विधायक रहे तिवारी की विरासत को आसानी से समझने के लिए जान लीजिए कि वो जेल से चुनाव जीतने वाले पहले नेताओं में से एक थे.
हरिशंकर तिवारी
अपराध और दलबदली की सियासत
गुरु की तर्ज पर अमरमणि भी हमेशा सत्ता के पाले में रहे. सपा, बसपा और भाजपा में जो भी लखनऊ के पंचम तल (मुख्यमंत्री दफ्तर) पर आया अमरमणि उसके खास हो गए. न कोई विचारधारा की दुहाई न कोई सिद्धांतों का हवाला, सायकिल से लेकर सिविल तक सारे ठेकों की राजनीति ही इस तरह के नेताओं की सियासत का आधार रहा है.अमरमणि के कद के चलते जहां एक ओर उनका हर पार्टी में इस्तकबाल करने वाले कई लोग थे. ऐसों की कमी नहीं थी जो पैराशूट से कैबिनेट में उतरे इन नेताओं को इनकी जगह से हटाना चाहते थे. मधुमिता शुक्ला हत्याकांड ऐसा ही मौका बना. केस की शुरुआत में ही जांच को प्रभावित करने की शिकायतों के चलते इस हत्याकांड की इंक्वायरी सीबीआई को सौंप दी गई. मामले की जांच के बाद एसपी लीडर और मिनिस्टर अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि और भतीजे रोहित चतुर्वेदी समेत शूटर संतोष राय और प्रकाश पांडे को शामिल बताकर चार्जशीट दाखिल की गई. मधुमिता के नौकर देशराज ने अपने बयान में बताया कि संतोष राय और प्रकाश पांडेय सुबह-सुबह मधुमिता के घर पहुंचे. देशराज चाय बनाने लगा. तभी गोली चलने की आवाज़ आई. नौकर कमरे में पहुंचा तो देखा दोनों लोग गायब थे और बिस्तर पर मधुमिता की लाश पड़ी थी.
अमरमणि की पत्नी मधुमणि
बस छह महीने में ही सज़ा
मामला सियासी रंग पकड़ चुका था. केस देहरादून की फास्ट ट्रैक कोर्ट के पास गया. पति और मधुमिता के संबंधों को जानने वाली अमरमणि की पत्नी मधुमणि साज़िश में शामिल थीं. सिर्फ छह महीने में ही चार आरोपियों को उम्रकैद की सज़ा हुई. दोषियों में से प्रकाश पांडे को संदेह के चलते बरी कर दिया गया. इसके बाद मुकदमा पहुंचा नैनीताल हाईकोर्ट के पास. जुलाई 2011 कोर्ट ने बाकी चारों की सज़ा को बरकरार रखते हुए प्रकाश पांडे को भी उम्र कैद की सज़ा दी.इससे पहले भी अपराध
अमरमणि त्रिपाठी की राजनीति की शुरुआत कांग्रेस पार्टी के विधायक हरिशंकर तिवारी के साथ हुई. पहले वो बसपा में गए फिर सपा में. 2001 की भाजपा सरकार में भी त्रिपाठी मंत्री थे. तभी बस्ती के एक बड़े बिजनेसमैन का पंद्रह साल का लड़का राहुल मदेसिया किडनैप हो गया. रिहा होने पर पता चला कि किडनैपर्स ने उसे अमरमणि के बंगले में ही छिपा रखा था. अमरमणि को कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया गया. इसके 2 साल बाद ही अमरमणि और उनकी पत्नी मधुमिता की हत्या के आरोप में पकड़े गए.सज़ा के बाद भी सियासत
जेल की दीवारें अमरमणि के सियासी सफर को रोक नहीं पाईं. 2007 में अमरमणि ने गोरखपुर जेल से ही चुनाव लड़ा. अमरमणि महाराजगंज की लक्ष्मीपुर सीट से बीस हज़ार वोट से जीत गए.अमनमणि और सारा
अमरमणि से अमनमणि
2015 जुलाई में आगरा के पास एक सड़क हादसा हुआ, सत्ताइस साल की सारा सिंह की मौत हो गई. मगर उसी गाड़ी में बैठे सारा के पति अमनमणि त्रिपाठी चमत्कार के ज़रिए बच निकलते हैं. सारा के पिता की मांग पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अमनमणि के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश दिये. ये वही अमनमणि हैं जो सपा के ही टिकट से 2012 में नौतनवा से चुनाव लड़े थे और सिर्फ 4 प्रतिशत के मामूली अंतर से हार गए थे. करीबी बताते हैं कि सड़क पर गाड़ी चलाते वक्त अमनमणि जानबूझ कर कुत्तों पर गाड़ी चढ़ा चुके हैं. उनके खिलाफ अभी केस चल रहा है. मगर इन दो हत्याओं के आरोपों और सज़ा के चलते यूपी की सियासत में बाहुबली त्रिपाठी परिवार की राजनीतिक हैसियत तो कम हुई है.ये भी पढ़ें :