मुगल बादशाह के वारिस ने ठोका था लालकिले पर दावा, हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया
Delhi High Court ने मुगल बादशाह Bahadur Shah Zafar के परपोते की विधवा पत्नी की याचिका को खारिज कर दिया है. सुल्ताना बेगम ने बताया कि उन्होंने पहली बार 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. उनका आरोप था कि उनके परिवार को लाल किले के कब्जे से वंचित किया गया था.
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने मुगल बादशाह के परपोते की विधवा पत्नी की उस याचिका को खारिज कर दिया है. जिसमें उन्होंने लाल किले पर दावा किया था. बहादुर शाह जफर (Bahadur Shah Zafar) ‘द्वितीय’ के परपोते की पत्नी सुल्ताना बेगम ने इसे लेकर पहले एक याचिका दायर की थी, जिसे दिल्ली हाईकोर्ट ने दिसंबर, 2021 में खारिज कर दिया था. इसके बाद सुल्ताना बेगम ने उस फैसले को चुनौती देते हुए दोबारा अपील की थी. जिसे अब हाईकोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चुनौती ढाई साल की देरी के बाद दायर की गई थी, जिसे माफ नहीं किया जा सकता. सुल्ताना बेगम, बहादुर शाह जफर के परपोते मिर्ज़ा बेदार बुख़्त की विधवा पत्नी हैं. जिनकी 1980 में कोलकाता में मृत्यु हो गई थी.
‘2021’ में दायर की थी पहली याचिकाइंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने सुल्ताना बेगम की अपील को खारिज कर दिया. जो उन्होंने हाईकोर्ट के दिसंबर, 2021 के फैसले के खिलाफ दायर की थी. कोलकाता के पास हावड़ा में रहने वाली बेगम ने बताया कि उन्होंने पहली बार 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी और आरोप लगाया था कि उनके परिवार को लाल किले के कब्जे से वंचित किया गया था.
उन्होंने बताया कि 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर द्वितीय को देश निकाला दे दिया था और लालकिले पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया था. जफर, 1836 से लेकर 1857 तक दिल्ली के सम्राट थे. सुल्ताना बेगम ने दावा किया कि उन्हें लालकिला कानूनी रूप से विरासत में मिला है. इसलिए वे केंद्र सरकार द्वारा कथित अवैध कब्जे के लिए मुआवजे की हकदार हैं.
‘164 साल बाद कैसे होगी सुनवाई?’सुल्ताना बेगम की शुरुआती याचिका को जस्टिस रेखा पल्ली की अदालत ने 20 दिसंबर, 2021 को सुनवाई के योग्य न मानते हुए खारिज कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि 164 साल की देरी के आधार पर याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. आगे कोर्ट ने कहा था-
‘लालकिला पैतृक संपत्ति है’“अगर याचिकाकर्ता का यह मामला स्वीकार भी कर लिया जाए कि स्वर्गीय बहादुर शाह जफर द्वितीय को ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अवैध रूप से उनकी संपत्ति से वंचित किया गया था. तब भी 164 वर्षों से ज्यादा देरी के बाद रिट याचिका कैसे स्वीकार की जाएगी."
इसके बाद इसी साल नवंबर में सुल्ताना बेगम ने दिल्ली हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के समक्ष, 2021 के आदेश के खिलाफ अपील दायर की. याचिका में कहा गया-
“केंद्र सरकार लाल किले पर अवैध कब्जा कर रही है. जो अपीलकर्ता की पैतृक संपत्ति है और सरकार ऐसी संपत्ति का मुआवजा या कब्जा देने को तैयार नहीं है. जो याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार और संवैधानिक अधिकार का सीधा उल्लंघन है.”
फिलहाल दिल्ली हाईकोर्ट ने इस याचिका को भी खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि चुनौती ढाई साल की देरी के बाद दायर की गई थी.
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‘चाय की दुकान भी चलाई’सुल्ताना बेगम ने बताया कि अपने पति मिर्ज़ा बेदार बुख़्त की मौत के बाद वे कोलकाता चली गई थीं. उन्होंने कहा कि-
‘6000’ मिलती है पेंशन"हम तलतला में रहते थे और बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय के कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें मिलने वाली पेंशन पर निर्भर थे. जो कुछ सौ रुपये थी. इसके बाद 1984 में, मैं अपने बच्चों के साथ हावड़ा चली गई. जहां मैं उन्हें अकेले ही पालने की कोशिश कर रही थी. उनके (मिर्ज़ा बेदार बुख़्त) मरने के बाद, मैंने समय-समय पर कई काम किए. चाय की दुकान चलाई, चूड़ियाँ बनाईं. लेकिन अब उम्र ने मुझे जकड़ लिया है और मैं ज़्यादातर समय बिस्तर पर ही रहती हूं."
सुल्ताना बेगम ने बताया कि बहादुर शाह जफर द्वितीय की कानूनी उत्तराधिकारी होने के नाते उन्हें हजरत निजामुद्दीन ट्रस्ट से पेंशन मिलती है. पेंशन के तौर पर उन्हें 6,000 रुपये मिलते हैं. जिनसे वे गुजारा करती हैं. उन्होंने कहा-
“मेरा एक बेटा और पांच बेटियां हैं. मेरी सबसे बड़ी बेटी की 2022 में मौत हो गई थी. जिससे अपील दायर करने में देरी हुई. मेरे बच्चे अशिक्षित रह गए. उनमें से कोई भी स्कूल पूरा नहीं कर सका और हम अभी भी गरीबी में जी रहे हैं.”
हावड़ा में एक झोपड़ीनुमा घर में रहने वाली बेगम ने बताया कि उन्हें पैसों की सख्त जरूरत है और इसीलिए उन्होंने 2021 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इस उम्मीद में कि सरकार मुझ पर ध्यान देगी और मेरी आर्थिक मदद करेगी.
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