नियम तोड़कर भुनाए गए करोड़ों के इलेक्टोरल बॉन्ड? फायदा किस पार्टी को मिला?
रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र में सत्तारूढ़ ‘बीजेपी’ ने 2018 के कर्नाटक चुनाव से पहले एक्सपायर हो चुके 10 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड्स को भुनाया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके लिए सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड के नियमों को ‘तोड़ा’ था.
इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ा SBI का डेटा आने के बाद से लगातार कई खुलासे हो रहे हैं (Electoral Bond donation data). किसने कितने बॉन्ड खरीदे. किस पार्टी ने कितना चंदा भुनाया. सारी जानकारी धीमे-धीमे पब्लिक डोमेन में आ रही है. अब एक और दावा किया जा रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र में सत्तारूढ़ ‘बीजेपी’ ने 2018 के कर्नाटक चुनाव से पहले एक्सपायर हो चुके 10 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड्स को भुनाया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके लिए सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड के नियमों को ‘तोड़ा’ था.
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर मौजूद डेटा को 'रिपोटर्स कलेक्टिव' नाम के मीडिया संस्थान ने खंगाला. अपनी जांच-पड़ताल के बाद संस्थान ने 'खुलासा' किया है कि तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने SBI पर 10 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड भुनाने के लिए ‘दबाव’ बनाया था. ये उस वक्त किया गया था जब पार्टी के कुछ लोग एक्सपायर हो चुके बॉन्ड को लेकर बैंक पहुंचे थे.
रिपोटर्स कलेक्टिव ने साल 2019 में एक रिपोर्ट की थी. ये रिपोर्ट कोमोडोर लोकेश बत्रा (रिटायर्ड) द्वारा प्राप्त ऑफिशियल रिकॉर्ड के आधार पर की गई थी. इसमें खुलासा किया गया था कि एक अज्ञात पार्टी को 10 करोड़ रुपये की बॉन्ड भुनाने की अनुमति दी गई. रिपोर्ट के मुताबिक ये बॉन्ड 15 दिन की अवधि के दो दिन बाद आए थे. माने बॉन्ड भुनाने की अवधि समाप्त हो चुकी थी.
रिपोर्ट के मुताबिक एक कथित पार्टी 23 मई 2018 को दिल्ली स्थित SBI की ब्रांच पर ये बॉन्ड लेकर गई थी. इसके बाद दिल्ली ब्रांच, मुंबई स्थित कॉर्पोरेट हेड क्वार्टर और वित्त मंत्रालय के बीच बातचीत हुई. और बॉन्ड भुनाने की अनुमति दे दी गई.
कैसे भुनाए गए बॉन्ड्स?रिपोटर्स कलेक्टिव ने SBI द्वारा वित्त मंत्रालय को 23 मई 2018 को सौंपी गई रिपोर्ट के हवाले से लिखा कि कुछ बॉन्ड होल्डर दिल्ली स्थित SBI की मुख्य शाखा पहुंचे थे. वे कुल 20 करोड़ रुपये के बॉन्ड लेकर बैंक गए थे. उनमें से आधे बॉन्ड 23 मई 2018 के दिन ही खरीदे गए. जबकि बाकी बचे बॉन्ड 5 मई 2018 को खरीदे गए. दोनों बॉन्ड एक्सपायर हो चुके थे.
रिपोर्ट के मुताबिक बॉन्ड होल्डर ने अनुरोध किया कि 15 दिन वाले नियम को बदला जाए. और किसी भी तरह से बॉन्ड को भुनाया जाए. उनका तर्क ये था कि इन बॉन्ड को 15 वर्किंग डेज़ के भीतर जमा किया जा रहा था. ये बात दिल्ली स्थित SBI की ब्रांच ने मुंबई कॉर्पोरेट ब्रांच को उसी दिन बताई. 24 मई 2018 को बैंक के तत्कालीन मैनेजिंग डायरेक्टर मृत्युंजय महापात्रा ने SBI के अध्यक्ष रजनीश कुमार की ओर से एक पत्र लिखा. ये पत्र केंद्रीय वित्त मंत्रालय को लिखा गया था. इसमें उन्होंने मंत्रालय से ये पूछा कि क्या उन्हें बॉन्ड होल्डर को समाप्त हो चुके बॉन्ड को भुनाने की अनुमति देनी चाहिए?
उसी दिन आर्थिक मामलों के मंत्रालय में तत्कालीन डिप्टी डायरेक्टर विजय कुमार ने जवाब दिया. कुमार ने कहा, “यह स्पष्ट किया जाता है कि कुल 15 दिनों की समय सीमा में गैर-कार्य दिवस भी शामिल हैं…”
रिपोर्ट के मुताबिक इसका मतलब ये है कि नियमों के मुताबिक बॉन्ड एक्सपायर हो चुके थे. और इन बॉन्ड्स की राशि PMNRF में जमा होनी चाहिए थी.
लेकिन कुमार ने एक और बात कही. बोले,
“पिछले बॉन्ड को जारी करने में स्पष्टता की कमी थी. इस वजह से SBI 10 मई 2018 से पहले खरीदे गए बॉन्ड्स को क्रेडिट कर सकता है, अगर ये 15 वर्किंग डेज़ के अंदर जमा किए गए हों. भविष्य में ऐसी कोई भी रिक्वेस्ट नहीं मानी जाएगी.”
रिपोटर्स कलेक्टिव की रिपोर्ट के अनुसार कुमार का ये पत्र डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक्स अफेयर्स के तत्कालीन सेक्रेटरी एस सी गर्ग ने स्वीकार किया था. इसके बाद पत्र उसी दिन SBI के चेयरमैन को भेजा गया. दिल्ली स्थित बैंक की मुख्य शाखा को सूचित किया गया. और उसी दिन 5 मई 2018 को खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड को भुना दिया गया. 3 मई वाले बॉन्ड्स को PMNRF में जमा कर दिया गया.
हालांकि, बॉन्ड डोनेट करने वाले की पहचान अभी रहस्य बनी हुई है. बॉन्ड के यूनिक कोड नंबर आने के बाद इसका खुलासा हो सकता है. पर चुनावी बॉन्ड नियमों का उल्लंघन यहीं खत्म नहीं हुआ. आरोप है कि जिस किस्त में बीजेपी को ये बॉन्ड मिले, वो भी योजना के नियमों के खिलाफ थी.
जनवरी 2018 में बनाए गए नियमों के अनुसार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में 10 दिनों की चार विंडो होनी थीं. लेकिन 2018 में पीएम कार्यालय ने वित्त मंत्रालय को अपने नियम तोड़ने का ‘आदेश’ दिया. कर्नाटक चुनाव से पहले बॉन्ड बिक्री के लिए 10 दिनों की ‘विशेष’ विंडो खोलने का आदेश दिया गया था.
पीएमओ का ये अनुरोध वित्त मंत्रालय की फाइलों में पहली बार अप्रैल 2018 में दर्ज हुआ था. नियम नोटिफाई होने के महज तीन महीने बाद. रिपोर्ट के अनुसार बाद में नियमों का ये अपवाद एक प्रथा बन गया. मसलन, गुजरात चुनाव से पहले दिसंबर 2022 में 10 दिनों की एक विशेष विंडो खोली गई थी.
वीडियो: CJI को दिए Electoral Bond मामले के बंद लिफाफों में किन कंपनियों के नाम सामने आए?